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हिमाचल में बुज़ुर्ग महिला के साथ मारपीट हमारी किस सभ्यता को दर्शाता है?

जिस वक्त सुप्रीम कोर्ट बाबरी मस्जिद और राम जन्म भूमि मामले में अहम निर्णय दे रही थी, उसी समय अयोध्या से लगभग 1500 किलोमीटर दूर हिमाचल प्रदेश के मंडी ज़िले में एक बुज़ुर्ग विधवा को धर्म के नाम पर पीटे जाने का वीडियो वायरल हो रहा था।

खबरों की मानें तो महिला को डायन बताया जा रहा था। गाँव वालों का कहना है कि महिला जादू-टोना करती थी। इससे पहले भी महिला पर कई बार लोगों ने हमला किया था लेकिन इस बार सारी हदें पार हो गई थीं।

करीब 100 लोगों की भीड़ पहले महिला के घर गई, उसके घर को जलाया गया और फिर उस भीड़ ने उसे घसीटते हुए बाहर लाया। उसे डायन कहती भीड़ ने पहले उसके बाल काटे, फिर गले में जूतों की माला डालकर और मुंह पर कालिख पोतकर पूरे गाँव में देवता के रथ के आगे घसीटते हुए नंगे पांव घुमाया गया।

वायरल हुए वीडियो में देखा जा सकता है कि महिला के साथ कितनी बदसलूकी हुई। पुरुष महिला का मुंह काला कर रहे थे, महिलाएं जूतों की माला पहना रही थीं और बाकी बचे लोग ढोल-बाजों के साथ देवताओं का आह्वान कर रहे थे। गाँव के बच्चे ये सब देखकर आनंद में नाच रहे थे। देवताओं के जयकारे लगा रहे थे। जबकि असल मामला महिला की ज़मीन को हड़पने का था।

ब्रूनो और गौलीलियो की मौत के बाद सभ्य होता यूरोप

ऐसा ही कुछ 15वीं और 16वीं शताब्दी तक यूरोप में भी हुआ करता था। कभी इटली में जियोर्दानो ब्रूनो को फांसी पर चढ़ा दिया गया, तो कभी गैलीलियो गैलिली को मौत के घाट उतार दिया गया। चर्च के खिलाफ जिसने भी कुछ कहा, उसे सीधे मौत दी जाती थी।

यह वह वक्त था जब ना तो आधुनिक शिक्षा के स्कूल थे और ना ही विश्वविद्यालय। 17वीं सदी तक यूरोप का समाज भी कुछ ऐसा ही रहा। जब बहुत ज़्यादती हुई तब फ्रांस के लोगों को अक्ल आई और क्रांति शुरू हो गई।

विश्वविद्यालय खुले और नये तरीके से स्कूल खुले। शिक्षित लोगों ने उन कम बचे धार्मिक लोगों से ताकीद की कि वे अपना धर्म बिल्कुल मानें लेकिन अपने घर के अंदर। बाहर सड़क पर धर्म की प्रदर्शनी लगाई तौ खैर नहीं।

चीन की सभ्यता का दौर

बहरहाल, यूरोप और अमेरिका तो सभ्य हो गए। बचे चीन, मध्य पूर्व और भारत। चीन ने भी 1949 आने तक अपने को इन सभी फिज़ूल की बातों से किनारे कर लिया और वहां सांस्कृतिक क्रांति भी हो गई। धर्म पर पहले प्रतिबंध लगा दिया गया और बाद में थोड़ी छूट दे दी गई। कुछ उसी तरह की छूट जैसे फ्रांस में दी गई थी।

चीन के बच्चे आधुनिक स्कूल और अंतरराष्ट्रीय स्तर के विश्वविद्यालयों में शोध करने लगे। वहां के बच्चों ने इतनी पढ़ाई की कि आज चीन अमेरिका को टक्कर दे रहा है और यूरोप को आंखे दिखा रहा है। 25 से ज़्यादा देशों के भारी लोन माफ कर रहा है और 86 देशों में उसकी तकनीक छाई हुई है।

खुद भारत में उसके मोबाइल कंपनियों का एक-छत्र राज है। भारत के युवा चीन के मोबाइल पर अमेरिका की सोशल मीडिया ऐप फेसबुक पर अपनी देश की तरक्की की इबादद अक्सर लिखते रहते हैं।

सभ्यता के दौर में भारत और पाकिस्तान

यूरोप, अमेरिका, चीन और दक्षिण एशिया के देशों में पिछले बीस सालों में विश्वविद्यालयों और स्कूलों के साथ ही मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग और फाइन आर्ट्स के सैंकड़ों शिक्षण संस्थान खुले हैं लेकिन इसके उलट भारत और पाकिस्तान के साथ ही मध्य पूर्व के देशों में धार्मिक स्थलों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। इन धार्मिक स्थलों की संख्या बढ़ाने के लिये पूरी एक कौम और नस्ल खप गई है।

17वीं शताब्दी में जर्मनी के बोन शहर में एक दाढ़ी वाले बाबा ने कहा था कि ‘धर्म जनता का अफीम होता है’। यह एक ऐसा नशा होता है जो पीढ़ी दर पीढ़ी का सिर फुटव्वल कर देता है।

बहरहाल, ब्रूनो और गैलीलियो अक्सर सोचते होंगे कि हमें तो उन जाहिलों ने मारा, जो कभी स्कूल ही नहीं गये थे लेकिन मंडी में 82 साल की बुज़ुर्ग महिला को जिन लोगों ने मारा, वे तो स्नातक और परा स्नातक किये हुये थे। वे आखिर क्या थे?

देश में एक तरफ अब भव्य मंदिर बनेगा। वहीं पांच एकड़ में भी एक भव्य मस्जिद खड़ी होगी। ऐसा मालूम पड़ रहा है कि उसकी भव्यता की कीमत अब देश के विश्वविद्यालय चुकाएंगे। इस बात का सीधा असर जेएनयू के साथ ही देश में तमाम विश्वविद्यालयों में दिख रहा है जहां फीस डबल कर दी गई है।

विश्वविद्यालय में पढ़ रहे गुरबत से जंग कर रहे गरीब परिवारों के बच्चों के मुंह से फैज़ अहमद फैज़ साहब का अफसाना,

मुझसे पहली सी मोहब्बत, मिरे मेहबूब न मांग

सुनकर बड़ा अजीब लग रहा है।
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लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और देश के प्रमुख अख़बारों में काम कर चुके हैं।

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