कभी वक्त मिले तो बस्तियों में रह आना।
तम्बू लगाकर बारिश में,
तुम कुछ दिन ठहर कर आना।
थोड़ी सी जगह में पूरा परिवार रखना,
बिन पैसों के जीवन की चाह रखना।
लकड़ियां इकट्ठी कर स्वयं से
तुम भोजन का जुगाड़ करना।
ठण्ड में बिन कपड़ों के कभी रात बसर कर आना,
कभी वक्त मिले तो बस्तियों में रह आना।
नालियों की गंध, कीड़े- मकोड़ों संग,
कुछ साथ निभा आना।
बीमारी के साये में हरपल जीते दो पल की
खुशियां बना आना।
जो मिला वह बेहतर है,
ये पाठ ज़रा पढ़ आना।
ज़रूरतमंद की मदद में तुम खुद को जिता आना,
कभी हार मान जाओ तो बस्तियों में रह आना।
एक दिन का जीवन बिताकर देखो,
यदि कर पाओ तुम ऐसा तो
जीवन का तुम शुक्र मना आना,
हाथ बढाकर थोड़ा सा तुम प्यार बांट कर आना।
अभाव के साथ भी जीते हैं वे,
हरपल में डर को लिए हुए।
टुकड़े-टुकड़े को तरस रहे,
अर्धनग्न से पड़े हुए।
ना शिक्षा ना ज्ञान यहां,
हरपल है अपमान यहां
कौन अपना कौन पराया,
कौन दे किसका ध्यान यहां।
दर्द महसूस कर तुम स्वयं से उनका,
उनके प्रति थोड़ा सम्मान जगा आना।
जी कर उनका जीवन तुम,
अपने से नीचे का मान समझ आना।
दबे लोगों में एक आस जगा आना,
वक्त मिले तो बस्तियों में रह आना।
कुछ कर ना सको तो प्यार से
बोल के शब्द सीख आना।
कर इनके काम का सम्मान
इंसानियत का द्वीप जगा आना।
कभी वक्त मिले तो बस्तियों में रह आना।