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JNU के बाद अब उत्तरप्रदेश के कृषि विश्वविद्यालय के स्टूडेंट हुए सस्ती शिक्षा के लिए एकजुट

आज से 3 महीने पहले मैंने इसी प्लैटफॉर्म पर अपने विश्वविद्यालय और हम विद्यार्थियों की एक समस्या साझा की थी। समस्या प्लेसमेंट और नौकरी को लेकर थी। आज भी हम जैसे कई विद्यार्थी पढ़ाई के बाद बेरोज़गारी के डर से जूझ रहे हैं।

आज भी बड़ी मुश्किल से देश के कई युवा अपनी पढ़ाई पूरी कर पा रहे हैं। कॉलेजों की भारी फीस के चलते कई युवा बड़े-बड़े कॉलेजों में प्रवेश नहीं ले पाते, तो वहीं कुछ मां-बाप इन फीस को भरने के लिए अपनी पूरी जमा-पूंजी लगाने को मजबूर हैं।

किसान परिवार के विद्यार्थी

आज सिर्फ JNU ही नहीं,पूरे देश के स्टूडेंट्स अपनी मूलभूत सस्ती शिक्षा को पाने के अधिकार के लिए सड़कों पर उतर रहे हैं। कई विश्वविद्यालयों के स्टूडेंट्स JNU के समर्थन में है और इसी तरह हम यानी कि उत्तर प्रदेश के सभी राज्य कृषि विश्वविद्यालय भी सस्ती शिक्षा का समर्थन करते हैं।

यह माना जाता है कि भारत कृषि प्रधान देश है लेकिन इस देश में किसान की ही हालत सबसे बद्तर है। वही हाल कृषि विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों का भी है। आपको बता दूं कि उत्तर प्रदेश के सभी राज्य कृषि विश्वविद्यालय में एक वर्ष की सिर्फ फीस औसतन 50000 हज़ार से अधिक है। इसके बाद  मेस, हॉस्टल और अन्य सिक्योरिटी डिपॉजिट की फीस अलग है।

यहां पढ़ने आने ज़्यादातर विद्यार्थी किसान परिवारों से हैं, जिनकी वार्षिक आय औसतन 50 हज़ार भी नही होती है। ऐसे में अपने एक बच्चे पर पूरे परिवार की आय जमा करना सम्भव नही होता।

महंगी फीस की वजह से अच्छी रैंक वाले विद्यार्थी भी शिक्षा से महरूम

कई परिवार ऐसे हैं जो महंगी फीस के सामने अपने बच्चों के सपनों को टूटने नहीं देने में समर्थ होते हैं। ये परिवार बैंकों या साहूकारों से कर्ज़ लेकर करते हैं। ये कर्ज़ 4 वर्षो में इतना हो जाता है कि वे वर्षों तक इससे उभर नही पाते है। चिंताजनक बात तो यह है कि अधिक फीस की वजह से अनेकों विद्यार्थी, प्रवेश परीक्षा में अच्छी रैंक लाने के बावजूद इन विश्वविद्यालयों में पढ़ नही पाते है।

कितना मुश्किल होता होगा खुद को समझाना, जब फीस के अभाव में विश्वविद्यालय पहुंच पाने का ख्वाब ताउम्र ख्वाब बनकर रह जाता है। मैं तो यह सोचकर ही सिहर जाता हूं। आपको बता दूं कि अगर कृषि विश्वविद्यालयों की बात करें तो अन्य सभी प्रदेशो की तुलना में उत्तरप्रदेश के कृषि विश्वविद्यालयों की फीस अधिक है।

कल रात यानी कि 20 नवंबर को चंद्रशेखर आज़ाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स भी फीस कम करने को लेकर एकजुट हुए थे। सभी ने कृषि शिक्षा सस्ती करने को लेकर एक स्वर में आवाज़ बुलंद की, क्योंकि कृषि विवि में पढ़ने वाले या पढ़ने की इच्छा रखने वाले ज़्यादातर स्टूडेंट्स किसान परिवारों से होते हैं। 

इन परिवारों की कुल वार्षिक आय उतनी भी नहीं होती है, जितनी यहां की फीस है। इसलिए कुछ कर्ज़ लेकर पढ़ते हैं, तो कुछ बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं। यह कैसी व्यवस्था है जिसमें किसानों को उपज को इस वजह से सस्ता रखा जाता है, ताकि हर किसी को खाना उपलब्ध हो सके। तो फिर उसके बच्चों को सस्ती शिक्षा क्यों नही उपलब्ध कराई जा सकती है?

अगर इसपर आप चुप हो जाते हैं या आपको ये सब गलत नहीं लगता है, तो आपको अपने नैतिकता के तराजू को ठीक करवाने की ज़रूरत है क्योंकि यह सरासर अन्याय है और व्यवस्था के शोषण का जीवंत उदाहरण है।

मैं सारे साथी विद्यार्थियों से कहना चाहता हूं कि आप किसी दूसरे के लिए नहीं बल्कि खुद के लिए लड़िये। अगर आप चाहते हैं कि उत्तर प्रदेश में भी शिक्षा सस्ती हो, तो आइए हमारे साथ और स्वर से स्वर मिलाकर ऊंची आवाज़ में बोलिये “कृषि शिक्षा सस्ती हो”।

 

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