31 अक्टूबर 1984 को देश की तत्काल प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी जी का कत्ल हो जाता है। क़त्ल करते है उनके अंगरक्षक सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने पूरी 31 गोलियां चलाई थी। जिसमें से 23 गोलियों उनके शरीर को पार करके निकल जाती हैं।
ये हमला बदला था, 6 जून 1984 में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार का। जिसमें इंदिरा गाँधी के हुक्म पर भारतीय सेना जिसका नेतृत्व आर्मी चीफ जनरल अरुण शंकर वैद्य, लेफ्टिनेंट जनरल कृष्णस्वामी सुंदरजी, लेफ्टिनेंट जनरल कुलदीप सिंह बराड़ और लेफ्टिनेंट जनरल दयाल सिंह कर रहे थे, ने अकाल तख्त और हरमंदर साहिब से खालिस्तानी आतंकियों को निकालने की कोशिश की थी।
इस हमले में खालिस्तानी तो मारे गये पर साथ में श्री अकाल तख्त साहिब को टैंकों व तोपों से उड़ा दिया गया और यही आगे जाकर ना सिर्फ इंदिरा गाँधी बल्कि जनरल अरुण शंकर वैद्य की भी हत्या का कारण बना।
इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद सिख दंगे
उसके बाद दंगे हुए जिन्हें दंगा नही बल्कि इतिहास ने जेनोसाइड कहा था। 3 दिनों के इन दंगों में 2800 बेगुनाह सिखों कल मार दिया गया। हालांकि इस मामले में काँग्रेसी ही नहीं बल्कि आरएसएस से लोगों के नाम भी आए थे, जिनपर जंगपुरा में कत्ल ए आम कराने के इल्ज़ाम थे।
इंदिरा गाँधी को अपनी माँ मानने वाले ये नेता थे हरि कृष्ण लाल भगत, सज्जन कुमार, जगदीश टाइटलर और कमलनाथ जिनपर सबसे ज़्यादा आरोप लगे। इनमें से सज्जन कुमार को इसी साल दिल्ली हाई कोर्ट ने सुल्तानपुरी और मंगोलपुरी में सिखों की हत्या के आरोप में दोषी मानते हुए उम्रकैद की सज़ा सुनाई।
इस आदमी पर एक औरत जगदीश कौर ने अपने एक बेटे, पति और भाई समेत खानदान के 4 लोगों के कत्ल का इल्ज़ाम लगया था और इसी में सज्जन कुमार दोषी साबित हुआ।
कहते हैं कि बीबी जगदीश कौर ने अपने घर के उन 4 लोगों का अंतिम संस्कार अपने ही घर के फर्नीचर की लकड़ियों से किया था क्योंकि सज्जन कुमार और उसके गुंडों ने यह धमकी दी थी कि अगर कोई हिन्दू (जैसा उस वक्त कई आ भी रहे थे) सिखों को बचाने आया तो उसे भी मार देंगे।
इसकी वजह से वहां के हिन्दू चाह कर भी सिखों की मदद नहीं कर पा रहे थे। इस बात को खुद जगदीश कौर के बेटे ने माना है जो खुद एक गवाह था। जगदीश कौर जी ने सज्जन कुमार के खिलाफ 30 साल जंग लड़ी, जिसमें उन्हें सफलता मिली और आज कातिल सज्जन कुमार जेल में है।
कमलनाथ को भी माना जाता है दंगों का आरोपी
इंदिरा गाँधी के एक और मुंह बोले बेटे का ज़िक्र आता है और वे और कोई नहीं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ हैं। कमलनाथ के नाम को सबसे पहले लेने वाले व्यक्ति थे संजय सूरी। जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई, तब पेशे से पत्रकार संजय सूरी इंडियन एक्सप्रेस में काम करते थे।
जब इंदिरा गाँधी का शव एम्स से तीन मूर्ति भवन ले जाया गया तो संजय सूरी ने बताया कि वे वहीं थे और उन्होंने वहां के लोगों की भीड़ को “खून का बदला खून से लेंगे” जैसे नारे लगाते गए देखा था।
फिर जब वे वहां से निकले तो उन्हें पता चला कि तीन मूर्ति भवन से थोड़ी ही दूर गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब जहां 9वें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी महाराज का अंतिम संस्कार हुआ था, जिन्होंने हिन्दुओं के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए अपना सर कटवा दिया था, वहां पर एक भीड़ सिखों को मारने के लिए अंदर घुसने की कोशिश कर रही थी।
वहां पर दो लोगों को ज़िंदा भी जला दिया गया और पुलिस तमाशबीन बनी रही। संजय सूरी बताते हैं कि उन्होंने खुद कमलनाथ को उस भीड़ का नेतृत्व करते हुए देखा था और जब संजय सूरी कमलनाथ के पास गए, तो उन्होंने दंगाइयों को हाथ दिखाया ओर वे रुक गये।
इन सब बातों का ज़िक्र संजय सूरी ने अपनी किताब 1984: The Anti-Sikh Riots and After में किया था। इसके साथ ही उन्होंने यही बातें कई मीडिया इंटरव्यूज में भी बताई। कमलनाथ को जब नानावटी कमिशन के सामने पेश किया गया, तो कमलनाथ ने माना था कि वे रकाबगंज गुरुद्वारा गए थे। पर दंगा करने नहीं, दंगा रुकवाने के लिए।
भले ही तब नानावटी कमिशन ने उन्हें रिहा कर दिया था। पर आज मोदी सरकार द्वारा बनाई गई SIT ने फिर उनके खिलाफ जांच बिठाई है।
जगदीश टाइटलर जिसे आम जनता माफ नहीं कर रही
जो तीसरा बेटा है उसका नाम है जगदीश टाइटलर। सिखों की हत्या में शामिल होने का कलंक लेकर बैठे जगदीश टाइटलर खुद जन्म से एक सिख थे। इनका असली नाम जगदीश कपूर था लेकिन बचपन में पिता की मौत के बाद जेम्स डगलस टाइटलर ने उनको पाला जिसके बाद उन्होंने धर्म बदलकर उनका नाम जगदीश टाइटलर हो गया।
कहते हैं कि उनपर 1984 में दिल्ली के गुरुद्वारा पुलबंगश को जलाने और 3 सिख बादल सिंह, ठाकुर सिंह और गुरचरण सिंह के कत्ल का भी आरोप है और साथ में गवाह खरीदने की कोशिश का भी। ये बात दुनिया को बताई थी अभिषेक वर्मा ने जो खुद एक काँग्रेसी नेता का बेटा है और देश के हथियार उद्योग का बड़ा नाम है।
2018 में शिरोमणि अकाली दल ने एक वीडियो सबूत के तौर पर दुनिया को दिखाया था। जिसमें उनका दावा था कि टाइटलर 100 सिखों को मारने की बात कबूल रहा था। कहते हैं कि सुरेंदर सिंह नाम के एक ग्रंथी ने अपने एफिडेविट में ये लिखा था कि उसने टाइटलर को यह कहते हुए सुना था कि इन सिखों ने हमारी माँ मार दी अब इन्हें मारो।
लेकिन इस मुद्दे पर जगदीश टाइटलर ने भी अपनी राय रखी थी।
- उनका कहना था कि जब दिल्ली में क़त्ल-ए-आम हो रहे थे, तो उन्होंने दिल्ली में अपने घर में 12 दिन तक 10 सिख परिवारों को छुपा कर रखा था। जिससे उन सिख परिवारों की जान बची थी।
- साथ में सुरेंदर सिंह जिनके एफिडेविट की वजह से टाइटलर को नानावटी कमिशन द्वारा नोटिस जारी हुआ था, ने खुद वकील फुल्का पर आरोप लगाया। सुरेंदर ने कहा कि उन्होंने जगदीश टाइटलर का नाम लिया ही नहीं था। बल्कि फुल्का ने उनसे ये कह कर दस्तखत लिए थे कि यह कॉम्पनसेशन के लिए है और क्योंकि उन्हें अंग्रेज़ी नहीं आती थी इसलिए वे पढ़ नहीं पाए। बाद में सुरेंदर सिंह ने दूसरा एफिडेविट बनवाया जो गुरुमुखी में था और नानावटी कमिशन के पास गया। जिसमें जगदीश टाइटलर का नाम नहीं था।
- जगदीश टाइटलर ने जब ये सारे क़त्ल ऐ आम हो रहे थे तब BJP नेता मदन लाल खुराना के सामने ही दिल्ली के तब के गवर्नर को मार देने की बात भी कही थी। उन्होंने जब देखा था कि बाहर सिख मर रहे हैं और यहां गवर्नर बियर पी रहा है तब उन्होंने ये बात कही।
- इसके अलावा टाइटलर ये भी दावा करते हैं कि जब गुरुद्वारा पर हमला हुआ, तब वे डीडी न्यूज़ के दफ्तर में थे जिसके गवाह थे प्रतिभा पाटिल, अरुण नेहरू और अमिताभ बच्चन
इसके अलावा और भी बातें रखी गई और इसी वजह से खुद नानावती कमिशन ने टाइटलर को रिहा कर दिया। पर आज भी टाइटलर को इस इल्ज़ाम से देश की जनता ने बरी नहीं किया है
इस क़त्ल ऐं आम को आज 35 साल हो गए कुछ गुनहगार आज जेल में ज़रूर हैं। पर ज़्यादातर आज भी आज़ाद हैं और यही हम सबके लिए दुख की बात है। जब तक सज्जन कुमार की तरह बाकी कातिलों को सज़ा नही होती तब तक न्याय अधूरा है।