संविधान की धारा 340 के प्रावधान के अनुसार भारत सरकार को एक कमीशन बहाल कर सामाजिक और शैक्षिणक रूप से पिछड़े वर्ग को प्रशासन में उनकी जनसंख्या के अनुपात में भागीदारी सुनिश्चित करना था मगर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इसे नज़रअंदाज़ किया।
पिछड़ों के दबाव में उन्हें प्रथम ओबीसी कमीशन बहाल करना पड़ा, जिसे काका कालेलकर कमीशन के नाम से भी जाना जाता है।
इस कमीशन की रिपोर्ट को नेहरू ने रद्दी की टोकरी में फेंक दिया फिर 1979 में द्वितीय ओबीसी कमीशन वी.पी. सिंह की अध्यक्षता में गठित हुई, जिसे मंडल कमीशन के नाम से जाना जाता है।
मंडल कमीशन की रिपोर्ट को भी काँग्रेस की केन्द्र सरकार ने रद्दी की टोकड़ी में डाल दिया। 1979 में जनता दल ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में वादा किया कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आएगी तो मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू कर दिया जाएगा। चुनाव के बाद वी.पी. सिंह की अध्यक्षता में बीजेपी के सहयोग से जनता दल की सरकार बनी।
मंडल कमीशन को लागू करने की घोषणा
7 अगस्त 1990 को प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह ने मंडल कमीशन को लागू करने की घोषणा कर दी। पूरे देश में मंडल कमीशन के विरोध और समर्थन में आंदोलन होने लगे। प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह के शासनकाल में राम मंदिर के मामले ने ज़ोर पकड़ना शुरू किया।
भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने मंडल कमीशन के विरोध में 25 सिंतबर 1990 को गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक के लिए रथ यात्रा शुरू की। लोगों को समझना होगा कि मंडल कमीशन को लागू करने के फैसले के खिलाफ इस रथ यात्रा की शुरुआत हुई।
यह रथ यात्रा विभिन्न प्रदेशों से गुज़रते हुए बिहार के समस्तीपुर ज़िले में पहुंची, जहां तत्कालीन बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के आदेश पर समस्तीपुर ज़िला के परिसदन में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।
इसके विरुद्ध भाजपा ने वी.पी. सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिस कारण उनकी सरकार गिर गई। इसके बाद काँग्रेस के सहयोग से चन्द्रशेखर सिंह 10 नवंबर 1990 को प्रधानमंत्री बने।
चुनाव प्रचार के दौरान राजीव गाँधी की मृत्यु
लगभग 4 महीने पूरे होते ही काँग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया और चन्द्रशेखर सिंह की सरकार गिर गई फिर 1991 में लोकसभा का मध्याविधी चुनाव हुआ और चुनाव प्रचार के दौरान राजीव गाँधी मारे गए।
21 जून 1991 को पी. वी. नरसिम्हा राव भारत के प्रधानमंत्री बने। इस चुनाव में भाजपा 85 से 120 सीटों पर पहुंच गई। इसके ठीक बाद हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की सरकार कल्याण सिंह के नेतृत्व में बनी जो ओबीसी समाज से थे।
अब मंदिर आंदोलन ज़ोर पकड़ने लगा, ओबीसी के लोग सरकारी नौकरी को ताक पर रखकर मंदिर आंदोलन में कूद पड़े। कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार जो ओबीसी समाज से आते हैं, उन्होंने इसमें अग्रणी भूमिका निभाई। 6 दिसंबर 1992 को कार सेवकों ने बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर डाला।
इस घटनाक्रम के 27 वर्षों के अंदर ओबीसी के लोगों ने कभी भी राष्ट्रीय स्तर पर मंडल कमीशन की सिफारिश लागू होने के बावजूद सरकार द्वारा ओबीसी के हितों में लिए गए फैसले का मूल्यांकन नहीं किया। इन सबके बीच वे मंदिर आंदोलन में भीड़ का हिस्सा बनते रहें।
शीर्ष अदालत का फैसला
गौरतलब है कि देश की शीर्ष अदालत का फैसला आ चुका है, जिसमें विवादित भूमि 2.77 एकड़ को रामलला को सौंपने एवं ट्रस्ट बनाकर मंदिर निर्माण का आदेश दिया गया है। मस्जिद के लिए 5 एकड़ ज़मीन अयोध्या के अंदर प्रमुख जगह पर देने का आदेश दिया गया है।
इस ट्रस्ट में ओबीसी, अनुसूचित जाति तथा जनजाति के कितने सदस्यों को जगह मिलेगी यह देखना दिलचस्प होगा।