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क्यों पीरियड्स की बात आते ही लोगों की यौन कुंठा ज़ाहिर हो जाती है?

मुझे याद है कोलकाता में पहली नौकरी के दौरान जब मैंने बॉस से कहा कि आज सेहत अच्छी नहीं है, तब उन्होंने चेहरे पर मुस्कान बिखेरते हुए कहा, “पीरियड्स है क्या?” मैं मानती हूं कि आज की तारीख में पीरियड्स पर खुलकर चर्चा होनी चाहिए मगर जिस तरीके से बॉस ने प्रतिक्रिया दी थी, वह गलत है।

पीरियड्स की बात आते ही लोगों की यौन कुंठा ज़ाहिर हो जाती है, जिस पर इस समाज को चिंतन करना होगा।

पीरियड्स के दौरान महिलाएं किन स्थितियों से गुज़रती हैं, इस बात की कल्पना हमारा पितृसत्तात्मक समाज कतई नहीं कर सकता है। मैं अपनी बात बताऊं तो पहले पीरियड के वक्त मुझे जानकारी भी नहीं थी कि यह क्यों होता है और इस दौरान किन-किन चीज़ों का ख्याल रखना होता है?

हमें किसी ने ना तो घर में और ना ही स्कूल में पीरियड्स के बारे में बताया। होश संभालने के बाद किताबों और यूट्यूब के ज़रिये जानकारी मिली कि पीरियड्स का मतलब क्या होता है।

मेरे घर में पुरुषों की तो बात छोड़ दीजिए, महिलाओं के बीच भी हमें इजाज़त नहीं थी कि हम इस बारे में खुलकर बात करें। पीरियड्स से जुड़ी एक घटना के बारे में आपको बताने जा रही हूं जिसे जानने के बाद शायद आपको अंदाज़ा हो जाएगा कि इसे लेकर हमें कितनी परेशानियां झेलनी पड़ती हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

मैं उस समय 7वीं कक्षा में पढ़ती थी और अचानक ब्लिडिंग देखकर घबरा ही गई। यूं लगा जैसे कोई बीमारी हो गई है। मैं उसी हालत में घर आ गई और मम्मी को सारी बात बताई फिर माँ ने मुझे कमरे में ले जाकर ज़ोर की डांट लगाई कि मैंने घर के पुरुष सदस्यों के सामने यह सब क्यों कहा?

उस रोज़ माँ ने मुझे सैनिटरी पैड देते हुए कहा कि स्कूल में मैं इसे बैग में रखूं और जब भी ऐसा कुछ हो तो इस्तेमाल कर लूं मगर यह नहीं बताया कि लड़कियों में पीरियड्स एक स्वाभाविक चीज़ है। मैं अगले दिन स्कूल गई और फिर से क्लास में ही ब्लिडिंग शुरू हो गई। उसी अवस्था में मैं वॉशरूम गई और वहां जाकर पैड चेंज किया।

जब मैं वापस क्लासरूम आई तब देखा सारे बच्चे हंस रहे थे। यानी कि उन्हें इस बारे में जानकारी थी। ऐसा क्या है कि समाज में पुरुषों को इन चीज़ों की जानकारी प्राप्त करने का अधिकार होता है और हम लड़कियां ही वंचित रह जाती हैं?

आज मेरी उम्र लगभग 30 साल है और पहले पीरियड्स से लेकर अब तक ना जाने कितनी परेशानियों का सामना किया है। कई दफा तो ऐसा होता था कि शादी में हम सभी जब ट्रेन में जा रहे होते थे तब 20 घंटे तक हमें पैड चेंज नहीं करने दिया जाता था। घरवालों का कहना था कि इस बारे में पुरुष सदस्यों को पता लग जाएगा तो वे क्या सोचेंगे? मैंने ट्रेन में कई दफा ऐसी यात्राएं की हैं। एक बार यात्रा के दौरान लंबे वक्त तक पैड ना बदलने के कारण मुझे इंफेक्शन हो गया था।

प्रतीकात्मक तस्वीर

पीरियड्स के दौरान होने वाली बहुत सी परेशानियों के लिए हम लड़कियां खुद ज़िम्मेदार होती हैं। कई दफा शर्म की वजह से हम घंटों गीली पैंटी पहनकर रहती हैं जिस कारण योनि के पास जलन महसूस होती है। इसके लिए समाज को ज़िम्मेदार ठहराना कतई उचित नहीं है, क्योंकि पुरुष ना देख लें इसलिए तो हम यह सब करती हैं।

जिन पुरुषों के सामने पीरियड्स और सैनिटरी पैड के बारे में ज़िक्र करना हमें पाप लगता है, वही पुरुष जब ‘पैडमैन’ फिल्म देखते हैं, तो उसे यह समाज स्वीकार कर लेता है। यह कैसी दोगली मानसिकता है?

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