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“डॉ. फिरोज़ खान, मुट्ठीभर विरोधियों से मत घबराइए हम आपके साथ हैं”

डॉ. फिरोज आपके जज़्बे और संघर्ष को सलाम। आपकी मेहनत, आपकी लगन और आपके समर्पण को सलाम। आपने लीक से हटकर एक भाषा से प्रेम किया, उस प्रेम को सलाम। मुझे पता है कि आपके यहां तक पहुंचने की डगर आसान नहीं रही होगी। आपने बहुत संघर्ष करके यह मुकाम हासिल किया था।

डॉ. फिरोज़ खान, फोटो साभार- सोशल मीडिया

इन संकीर्ण मानसिकता वाले लोगों से घबराइए मत

डॉ. फिरोज इन संकीर्ण मानसिकता वाले लोगों से घबराने की ज़रूरत नहीं है। आपका विरोध करने बैठे लोग जिस महापुरुष का बखान करते नहीं थकते, उन्हीं स्वामी विवेकानंद ने कहा था,

जब आप पहली बार समाज की परंपराओं से हट कर कुछ करेंगे तो ये समाज उसका विरोध करेगा लेकिन अंत में विजय आपकी होगी और समाज को झुकना पड़ेगा, बदलाव करना पड़ेगा।

इनका विरोध दर्शाता है कि इन्होंने हमारे महापुरुषों को भी ठीक से नहीं पढ़ा है। यह इनकी अज्ञानता का प्रमाण देने के लिए काफी है।

जिस भाषा के कारण ये आपका विरोध कर रहे हैं, उस भाषा की आज जो स्थिति है, वह किसी से छिपी नहीं है और ये स्थिति भी इनकी इस ब्राह्मणवादी, संकीर्ण मानसिकता के कारण है।

विरोध करने वाले लोगों से मेरे सवाल

मेरा विरोध करने वाले लोगों से सवाल है कि अगर आपको संस्कृत भाषा की इतनी ही चिंता है, तो बताइए कि

डॉ. फिरोज का विरोध करने वाले मठाधीशों,

असल में तुमको भाषा की चिंता नहीं है। तुम लोग एक केंद्रीय विश्वविद्यालय को सांप्रदायिकता के ज़हर में डुबो देना चाहते हो। आज पूरे देश में जो सांप्रदायिकता का ज़हर फैलता रहा है, उसे तुम लोग विश्वविद्यालयों और उच्च संस्थानों में फैलाकर सिर्फ अपना उल्लू सीधा करना चाहते हो। तुम्हें भाषा से कोई मतलब नहीं है।

इसलिए फ्री की लेकिन संस्कृत के लिए बहुत काम की सलाह देता हूं कि भाषा को भाषा ही रहने दो, उसे धर्मयुद्ध का अखाड़ा मत बनाओ। धर्मयुद्ध के अखाड़े के कारण हमारे समाज का बहुत नुकसान हो चुका है, अब और मत कराओ।

संस्कृत के किसी श्लोक, सूक्ति या कहीं भी यह नहीं लिखा है कि दूसरे धर्म के लोग संस्कृत नहीं पढ़ सकते।

विरोधियों की सच्चाई

आप जैसे लोगों को सिर्फ मुस्लिम के संस्कृत पढ़ने से दिक्कत नहीं है बल्कि तुमको दलित, शोषित, वंचित, पिछड़े, आदिवासी तबके के भी संस्कृत पढ़ने से दिक्कत है। इसलिए सलाह मानो और अपने अंदर बदलाव लाओ मठाधीशों। यह देश संविधान से चलता है, मनुस्मृति से नहीं।

डॉ फिरोज़ खान के समर्थन में बीएचयू के विद्यार्थी, फोटो साभार – ट्विटर

डॉ फिरोज़ आपके इस संघर्ष के दौर में बीएचयू के वर्तमान छात्र- छात्राएं तथा पुरातन छात्र- छात्राएं आपके साथ हैं। इसलिए इन चंद संकीर्ण मानसिकता वाले लोगों से घबराइए मत। आप स्वतंत्र भारत में रहते हैं, जो बाबा साहब के बनाए संविधान से चलता है।

उस किताब ने आपको स्वतंत्र भारत में स्वतंत्रता पूर्वक जीने और शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार दिया है। अत: वापस आईए और अपने हक-हकूक की लड़ाई लड़िए। हम सब इस देश के संविधान और आपके साथ हैं।

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