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स्कूल की छुट्टियों में इस शिक्षक ने बच्चों के साथ संवारे उत्तराखंड के पारंपरिक जलस्रोत

जब भी आपदा की बात होती है तो भारत में उत्तराखंड राज्य का चेहरा उभर कर आता है। पलायन और आपदा की मार झेलते इस राज्य में वीरानगी है। जो लोग गाँव से बाहर निकल सकते थे निकल गए और जो नहीं जा सकते वे संघर्षरत हैं।

ऐसे में स्वास्थ और शिक्षा पीछे छूटे इन निवासियों के लिए बड़ा मुद्दा है। अगर शिक्षा की बात करें तो कई सारे शिक्षक हैं जो अतिदूरस्थ या आपदा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील इलाकों में नौकरी नहीं करना चाहते हैं। इन सबके बीच वहीं एक शिक्षक हैं, जिन्होंने दुर्गम इलाकों को ही अपनी कर्मस्थली बना डाला और उसे अपनी मेहनत से संवारा।

आइए मिलवाते हैं उस शिक्षक से जिनका नाम है आशीष डंगवाल। आशीष ने आपदा की दृष्टि से उत्तरकाशी के एक अतिसंवेदनशील और दुर्गम इलाके केलसू घाटी में बतौर शिक्षक नौकरी की। उन्होंने ना सिर्फ अपने विद्यार्थियों बल्कि पूरे गाँव वालों के साथ एक ऐसा आत्मीय रिश्ता बनाया कि जब उनका तबादला हुआ तो पूरा स्कूल और गाँव रोया।

आशीष के विदाई समारोह में भावुक छात्र। फोटो साभार – फेसबुक

तबादले के बाद एक नई मुहिम

उत्तरकाशी के भंकोली के बाद आशीष का तबादला टिहरी ज़िले में हुआ, जहां इन्होंने इस बार फिर कुछ अलग किया है। आशीष ने टिहरी ज़िले में स्थित जौनपुर ब्लॉक के गढ़खेत में दशकों पुराने पनघट को नया रूप और रंग दे दिया है। जी हां, राजकीय इंटर कॉलेज गढ़खेत के 13 स्कूली बच्चों के साथ आशीष ने एक नई मुहिम शुरू की है।

आशीष समेत उनके 13 स्कूली बच्चों ने पहाड़ों पर जीर्ण-शीर्ण हो चुके पौराणिक, छोटे-छोटे पनघटों को पुनर्जीवित करने का बेड़ा उठाया है। इसकी शुरुआत उन्होंने अपने स्कूल से 6 किमी दूर स्थित सड़ब का खाला नाम के पनघट से कर दी है।

उन्होंने 24 अक्टूबर से 10 दिन तक स्कूल की छुट्टी के बाद इस पनघट को नया रूप दिया। आज इस पनघट की सूरत पूरी तरह से बदल गई है। आशीष ने बताया कि इसके पीछे उद्देश्य पहाड़ी संस्कृति के प्रतीक तथा बिजली बनाने वाली इन सबसे प्राचीन तकनीकों को पुनर्जीवित करना है।

पनघट को पहाड़ में घट कहा जाता है। आशीष मानते हैं कि इन घटों को स्थानीय पर्यटन के प्रतीक भी बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा,

हमारे वाले घट पर सेल्फी लेने वालों की तादाद बहुत बढ़ गयी है। यह बिल्कुल रोड पर ही है।

उन्होंने इस अभियान का नाम दिया ‘मेरा घट बुलाए रे’।

मुख्यमंत्री तक ने की तारीफ

उनकी विदाई की तस्वीरें और वीडियो जब सोशल मीडिया पर वायरल हुई तो आम लोगों समेत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत तक ऐसे शिक्षक से मिलने के लिए खुद को रोक नहीं पाए।

आशीष डंगवाल मूलतः उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग के रहने वाले हैं। 4 साल पहले ही शिक्षा विभाग में तैनात हुए हैं। इन 4 सालों में शिक्षक आशीष जिस स्कूल में तैनात थे उन बच्चों से और गाँव वालों से उनका गहरा रिश्ता बन गया था। हालात ये हुए कि जब आशीष का ट्रांसफर हुआ तो गाँव वालों ने आंखों में आंसू लिए, खूब नाच-गाने के साथ उनको विदा किया।

आशीष डंगवाल ने बताया कि यह उनकी पहली नियुक्ति है जो उत्तरकाशी में हुई थी। इस पहली नियुक्ति में ही उन्होंने पूरे गाँव के साथ एक ऐसा रिश्ता स्थापित कर लिया था, जिसके बाद उन्हें खुद वहां से विदाई लेने में बहुत कष्ट हुआ।

जब रोया था पूरा गाँव

यूं तो दुर्गम क्षेत्रों में कई शिक्षक तैनात हैं लेकिन आशीष उन शिक्षकों से बहुत अलग हैं। उन्होंने उस दुर्गम जगह को सिर्फ नौकरी के तौर पर ना देखकर एक ज़िम्मेदारी के रूप में देखा।

उनका विदाई समारोह किसी बेटी की विदाई से कम नहीं था। पारंपरिक ढोल और नगाड़े बजाते हुए गाँव वालों और बच्चों ने उन्हें नम आंखों से विदाई दी।

आशीष के विदाई समारोह में भावुक गाँववासी। फोटो साभार – फेसबुक

आशीष का कहना है कि उनकी नियुक्ति भले ही किसी और जगह पर हो गई हो लेकिन वे गाँव वालों से वादा करके आए हैं कि उनका दूसरा घर भकोली गाँव ही होगा और वह हर 3 महीने में गाँव जाते रहेंगे। आशीष ने बताया कि जिस जगह पर उनकी नियुक्ति थी वह गाँव बेहद ही दुर्गम इलाके में था लेकिन उन्होंने कभी भी इस गाँव को दुर्गम नहीं समझा।

आशीष का भी सबसे एक अटूट रिश्ता बन गया है। तबादले के बाद उनका कहना है,

दूसरी जगह पर मैं बच्चों को पढ़ा तो रहा हूं लेकिन उनकी शक्ल देखकर मुझे पुराने सारे बच्चे याद आ जाते हैं।

गाँव वाले उनको बेहद याद कर रहे हैं। गाँव वाले आज भी चाहते हैं कि वापस जब ट्रांसफर हो तो आशीष गाँव के ही स्कूल में तैनात होकर आएं।

पोस्टमैन इंडिया का आशीष को सलाम।

 

 

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