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ये व्यंजन आपको लकवा और पथरी जैसी बीमारी से कर देंगे दूर

पहाड़ी खाना अब सिर्फ पहाड़ों में ही नहीं बल्कि शहरों में भी चटकारे लेकर खाया जाता है। पहाड़ी यानी हिमाचल और उत्तराखंड के लोग कभी सब्जियां खरीदा नहीं करते थे क्योंकि पहाड़ों में ही कई तरह की पौष्टिक सब्जियां प्रकृति ने ही उन्हें उपहार में दी थी।

उत्तराखंड के खेतों का अनाज, फोटो साभार- प्रियंका गोस्वामी

इससे वे विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाते थे। विकास हुआ तो लोग धीरे-धीरे अच्छी नौकरियों की तलाश में शहरों की ओर पलायन करने लगे। पहाड़ों के लिए तो यह पलायन नुकसानदायक था लेकिन इससे पहाड़ के व्यंजनों की खुशबू दूर-दूर तक फैलने लगी। लोग शहरों में गए लेकिन खानपान पहाड़ का ही रहा।

पहाड़ी लोगों की मिल-बांटकर खाना खाने की प्रवृति के कारण शहर के लोग भी मंडुए की रोटी और हिमाचल के मदरे का स्वाद चखने लगे। शहर के लोगों को यह स्वाद ना सिर्फ पसंद आया बल्कि कहीं-कहीं तो शहर के लोगों ने इसे अपने भोजन में शामिल कर लिया।

उत्तराखंड के खेतों का अनाज, फोटो साभार- प्रियंका गोस्वामी

अब देहरादून, शिमला जैसे पहाड़ी राज्यों के बड़े शहरों के शादी ब्याहों में कंडाली का साग, लेंगड़ की सब्जी, चौंसा, पहाड़ी काखड़ी(खीरा) आदि दिखने लगा है। पहाड़ी गानों पर नाचते और पहाड़ी डिशों से सनी उंगलियां चाटते पहाड़ी ही हर समारोह का आकर्षण बन जाते हैं। तो चलिए जानते हैं कुछ प्रसिद्ध पहाड़ी व्यंजनों को।

मंडुए की रोटी (कौदा)

मंडुए की रोटी मंडुए जिसे उत्तराखंड में कौदा कहते हैं, के आटे से बनती है। यह पहाड़ों का स्थानीय अनाज है। स्वादिष्ट भी है और स्वास्थ्यवर्धक भी होती है। मंडुए की रोटी भूरे रंग की बनती है। पहाड़ के घी के साथ मंडुए की रोटी का स्वाद अनूठा है। कौदा की रोटी को घी, दूध,भांग और तिल की चटनी के साथ परोसा जाता है।

कोदे की रोटी, फोटो साभार- राजेश भट्ट

उत्तराखंड के खेतों का अनाज, फोटो साभार- प्रियंका गोस्वामी

झोल

यह लस्सी या दही में तड़का लगाकर तैयार किया गया पेय होता है। इसे चावल और रोटी के साथ भी खाया जाता है। इसे बनाने में बेहद कम समय लगता है, इसलिए पूरे पहाड़ में यह चाव से बनाया और खाया जाता है।

कंडाली का साग

कंडाली को कहीं-कहीं सिसौंण के नाम से भी जाना जाता है। यह साग बहुत ज्यादा पौष्टिक होता है। सिसौंण को आम भाषा में लोग ‘बिच्छू घास के नाम से भी जानते हैं।

बिच्छू घास/कंडाली, फोटो साभार- सोशल मीडिया

उत्तराखंड में इसे कंडाली कहा जाता है। इसके पत्तों या डंडी को सीधे छूने पर यह दर्द देता है। इसलिए साग के लिए इसके पत्तों को तोडऩे के लिए लोहे के चिमटे का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी पत्तियों से साग बनाया जाता है। गाँव-देहात की अनुभवी औरतें इसे बड़ी सावधानी से हाथ में कपड़ा लपेटकर काटती हैं। पहाड़ों में लोग मानते हैं कि कंडाली का साग नियमित खाने से लकवा नहीं होता।

चौंसा

चौंसा पहाड़ों में खाया जाने वाला दाल का एक प्रमुख व्यंजन है। काली उड़द को पीस कर बनाई जाने वाली इस दाल में प्रोटीन काफी मात्रा में होता है इसलिए स्वास्थ्य के लिजाज से भी इसे अच्छा माना जाता है।

लेंगड़ /लिंगड़ी

यह भी एक जंगली हरी सब्जी है जो पानी के किनारे खुद पैदा होती है। यह काफी पौष्टिक होती है। हिमाचल और उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में यह काफी चाव से खाई जाती है। अब तो शहरों में यह बिकने भी लगी है।

पहाड़ी सब्जी लिंगड़ा, फोटो साभार- सोशल मीडिया

काप या कापलु

यह एक हरी सब्जी है। सरसों, पालक आदि के हरे पत्तों से बनाया जाने वाला ‘काप’ पहाड़ी खाने का एक अहम अंग है। इसे रोटी और चावल के साथ लंच और डिनर में खाया जाता है। यह एक शानदार और पौषक आहार है। ‘काप/कापला’ बनाने के लिए हरे साग को काटकर उबाल लिया जाता है। उबालने के बाद साग को पीसकर पकाया जाता है।

गहत की दाल

गहत की दाल पहाड़ी क्षेत्र के लगभग हर घर में अक्सर बनती है। गहत के बारे में कहा जाता है कि इसकी करी से पेट की पथरी (स्टोन) कट जाती है। इसकी तासीर गर्म होती है, इसलिए सर्दियों में इस दाल का सेवन ज्यादा होता है।

मदरा

दही के तड़के के साथ चने आदि के साथ तैयार किया जाने वाला व्यंजन। हिमाचल के पहाड़ों की शादियों में इस व्यंजन के बिना समारोह अधूरा माना जाता है।

टेमरू, भांग व तिल की चटनी

चटनी का पहाड़ का खाने में विशेष महत्व है। दाल-चावल हो या रोटी सब्जी पहाड़ी लोगों को साथ में चटनी चाहिए। उत्तराखंड के गढ़वाल के कई क्षेत्रों में टेमरू की कलियों की चटनी बनाई जाती है, जो बहुत ही स्वादिस्ट होती है। इसके साथ ही भांग और तिल की चटनी जो काफी खट्टी बनाई जाती है और इन्हें कई तरह से खाने और रोटी के साथ खाया जाता है।

भांग की चटनी हो या तिल की चटनी, इसके लिए दानों को पहले गर्म तवे या कड़ाही में भूना जाता है। इसके बाद इन्हें पीसा जाता है। इसमें नमक, मिर्च आदि मसाले स्वादानुसार डालकर अच्छे से सभी को पीस लिया जाता है, बाद में नींबू का रस डालकर इसे परोसा जाता है। अगर आप भांग का नाम सुनकर चिंतित हैं तो परेशान ना हों, इसके दानों में नशा नहीं होता है और इनका स्वाद अदभुत होता है।

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