एक व्यक्ति ने मुझसे ‘कोरा’ पर सवाल किया कि दुनिया में कौन सा धर्म राज कर रहा है? यह लेख उसी सवाल का जवाब है, जो मामूली बदलाव के साथ आपके समक्ष है।
अच्छा, तो मेरी समझ में, यह धर्मों के दावों के हिसाब से गलत सवाल है। वे दावा करते हैं कि धर्म लोगों की बराबरी, प्रेम, परोपकार, मन की शुद्धता आदि के लिए हैं। वे यह भी कहते हैं कि धर्म ईश्वर के नज़दीक जाने का ज़रिया है। साथ ही यह एक बेहतर जीवन तथा मरने के बाद भी कई चीज़ें मुहैया कराता है। हालांकि, यह सब वादे हैं।
धर्म के नाम पर कॉम्पीटीशन
ऐसा बताया जाता है कि कोई भी धर्म राज करने के उद्देश्य से नहीं बल्कि मानवता की भलाई करने के लिए शुरु किये गए हैं। लेकिन व्यवहार में देखें, तो आपका सवाल एकदम सटीक और धर्मों की पोल खोलने वाला है। धर्म के नाम पर तरह-तरह के पागलपन हैं। धर्म प्रचार से लोगों को अपने धर्म में शामिल करने की होड़ है।
जैसे धर्म ना हुआ, कोई कॉम्पिटिशन हो गया हो।
- कौनसा धर्म सबसे पुराना है ?
- कौनसा धर्म सबसे अच्छा है?
- किनके धर्म को मानने वालों की संख्या सबसे ज़्यादा है?
- कौन सा धर्म का लोग सड़क अधिक जाम करता है?
- कौन से धर्म के लोग ज़्यादा शोर मचाते हैं?
- कौन से धर्म के लोगों के ज़्यादा इबादतगाह हैं?
अजीब-अजीब से सवाल और कॉम्पीटीशन हैं।
धर्म सत्ता को बरकरार रखने का हथियार
धर्म के दावे और उनके माननेवाले लोगों के व्यवहार में बहुत फर्क है। वह इसलिए क्योंकि धर्म वास्तव में सत्ता की भूख के लिए और सत्ता को बनाए रखने के लिए चलाया जा रहा है।
कभी लोगों को गुलाम बनाने के लिए ईसाई मिशनरियों ने धर्म का सहारा लिया और औपनिवेशिक दासता को बढ़ावा दिया। कभी धर्म के नाम पर युद्ध कर लोगों की हत्याएं की गई तो वहींधर्म के नाम पर आत्मघाती तैयार किये जाते हैं।
भारत में ही देख लें, मंदिर-मस्जिद को बनाने को लेकर कितना पागलपन है। क्या मंदिर बनाने वाले व्यक्ति को स्कूल खोलने को लेकर पागल हुआ देखा है? नहीं ना। आज भारत में लगभग 25 लाख आराधना स्थल हैं और स्कूल केवल 15 लाख। जैसा कि मैने कहा कि ये सब कॉम्पीटीशन है,
- संख्या बढ़ाने का
- मंदिर मस्जिद खड़ी करने का और
- अपने धर्म को ऊँचा कहने का।
ढोंग, आडम्बर, कुरीति, महिलाओं का दोयम दर्जा आदि सब इसी की आड़ में तो है।
धर्म के नाम पर देश टूटा है
आज धर्म की बात कर राजनीति भी जारी है।
- भारत पाकिस्तान का विभाजन भी तो धर्म के आधार पर हुआ था। हज़ारों लोग मरे थे इस विभाजन के दौर में।
- राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के विवाद ने कितनों की जान ले ली।
आज हिन्दू-मुस्लिम के बीच भेद की दीवार और भी बढ़ चुकी है, जिसे नेता लोग वोट की राजनीति की खातिर बढ़ाते ही जा रहे हैं। भविष्य में शायद धर्म इस रूप में राज नहीं कर पाएंगे।
इन्टरनेट और सोशल मीडिया के कारण लोग भक्त बनना त्याग रहे हैं और अंधश्रद्धा से वे नास्तिकता, संशयवादी, धर्मनिरपेक्षता, एको-धर्म, इंगेज्ड स्पिरीचुअलिटी(Engaged Spirituality) आदि की तरफ बढ़ रहे हैं। इसलिए संभव है कि नास्तिक या बिना धार्मिक ठप्पेवाले लोगों की संख्या सर्वाधिक होगी। आज ही विश्व में उनकी संख्या 16% पहुंच गई है।