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“हाइटेक विज्ञापनों के ज़रिये डैंड्रफ को खतरनाक बीमारी का नाम क्यों दिया जाता है?”

डैंड्रफ ऐड

डैंड्रफ ऐड

आप अपने स्कूल, कॉलेज, ऑफिस के अलावा नुक्कड़, चौराहों या अन्यत्र कहीं भी मित्रों की टोली में बैठे हों और आपके कंधे पर रूसी/डैंड्रफ देख आपका मित्र आपको देखते हुए मुंह बनाए, तो कैसा लगेगा आपको?

आम तौर पर यह हर किसी के साथ होता होगा। आप जल्द से जल्द इससे छुटकारा पाने के तरीके भी खोजने लग जाते हैं। हेड एंड शोल्डर का एक विज्ञापन आज की पीढ़ी को यह संदेश देने के लिए काफी है कि प्रॉब्लम आपके सर में है। आपकी रूसी (डैंड्रफ) अब महज़ पर्यावरणीय प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक बीमारी बन चुकी है।

उसका इलाज भी किसी डॉक्टर से नहीं, बल्कि सिर्फ विज्ञापनों से दिखाए गए प्रॉडक्ट से ही मिल सकता है। अलग-अलग शैंपू और कंडीशनर कंपनियों ने जिस तरह का माहौल मीडिया के माध्यमों  से तैयार किया है, उससे पूरा वर्तमान परिदृश्य प्रभावित दिख रहा है।

किसी भी व्यक्ति की यह चाहत नहीं होगी कि उसके सर पर डैंड्रफ का बसेरा हो। ऐसे में लोग बड़ी आसानी से इन प्रभावी विज्ञापनों के फेर में फंसकर मीडिया द्वारा क्रिएट की गई बीमारी के इलाज में जुट जाते हैं। देखिये यह विज्ञापन-

 

समाज में मीडिया और फिल्म का प्रभाव सत्तर 80 के दशक से चली आ रही है। अब बुलेट थ्योरी जैसे सिद्धांत कारगर नहीं हैं,  क्योकि किसी भी ऑडियो विज़ुअल संदेश का असर हमारे मस्तिष्क पर सीधा और त्वरित नहीं होता है। यह शनै: शनै:  ही कारगर होता है।

विज्ञापनों ने पहले समाज में डैंड्रफ, उलझे बाल, सांवलापन और मोटापा आदि को एक बीमारी के तौर पर स्थापित किया फिर खुद उन्हीं  विज्ञापनों में उनके उपचारों को भी बताने की कोशिश की। यह नए ज़माने का नया धंधा आज इतना प्रभावी है कि हर कोई इसके जाल में गाहे बगाहे फंस ही जाता है।

अब आप नीचे दिए गए विज्ञापन को ही देखिए जिसमें हाइटेक टेक्नोलोजी द्वारा डैंड्रफ को खतरनाक बीमारी के तौर पर बताए जाने की अद्भुत कोशिश की गई है। इन डैंड्रफ कंपनियों ने रिसर्च के ज़रिये बताया है कि डैंड्रफ मौजूदा समय की बड़ी बीमारी बनकर उभर रही है।

वहीं, दूसरी तरफ महिलाओं के उलझे हुए बाल सामाजिक तौर पर अच्छे नहीं माने जा रहे हैं। उनके लिए ऐसे विज्ञापन दिखते हैं जिनमें वे फिट नहीं हैं। उन्हीं विज्ञापनों में सुझाव के तौर-तरीके भी बताए जाते हैं।

अब हताश और निराश उपभोक्ता इन विज्ञापनों को देख काल्पनिक बीमारी से बचने के साधन भी खोजते हैं। थर्मामीटर टाइप के नए-नए यंत्र भी मार्केट में आ गए हैं, जिससे आप यह भी अंदाज़ा लगा सकते हैं कि आपके सर में डैंड्रफ की संख्या कितनी है। खुद देखिये विज्ञापन और मीडिया साक्षर होने के नाते एक बार सोचिए कि इन विज्ञापनों के ज़रिये क्या क्या परोसा जा रहा है? शायद यह हमारे तार्किक विकास में भी योगदान करे।

 

हमारे समाज में मीडिया साक्षरता की कमी की वजह से ही ऐसे विज्ञापन पनप रहे हैं। क्या आपके आस पास फैली बड़ी से बड़ी बीमारियों को लेकर इस तरह के हाइटेक विज्ञापन तैयार किए जाते हैं?

सूचना और प्रोद्योगिकी के इस युग में मीडिया माध्यम का विस्तार ज]रूरी तो है लेकिन साथ ही दर्शकों और पाठकों का भी मीडिया साक्षर होना उतना ही ज़रूरी है। दर्शकों, पाठकों और श्रोताओं को यह समझना होगा कि किस तरीके से एक सोची समझी रणनीति के तहत ऐसे विज्ञापन बनाए जाते हैं।

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