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“JNU में फीस बढ़ोतरी के आंदोलन को टुकड़े-टुकड़े गैंग क्यों कहा जा रहा है?”

जेएनयू प्रोटेस्ट

जेएनयू प्रोटेस्ट

कल जब कन्हैया जैसे छात्र नेताओं को पूरे देश में देशद्रोही करार देकर बदनाम किया गया, तब इस देश ने कोई सवाल क्यों नहीं पूछा? कल जब नज़ीब को गायब कर दिया गया, तब इस देशवासियों ने कोई सवाल क्यों नहीं पूछा? कल जब JNU के स्टूडेंट्स को टुकड़े-टुकड़े गैंग कहकर पुकारा गया, तब भी इस देश ने कोई सवाल नहीं पूछा।

यहां तक कि फेसबुक या अन्य सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर भी किसी ने बड़े-बड़े लेख लिखकर सरकार से जवाब नहीं मांगा मगर आज जब स्टूडेंट्स सड़क पर अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं, तो सवाल उठाने वालों की एक भीड़ खड़ी हो गई है, जो JNU में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स को यह याद दिला रही है कि तुम मेरे टैक्स पर पढ़ते हो। अब तुम खुद अच्छी शिक्षा के लिए मोटा पैसा अदा करो।

तब सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसी भीड़ कहां से आ रही है, जो शिक्षा को बेचने पर तुली हुई है। इस सवाल को लेकर यदि चिंतन किया जाए तो स्पष्ट जवाब मिलेगा कि क्यों जेएनयू पर प्रहार आसान है?

ये वह लोग हैं जिन्होंने मौजूदा सत्ताधारी पार्टी के प्रोपेगेंडा को दिल से आत्मसात किया। कुछ को छोड़कर देश की शेष मीडिया ने स्पष्ट तौर पर यह बात जगत तक पहुंचाई है कि JNU में ऐसे स्टूडेंट्स पढ़ते हैं, जो राष्ट्र विरोधी हैं। यह भी कहा गया कि देश को तोड़ने वाले नारे यहीं लगाए जाते हैं और तो और JNU में हिंदू विरोधी गतिविधियां सामान्य बात हैं।

खुद को सेक्युलर साबित करने वाली काँग्रेस क्या इन सबसे दूर थी?

जेएनयू प्रोटेस्ट। फोटो  साभार- सोशल मीडिया

जवाब तलाशने हेतु इतिहास के पन्नों में झांककर देखना होगा । यह सत्य है कि काँग्रेस शासन काल में एक तरफ जहांJNU की स्थापना हुई, तो वहीं नाम भी काँग्रेसी नेता के नाम पर ही रखा गया था लेकिन इस सत्य का दूसरा पहलू यह है कि JNU कभी भी राजनीतिक रूप से काँग्रेसी नहीं रहा है।

शुरुआती दौर में भी JNU के स्टूडेंट्स का झुकाव वामपंथी राजनीति की तरफ ही रहा। 70 के दशक में आपातकाल के दौरान JNU सरकारी दमन के विरोध में आगे रहा। बाद में इसी कैंपस से निकले सीताराम येचुरी और प्रकाश करात ने देशभर में वामपंथी राजनीति में नाम कमाया।

आपातकाल का एक मशहूर किस्सा भी है। जब इंदिरा गाँधी चुनाव हार गईं तो JNU से स्टूडेंट्स का एक दल सीताराम येचुरी के नेतृत्व में इंदिरा गाँधी के पास गया। वहां एक पर्चा पढ़ा जिसमें वर्णन था कि इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्री रहते आपातकाल के दौरान क्या-क्या गलत हुआ  स्टूडेंट्स की मांग थी कि इंदिरा JNU के चांसलर पद से इस्तीफा दें और उन्होंने बाद में इस्तीफा दे भी दिया।

तब से लेकर अब तक JNU की हनक में आज तक कोई कमी नहीं आई है। गौर करने की बात यह है कि काँग्रेस ने कभी भी JNU की आवाज़ को दबाने के लिए सैन्य बल का इस्तेमाल कर अपनी ताकत का प्रदर्शन नहीं किया लेकिन आज बीजेपी ने खुलकर मोर्चा इसलिए खोल रखा है, क्योंकि उसने खुद को राष्ट्रवादी होने का तमगा जो दे दिया है!

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