जिन्हें JNU के बारे में कुछ पता नहीं है, वे केवल मीडिया और सोशल मीडिया में परोसे जा रहे प्रोपेगंडा देखकर विरोध कर रहे हैं। सच तो यह है कि उन्हें सच्च्चाई से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है।
JNU में छात्रों की फीस बढ़ाए जाने पर जारी आंदोलन का ये लोग इतना विरोध क्यों कर रहे हैं? आखिर ये लोग छात्रों के आंदोलन एवं सस्ती शिक्षा की मांग को क्यों पसंद नहीं कर रहे?
ऐसी सरकार का क्या काम?
वर्तमान सरकार की शिक्षा नीति ऐसी हुई जा रही है, मानो अब हर भारतवासी की आमदनी 50 हज़ार रुपये महीने से अधिक हो गई है। कोई भी अब ना तो गरीब है और ना ही गरीबी रेखा के नीचे! अब तो सब लोग सक्षम हैं। क्या इसलिए सरकार सभी शिक्षण संस्थानों की फीस में वृद्धि करने को बेताब है।
बात चाहे IIT में फीस बढ़ोतरी की हो या JNU की या फिर किसी अन्य संस्थान की, सरकार कह रही है कि बच्चों की फीस से उनकी शिक्षा का खर्च उठाएगी। सरकार ने कहा कि सरकार के पास पैसे नहीं हैं।
अगर छात्रों की फीस से ही उन्हें सुविधा और शिक्षा देनी है, तो ऐसी सरकार का क्या काम? सरकार ने पैसों की कमी के नाम पर बच्चों की फीस बढ़ाने का फैसला तो लिया लेकिन क्या अपने किसी खर्च में कमी की? अपने भत्ते और सैलरी में कमी की? उद्योग जगत और उद्योगपतियों को मिलने वाली सब्सिडी कम हुई? उनका तो एक बार में ही 1.5 लाख करोड़ माफ हो जाता है।
IIT और अन्य संस्थानों की फीस बढ़ी कहीं किसी को खबर नहीं हुई, क्योंकि वहां के छात्रों और अभिभावकों ने इसके खिलाफ आवाज़ नहीं उठाई। शायद इसलिए भी आवाज़ नहीं उठ पाई होगी, क्योंकि वहां ना तो कोई छात्र संगठन नहीं है और ना ही कोई आवाज़ उठाने वाला दूसरा माध्यम। याद कीजिए 70 के दशक को जब सम्पूर्ण क्रांति की शुरुआत गुजरात के एक इंजीनियरिंग कॉलेज से हुई थी।
लेकिन क्या कारण है कि IIT की फीस बढ़ जाती है और एक आवाज़ तक नहीं उठती? यह चिंता का विषय ज़रूर है लेकिन JNU में सरकार फीस बढ़ाना चाहती है, तो आवाज़ें उठती हैं, क्योंकि वहां छात्र संगठन है।
JNU से उठी फीस ना बढ़ाने की मांग एक विशेष वर्ग को रास नहीं आ रही
JNU में फीस बढ़ोतरी के खिलाफ जारी आंदोलन का विरोध शायद वही वर्ग कर रहा है, जो बहुत ही सक्षम है या हो गया है, जो सस्ती शिक्षा पसंद नहीं करता और चाहता नहीं है कि कभी शिक्षा सस्ती हो।
अब सवाल उठता है कि क्या आप की आर्थिक स्थिति अपने बच्चे को विदेश में पढ़ाने के लायक है? क्योंकि फीस बढ़ोतरी का समर्थन करने वालों के बच्चे शायद विदेश में पढ़ रहे हों। इसे आप खुद सोचें कि ये कौन लोग हैं, जो आंदोलन का विरोध कर रहे हैं? और क्यों कर रहे हैं?
JNU आज भी वही है जो 2014 से पहले हुआ करता था। आज भी वहां से वही प्रतिभा निकलती है, जो 2014 तक निकलती थी। JNU आज भी भारत के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय में शुमार है। आज भी जब भारत का कोई विश्वविद्यालय विश्व में टॉप 500 विश्विद्यालय की लिस्ट में जगह नहीं बना पाया है, तो JNU टॉप 300 में शुमार है।
JNU को लेकर लोगों के मन में नफरत का भाव क्यों?
JNU को लेकर देश के एक वर्ग में नफरत का भाव क्यों आया, कैसे आया, कौन लाया? सोचना पड़ेगा? जबकि ना तो JNU और ना ही उसके प्रतिभावान छात्रों में बदलाव आया है। आज भी JNU की प्रतिभा विश्व में भारत का नाम रौशन कर रही है लेकिन ऐसा क्या हुआ कि 2014 के बाद से JNU को एक वर्ग बहुत उदासीन नज़र से देखने लगा?
वह वर्ग JNU को कभी बंद कराने की मांग करता है, तो कभी फीस वृद्धि को उचित ठहराता है। जो आंदोलन करते हुए छात्रों को पुलिस से पिटते देखकर खुश भी होता है, आखिर क्यों? JNU को इतना बदनाम किसने किया, क्यों किया, किसके इशारे पर किया? आप सोचेंगे तो उत्तर ज़रूर मिलेगा लेकिन आप को निष्पक्ष और खुली आंखों से सोचना पड़ेगा।
किसी को बदनाम करने का सबसे आसान तरीका है कि उस पर लांछन लगाकर बदनाम कर दो। रही बात लांछन की, तो वह कुछ भी हो सकता है जैसे देशद्रोही, चारित्रिक और वैचारिक लांछन आदि। लोग एक बार आपकी अच्छाइयों को माने या ना माने लेकिन आप पर लगे लांछन को स्वीकार कर आपको को जांचना शुरू कर देते हैं। आप सही हैं, यह सिद्ध करने में ना जाने आपको क्या क्या करना पड़े और उसके बाद भी आप अपनी पुरानी छवि वापस हांसिल कर लें, इसकी कोई गारंटी नहीं रहती है।
आज कल जो भी अपने आप को तथाकथित देशभक्त कहलवाना चाहता है, वह JNU और उसके छात्रों पर आरोप लगाकर अपनी देशभक्ति का पैमाना बताने लगता है। अब यदि इन लोगों में से कोई गलत साबित होता है, तो वह माफी मांग भी ले तो क्या होगा? क्या खराब हो चुकी छवि माफी मांगने से वापस आएगी?
क्योंकि बेबुनियादी आरोप तेज़ी से फैलते हैं और माफी किसी को पता भी नही चलती। इसलिए किसी भी टिप्पणी को करने से पहले तथ्यात्मक जानकारी लेकर ही करनी चाहिये। ऐसा ही सोशल मीडिया पर होता है, जब लोग बिना जानकारी के एक के बाद एक पोस्ट शेयर करते हैं।
दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि 2014 के बाद एकाएक JNU पर जो भी लांछन लगे, उसे अधिकांश ने बिना सोचे समझे स्वीकार किया। क्योंकि किसी एक समूह या छात्र पर लगे आरोप जो अभी सिद्ध भी ना हुए हों, उन्हें आधार बनाकर मीडिया द्वारा देशभर में वायरल कर दिया जाता है, जैसे JNU टुकड़े-टुकड़े गैंग और देशद्रोही का गढ़ है।
मीडिया ने उस नैरेटिव को इतना चलाया कि लोगों के दिमाग में JNU की एक खराब छवि घर कर जाती है। एक घटना के आधार पर मूल्यांकन करके JNU की दशकों पुरानी साख को धूमिल करके उसे बदनाम किया जाता है। इस मूल्यांकन का एक कारण केवल मीडिया ही नहीं, बल्कि एक विशेष राजनीतिक पार्टी भी है, जो सत्ता में बैठकर शिक्षण संस्थाओं की फीस बढ़ा रही है।
JNU को बदनाम करने के लिये मोर्फ वीडियो को आधार बनाकर JNU एवं उसके छात्रों को टारगेट किया गया था। यहां तक कि असभ्य और अनैतिक बयान देकर JNU को बदनाम किया। जैसे वहां से कंडोम और सेक्स की सीडियां मिलती हैं। ऐसे बयानों से JNU एवं इसके छात्रों के चरित्र पर पहले दाग लगाए गए फिर विशेष राजनीतिक दलों के नेताओं और समर्थकों ने उसे हथियार के रूप में इस्तेमाल किया।
JNU को नशा और अय्याशियों का अड्डा बताया गया। आज उन्हीं बयानों और प्रोपेगंडा की देन है कि कोई भी व्यक्ति JNU के स्टूडेंट्स को किसी भी हद तक टिप्पणी करके उनके चरित्र पर सवाल खड़ा कर देता है। सच तो यह है कि एक प्रायोजित कार्यक्रम के तहत JNU को बदनाम किया गया।
आज फीस वृद्धि को लेकर चल रहे आंदोलन का विरोध करने हेतु पुराने बयानों को एजेंडा बनाते हुए फेक फोटो और वीडियो का सहारा लेकर सोशल मीडिया पर प्रचारित किया जा रहा है। JNU और छात्रों पर प्रश्न उठाया जा रहा है। मैंने कई ऐसे लोग देखे जो उच्च शिक्षा प्राप्त ऊंचे ओहदे पर नौकरी करते हैं। उनके द्वारा JNU और JNU के छात्रों पर की गई टिप्पणी देखकर उनके ज्ञान पर शक होने लगता है।
लेकिन सच तो यह है कि ऐसे लोग प्रोपेगंडा के शिकार हैं, जो अपने विवेक को खो कर तर्क करना भूल गये हैं। जो कुछ सोशल मीडिया पर दिख रहा है उसे सच्चाई समझकर शेयर किए जा रहे हैं। शायद अब उनके अंदर कुछ सोचने समझने की सलाहियत नहीं बची है या वे सही-गलत को समझना भूल गए हैं।
टैक्स केवल JNU स्टूडेंट्स की कम फीस पर क्यों याद आता है?
JNU को लेकर उम्र और टैक्स के पैसे के नाम पर भी प्रोपेगंडा चलाया जा रहा है, जिसके बारे में पता करने पर यह गलत साबित होगी। पीएचडी कर चुके किसी साहब से उम्र पूछिए, वह बताएंगे कि कितनी उम्र में लोग पीएचडी पूरी करते हैं। पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती है।
जिसे जब मौका मिलता है, वहां आकर पढ़ता है। टैक्स केवल JNU के छात्रों की कम फीस पर क्यों याद आता है। करोड़ों की मूर्तियों पर, कुम्भ मेले पर, अयोध्या दीपोत्सव पर हज़ारों करोड़ खर्च होते हैं। तथाकथित टैक्सपेयर्स को तब अपने टैक्स की याद तब क्यों नहीं आती है?
सरकार की नीति ऐसी होनी चाहिए कि नुकसान एक भी व्यक्ति की ना हो लेकिन यहां तो सरकार हज़ारों गरीब का सपना तोड़ने जा रही है। JNU में देश की वह प्रतिभा तराशी जाती है, जो दूर दराज़ के गाँवों से आती हैं, आर्थिक कमज़ोरी के कारण जो कभी अन्य संस्थानों की तरफ देखने की हिम्मत नहीं कर सकते, वे JNU में आकर शिक्षा लेकर ज्ञान की हुंकार भरते हैं।
क्या सरकार शिक्षा महंगी करना चाहती है ताकि फीस बढ़ने के बाद ऐसे लोग शिक्षा ना प्राप्त कर सकें। सोचिए जब वे शिक्षित नहीं हो पाएंगे तो सरकार से प्रश्न भी नहीं पूछेंगे और उनका विरोध करने वाला भी कोई नहीं होगा। शिक्षा सस्ती होनी चाहिए, क्योंकि शिक्षा सस्ती होगी तभी सब लोग इसे प्राप्त कर सकते हैं। शिक्षा सबका अधिकार है, तो इसे ऐसा ही रहने दें ताकि हर कोई इसे हासिल कर सके।
JNU फीस वृद्धि आंदोलन को दबाने के लिए सरकार ने साम, दाम, दंड, भेद वाली नीति अपनाई। आंदोलनकारियों पर बर्बरता से प्रकार लाठीचार्ज हुई, जैसे अंग्रेज़ सरकार ने आज़ादी के आंदोलन में लाला लाजपतराय पर करवाई थी।
ये लाठी वही पुलिस के जवान चला रहे थे, जो कुछ दिन पहले अपने अधिकारों और हक की लड़ाई के लिए खुद आंदोलन कर रहे थे। जब दिल्ली में वकीलों और पुलिस बल में झड़प हुई थी, छात्रों के साथ बर्बरता करते हुए इन पुलिस वालों को याद नहीं आया होगा कि उनका भी अधिकार होगा।
मीडिया ने भी आंदोलन को गलत ठहराने के लिए स्पेशल शो और छात्रों के बीच में जाकर उल्टे-सीधे प्रश्न करके उनको और उनके विचार को गलत साबित करने की भरपूर कोशिश की। IT सेल का भी काम जारी था। आंदोलन करते कुछ छात्रों की तस्वीर में छेड़-छाड़ कर उसे प्रचारित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
किसी को बदनाम करने में IT सेल वालों में गज़ब की कला है लेकिन तमाम आंदोलनकारी झुके नहीं, टूटे नहीं और रुके नहीं, क्योंकि उनके साथ वह आवाज़ है जो JNU को हार्वर्ड और ऑक्सफोर्ड से भी ऊपर समझती है, क्योंकि वे JNU में पढ़कर हार्वर्ड और ऑक्सफोर्ड वालों को टक्कर देते हैं।