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विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में युवाओं का राजनीति में आना ‘मुश्किल’ क्यों है?

‘राजनीति’ यह शब्द सुनते ही आपके ज़ेहन में सबसे पहला ख्याल क्या आता है? भ्रष्टाचार, वंशवाद, गुंडागर्दी या कुछ और? आखिर विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में राजनीति में आना ‘मुश्किल’ क्यों है?

वास्तविकता तो यही है कि विश्व के सबसे युवा देश की संसद आज़ादी के बाद से साल दर साल बूढ़ी होती चली जा रही है। जहां आज़ादी के बाद 1952 में संसद में 26 प्रतिशत 40 वर्ष से कम उम्र के सांसद थे, तो वहीं 2019 की संसद में 40 वर्ष से कम उम्र के सांसदों की संख्या मात्र 12 प्रतिशत है। इसके कई प्रमुख कारणों में से एक कारण है, देश के युवा-युवतियों का राजनीति में बढ़-चढ़कर भागीदारी ना लेना।

फोटो साभार- Getty Images

राजनीतिक व्यवस्था में सुधार के लिए पहल ज़रूरी

इस देश के युवा-युवतियों ने अपनी राजनीतिक-सामाजिक गतिविधियों को फेसबुक, ट्विटर एवं अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तक ही सीमित क्यों कर रखा है?  हम सभी जिस तरह से शिक्षा एवं स्वास्थ्य व्यवस्था, पर्यावरण सुधार जैसी समस्याओं पर काम कर रहे हैं, क्या उसी तरह राजनीतिक व्यवस्था में सुधार को लेकर भी चिंतित हैं? क्या राजनीति में युवा-युवतियों की भागीदारी बढाने के लिए पहल कर रहे हैं?

मैंने कई लेख पढ़े हैं जिनमें युवाओं के राजनीति में ना आने के कई कारणों का ज़िक्र किया गया है। कई युवा साथियों से संवाद किया है। इन सब में जो निष्कर्ष निकले वे यह थे कि हम बाहरी चुनौतियों (जैसे – बाहुबल, धनबल, वंशवाद इत्यादि) से प्रभावित होकर अपना निर्णय लेते हैं।

मैंने ऐसे कई बिहार-यूपी से दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाई करने आने वाले छात्र-छात्राओं को देखा है। वे कैसे इन चुनौतियों का सामना कर छात्रसंघ का चुनाव लड़ एवं जीत चुके हैं। अगर वे छात्र राजनीति में इन चुनौतियों का समाधान निकाल सकते हैं तो फिर मेनस्ट्रीम राजनीति में क्यों नहीं? बाहरी चुनौतियां तो हर कार्यक्षेत्र में हमें देखने को मिलती है लेकिन उसकी वजह से हम वह काम करना तो नहीं छोड़ते हैं?

यह तो ठीक वैसा ही होगा कि प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में जुटे कोई युवा-युवती परीक्षा आयोजन में हो रही धांधलियों के कारण, परीक्षा में सम्मिलित होना ही छोड़ दें।

मेरा विश्वास है कि अगर हम आंतरिक चुनौतियों पर काम करें तो बाहरी समस्याओं का समाधान भी निकाल सकते हैं।

युवाओं का राजनीति में ना आने के कारण

मेरे अनुसार युवाओं का राजनीति में ना आने के कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हैं।

रोल मॉडल का अभाव – यह सबसे बड़ी समस्या है। हमारी पीढ़ी के साथियों के आदर्श पुरानी पीढ़ियों के नेता हैं। जब पीढ़ी नई है तो नए रोल मॉडल क्यों नहीं?

नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी, अरविन्द केजरीवाल जैसे नेता कई साथियों के आदर्श होंगे लेकिन क्या सुदूर गाँव में रहने वाली एक महिला या एक गरीब घर से आने वाले युवा के पास कोई ऐसे आदर्श हैं जिन्होंने उनकी तरह की ज़िन्दगी जीते हुए, खुद को राजनीति में सफलतापूर्वक स्थापित किया हो? अगर हैं भी तो क्या वो महिला या युवक उस आदर्श के बारे में जानता है?

वर्तमान व्यवस्था में रोल मॉडल्स की कमी के कारण राजनीति में आना युवा-युवतियों को प्रेरित नहीं करता। जिसके कारण राजनीति के प्रति उनका उदासीनता का भाव होता है।

फोटो साभार – Getty Images

अवसर की कमी – अगर मैं कहूं कि मैं राजनीति में शामिल हो रहा हूं तो आपके दिमाग में पहला ख्याल क्या आएगा? मैं चुनाव लड़ने वाला हूं?

दरअसल, राजनीति में अब चुनाव से इतर भी कई तरह के अवसर (जैसे कि – कैंपेन मेनेजर, राजनीतिक सलाहकार, कंटेंट राइटर, शोधकर्ता इत्यादि) मौजूद हैं, जिसके बारे में हमें पता ही नहीं होता। इसलिए हम राजनीति को अपनी करियर गोल का हिस्सा ही नहीं बना पाते हैं।

कौशल – राजनीति के बारे में आम अवधारणा तो यही है कि राजनीति करना है तो धन एवं बाहु प्रबंधन करना आना चाहिए लेकिन इन सबके अलावा नेतृत्व क्षमता, संवाद कौशल जैसी महत्वपूर्ण कौशलों को दरकिनार कर देते हैं। जो कि बाद में बड़ी समस्या बनकर सामने आते हैं।

कोष – हां, राजनीति करना है तो पैसे तो चाहिए पर कितना और कब? उसके तरीके क्या होने चाहिए? तमाम सवालों के बीच एक सच्चाई यह भी है कि वर्तमान व्यवस्था में तकनीक का उपयोग कर कई उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा है और जीता भी है।

दूरदर्शिता – राजनीति में आना ही क्यों है? यह वो सवाल है, जो हमारी प्राथमिकताएं एवं हमारी प्रतिबद्धता को परिभाषित करता है। लक्ष्य और दूरदर्शिता की कमी होने के कारण राजनीति को हम पार्ट-टाइम जॉब की तरह देखते हैं। जिसके कारण कोई भी युवा साथी खुद को आत्म-संकल्पित नहीं कर पाते हैं।

फोटो साभार – इंडियन स्कूल ऑफ डेमोक्रेसी

इन सभी आंतरिक समस्याओं पर बात करने एवं युवा साथियों की राजनीति में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए इंडियन स्कूल ऑफ डेमोक्रेसी 9 दिवसीय राजनीतिक-लोकतान्त्रिक यात्रा, डेमोक्रेसी एक्सप्रेस – राजनीति से लोकनीति का आयोजन कर रही है।

इस यात्रा का मकसद युवाओं-युवतियों को राजनीति के सकारात्मक पहलुओं से अवगत कराना एवं राजनीति के इर्द-गिर्द बुनी गई नकारात्मक धारणा को बदलना है। वे तमाम युवा साथी जो राजनीति को जनसेवा एवं बदलाव का माध्यम मानते हैं, राजनीतिक एवं लोकतान्त्रिक व्यवस्था में मौजूद चुनौतियों को समझना चाहते हैं और भविष्य के युवा नेताओं के समूह का हिस्सा बनना चाहते हैं, उन्हें राजनीति से लोकनीति के इस सफर में अवश्य शामिल होना चाहिए।

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