पिछले कुछ वक्त से महाराष्ट्र की राजनीति में जो ड्रामा चल रहा था, अब उसका अंत हो गया है। पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपकर पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि भाजपा के पास सरकार बनाने लायक जादुई आकड़ा नहीं है।
गौरतलब है कि शिवसेना, राष्ट्रवादी काँग्रेस पार्टी और काँग्रेस के प्रतिनिधियों ने राज्यपाल से मुलाकात कर सरकार बनाने की पेशकस कर दी थी। अब उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली है।
अगर हम पिछले कुछ घंटों के राजनीतिक घटनाक्रमों पर नज़र डालें तो महााराष्ट्र की राजनीति में बड़ा ट्विस्ट उस समय आया जब शरद पवार के भतीजे और राष्ट्रवादी काँग्रेस पार्टी के बड़े नेता अजीत पवार ने भाजपा को अपना समर्थन दे दिया और खुद उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली।
जानकारों ने इसे सीधे-सीधे गृहमंत्री अमित शाह की रणनीतिक समझदारी और सरकार बनाने की उनकी कुशलता से जोड़कर देखा मगर भाजपा की राह में सबसे बड़ा रोड़ा बने स्वयं शरद पवार।
पवार ने धैर्य का परिचय देते हुए शिवसेना और काँग्रेस को साथ रखकर अपने सभी विधायकों को एक किया और साथ ही बागी हुए अजीत पवार के लिए भी विकल्प खुला छोड़ा।
इसका नतीजा आज हमारे सामने है। जो नैरेटिव अमित शाह के पक्ष में था, अब वही उनके खिलाफ हो गया। एक ही झटके में शाह की रणनीतिक समझदारी पर सवाल उठने लगे हैं। वहीं, शाह को ध्यान में रखकर देखें तो भले यह भाजपा और देवेन्द्र फडणवीस की हार है मगर शाह ने फिर से स्वयं को राजनीति का चाणक्य सिद्ध कर दिया है।
अपने बरक्स उठने वाले नेता को कुचल देना
अमित शाह और नरेन्द्र मोदी के काम करने के तरीके से हर कोई वाकिफ है। मोदी और शाह कभी भी यह नहीं चाहेंगे कि भाजपा में उनके बरक्स कोई साफ-सुथरा विकल्प खड़ा हो। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में देवेन्द्र फडणवीस ने अपनी एक अलग जगह बनाई जिसके बल पर उन्हें लोग सुलझे हुए नेता के तौर पर देखते हैं।
देवेन्द्र फडणवीस अगर दूसरी बार भी मुख्यमंत्री के रूप में शासनकाल पूरा कर लेते, तो उनकी गिनती भाजपा आलाकमान के अग्रणी नेताओं में होती, जो शायद ही अमित शाह को कभी मंज़ूर होता।
शिवसेना के अलग होने से भाजपा को दूरगामी लाभ है
शिवसेना और भाजपा की राजनीति के बीच सबसे बड़ी समानता है ‘हिन्दुत्व’ और ‘राष्ट्रवाद’। दोनों पार्टियों ने अपने इन दोनों प्रमुख मुद्दे पर हमेश से काँग्रेस को घेरा है। काँग्रेस को साथ लेकर अगर शिवसेना पूरे पांच वर्ष सरकार चलाती है, तो शिवसेना के ये दो प्रमुख मुद्दे हाथ से निकल जाएंगे और महाराष्ट्र की राजनीति में इन दो मुद्दों पर भाजपा का एकाधिकार रहेगा।
संवेदना की लहर पर सवार हो सकती है भाजपा
महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम स्पष्ट रूप से बताते हैं कि जनता ने सरकार चलाने का बहुमत शिवसेना और भाजपा को दिया है मगर परिणाम आने के तुरंत बाद से ही शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने बागी तेवर दिखाने शुरू कर दिये थे।
परिणाम आने के तुरंत बाद उद्धव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवाल ‘क्या आदित्य ठाकरे मुख्यमंत्री बनेंग?’ के जबाब में कहा था, “आपके मुंह में घी शक्कर।” संकेत स्पष्ट था कि शिवसेना अब गठबंधन धर्म के बजाय अपने शर्तो पर चलेगी।
वर्तमान स्थिति में शिवसेना ने भले ही भाजपा और देवेन्द्र फडणवीस को मात दे दी है मगर अपने उपर वंशवाद का ऐसा दाग लगा लिया जिसे जनता आसानी से स्वीकार नहीं करती है।
वहीं, देवेन्द्र फडणवीस को सीधे तौर पर मात देकर शिवसेना ने भाजपा के लिए जनता के मन में एक संवेदना भी पैदा कर दी है, जिसका लाभ आगामी चुनावों में भाजपा को मिल सकता है।
सवालों से परे काँग्रेस भी नहीं
महाराष्ट्र से ही आने वाले काँग्रेसी नेता ने कभी हिन्दू आतंकवाद का टर्म उछालकर काँग्रेस की किरकिरी करवाई थी। आज भी काँग्रेस इस दाग से मुक्त नहीं हो पाई है। शिवसेना का स्टैंड हिन्दुत्व को लेकर बाला साहब के समय से ही उग्र रहा है फिर भला काँग्रेस कैसे अपने वोटरों को समझाएगी कि उसने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की नेतृत्व वाली सरकार में भागीदारी निभाई है।