मैं शर्मिंदा हूं कि मैं एक मर्द हूं और देश में जो इंसान हैवान बन गए हैं, वे हमारी ही बिरादरी से हैं। इस बात का मुझे अफसोस है। हैदराबाद में एक वेटरनरी डॉक्टर से जो हुआ, जो किया गया उसके लिए मैं शर्मिंदा हूं। शर्मिंदा हूं कि उसके बाद भी रोज़ ऐसी हज़ारों वारदातें हमारे सामने आ रही हैं।
राजस्थान में एक मासूम बच्ची का रेप करने के बाद इतनी ज़ोर से उसका गला दबाया गया कि उसकी आंखें बाहर आ गई, तो वहीं छत्तीसगढ़ में घर में सो रही 5 साल की बच्ची को दुष्कर्मी उसके माँ-बाप के बगल से उठाकर ले गए। लानत है ऐसे लोगों पर, जो पूरी मर्द कौम को बदनाम कर रहे हैं। धिक्कार है ऐसे लोगों पर जिन्होंने मर्दानियत की परिभाषा ही बदलकर रख दी है।
हमारा सच खोलते आंकड़ें
अब मैं आपको कुछ आंकड़ों की ओर ले जाना चाहता हूं जो एख बहुत बड़े मुद्दे की एक साफ तस्वीर है। यह मुद्दा है समाज में महिलाओं को लेकर हमारे रवैये, उनकी सुरक्षा और उनसे जुड़ी उन तमाम बातों का जो अकसर हमारे अखबारों की हेडलाइन बनती हैं।
तो हाल ही में महिला एवं बाल कल्याण मंत्री स्मृति ईरानी ने हाल में ही राज्यसभा को बताया कि
- वर्ष 2013-17 के बीच बाल-विवाह के करीब 1,500 मामले प्रकाश में आए हैं।
- ऐसे मामलों की सर्वाधिक संख्या वर्ष 2017 में थी, जब 395 ऐसे विवाह हुए जबकि
- वर्ष 2016 में 326 बाल विवाह हुए।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे 2015-16 के अनुसार 26.8 फीसदी लड़कियों का विवाह 18 साल की उम्र से पहले कर दिया जाता है।
- आंकड़ों के मुताबिक सर्वे के समय 15-19 वर्ष की उम्र की 8 फीसदी लड़कियां मां बन चुकी थीं अथवा गर्भवती थीं।
ये आंकड़े हमारी गलती साफ बयान करते हैं। स्मृति ईरानी का कहना है कि एक समस्या यह है कि पॉक्सो (बाल यौन उत्पीड़न प्रतिबंध कानून) में जैसे किसी केस की रिपोर्ट करना अनिवार्य है लेकिन बाल विवाह के मामलों की रिपोर्ट करना अनिवार्य नहीं है।
स्मृति ईरानी ने कहा था कि हम कानून में संशोधन करने पर विचार कर रहे हैं. पॉक्सो में बाल यौन उत्पीड़न की रिपोर्ट करना अनिवार्य है, इसलिए इस तरह के मामले सामने आ रहे हैं।
18 साल से कम उम्र की विवाहित लड़कियां गर्भवती
दरअसल, स्मृति ईरानी से 18 साल से कम उम्र की विवाहित लड़कियों के गर्भवती होने के मामले को लेकर सवाल पूछा गया था। आपको बता दूं कि 18 साल से कम उम्र की लड़कियों में गर्भ ठहरने के मामले करीब 21 फीसदी है जो बहुत ज़्यादा हैं।
चलिए ज़रा आंकड़ों पर और गौर करें।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे 2015-16 के अनुसार 26.8 फीसदी लड़कियों का विवाह 18 साल की उम्र से पहले कर दिया जाता है।
- आंकड़ों के मुताबिक सर्वे के समय 15-19 वर्ष की उम्र की 8 फीसदी लड़कियां माँ बन चुकी थीं या गर्भवती थीं।
यह आंकड़ें उस समय के हैं जब सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया था कि अवयस्क पत्नी के साथ संबंध बनाना बलात्कार माना जाएगा। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि 18 साल से कम उम्र की लड़कियों की सहमति भी मान्य नहीं होगी। इस तरह से बाल-विवाह और 18 साल की कम उम्र की लड़की से संभोग अपराध की श्रेणी में है। लेकिन आंकड़ें अपराध की खुली तस्वीर दिखा रहे हैं।
देवी वाले देश के बदनाम मर्द
नारी में दुर्गा देखने वाले हिंदुस्तान में चंद लोगों को महिलाओं में मांस का बस कुछ हिस्सा ही दिखता है। ये लोग चंद ही हैं, लेकिन इससे बदनाम पूरी मर्द कौम हो रही है। पर महिलाएं भी अपने आप को हम दोषी ना समझे, ऐसे आरोपियों की विचारधारा को पालने पोसने में कहीं ना कहीं उनका भी योगदान है।
बाल विवाह के ये बढ़े हुए आंकड़ें हो, निर्भया रेप केस हो, निठारी कांड हो या हैदराबाद का यह वाकया, मैं हर बार हैरान रह जाता हूं कि कैसे किसी से साथ कोई ऐसा कर सकता है। इंसान और शैतान के बीच की दहलीज़ को पार करने के लिए हिम्मत नहीं दुस्साहस चाहिए और अब जब हैदराबाद का यह हैवानियत से भरा वाकया सामने आ ही गया है, तो सब वाट्सएप-वाट्सएप और फेसबुक-फेसबुक खेलने में फिर लग गए हैं।
ये यहां खेलना शब्द प्रयोग करने पर कई लोगों को आपत्ति या असहमति हो सकती है, लेकिन जब भी देश में कहीं भी, कभी भी कुछ ऐसा हादसा होता है, तो हम यही तो करते हैं।
- हिन्दू मुसलमानों को लानतें देते हैं, धिक्कारते हैं।
- मुस्लिम भी जवाबी कार्रवाई करते हैं।
- महिलाएं पूरी मर्द कौम को धिक्कारती हैं, उन्हें माँ-बहन की दुहाई देती हैं।
- नेता लोग नियम सख्त करने का वादा और आश्वासन देते हैं।
- कुछ तथाकथित इंटेलेक्चुअल लोग अवार्ड वापस करने का राग अलापते हैं।
- पुलिस वाले अपराधियों को सख्त से सख्त सजा देने की बात करते हैं।
किसी भी घटना के एक हफ्ते बाद तक, ये सब सोशल मीडिया पर ही चलता रहता है। फिर सब वैसी ही ज़िंदगी जीने लगते हैं, जैसी चल रही थी। हकीकत में कोई कुछ नहीं करता है। तो फिर ये वाट्सएप-वाट्सएप और फेसबुक फेसबुक का खेल ही हुआ ना?
हम भी इन घटनाओं के ज़िम्मेदार
अब लोग सोच रहे होंगे कि भला हम इसमें और क्या कर सकते हैं। तो बता दूं कि ऐसी मानसिकता पैदा करने और इसे पालने-पोसने में हम ही ज़िम्मेदार हैं। लड़की-लड़के में भेदभाव इसका सबसे बड़ा कारण है। महिला ही अपने बेटे या पोते को यूं जताती है जैसे वह सच में राजा हो और अपनी बहन से कई गुना बेहतर हो। उसे इस तरह से जताया जाता है कि उसने जन्म लेकर मानो इस धरा पर एहसान कर दिया हो।
बाल विवाह और बलात्कार की घटनाओं को हमने आम बना दिया है। बाल विवाह के ये जो आंकड़ें आए हैं वह सिर्फ आंकड़ें नहीं है। उन प्रतिशत में कुछ बच्चियां हैं, जिनकी ज़िंदगी बर्बाद हो रही है। मैंने आपके सामने जो बलात्कार के केस रखे हैं वे भी सिर्फ केस नहीं है बल्कि इस समाज का सच है। लेकिन हम इन सबको नए केस आने तक भूल जाएंगे।
अरे बेटियों को कमज़ोर तो हमने खुद बनाया है, ये उनके दिमाग मे डालकर की वे कमज़ोर हैं और रात को घर से बाहर ना निकलें। इसकी जगह उन्हें आत्मरक्षा सिखाई जाती, तो देश बदल जाता। किसी बेटी से दुष्कर्म होने पर उसकी पहचान छिपा दी जाती है। उसे ऐसा ट्रीट किया जाता है, मानो गलती उसी की हो। आखिर ऐसा क्यों? क्या इसके लिए हम जिम्मेदार नहीं?