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दो सालों में जमशेदपुर के MGM अस्पताल में कुपोषण के कारण 32 नवजात बच्चों की मौत

जमशेदपुर के अस्पताल में कुपोषित बच्चों के साथ परिजन

जमशेदपुर के अस्पताल में कुपोषित बच्चों के साथ परिजन

देश में कुपोषित बच्चों की मौत या फिर कुपोषण की गिरफ्त में जा रही देश की आने वाली पीढ़ी के हालात को समझना हो, तो झारखंड के जमशेदपुर आइए। जमशेदपुर ही क्यों? वह इसलिए कि जमशेदपुर जहां टाटा स्टील खुद के द्वारा समस्त क्षेत्र में समाज कलयाण के नाम पर किए गए योगदान पर इतराती है।

जमशेदपुर का नाम यूं ही नहीं लिया, यह वो शहर है जिसने झारखंड को हालिया मुख्यमंत्री दिया। मुख्यमंत्री रघुवर दास के विधानसभा क्षेत्र में आने वाला MGM अस्पताल आदिवासियों से लेकर दलितों के बच्चों की कुपोषण से मौत का जीता जगता सुबूत है।

दो माह में 79 बच्चों की मौत, जिनमें 65 बच्चे एक वर्ष से कम के

जमशेदपुर के MGM अस्पताल में कुपोषित बच्चों के साथ परिजन। फोटो साभार- सरताज आलम

एमजीएम अस्पताल में नवजात बच्चों की मौत का सिलसिला थमता ही नहीं है। 2017 में जहां चार महीने में 164 बच्चों की मौत का मामला आया था। वहीं, 2018 के सितंबर और अक्टूबर महीने में जमशेदपुर के इसी अस्पताल में 79 बच्चों की मौत हो गई। इसमें से 32 बच्चे ऐसे हैं, जिनकी उम्र एक साल से कम है।

SC समाज की इंद्राणी कालिंदी 2018 की उस घटना को याद करके रो पड़ीं कि किस तरह उनके 4 साल के बच्चे को सर्दी-बुखार के कारण MGM अस्पताल में दाखिल किया गया। उनके बेटे ने चिप्स खाते-खाते उनकी गोद में दम तोड़ दिया और वह कुछ कर नहीं पाईं।

जब हमने अस्पताल के तत्कालीन उपाधीक्षक डॉक्टर नकुल प्रसाद चौधरी से इस बारे में पूछा, तो उन्होंने सीधे तौर पर अस्पताल में हो रही इन सारी मौतों के लिए कुपोषण को ज़िम्मेदार बताया।

NFHS-4 सर्वेक्षण साबित करता है कुपोषण की बात

अस्पताल में एडमिट बच्चों के साथ परिजन। फोटो साभार- सरताज आलम

डॉक्टर नकुल प्रसाद चौधरी ने कुपोषण के संदर्भ में जो बात कही, उस पर गौर करना बेहद ज़रूरी है क्योंकि कुपोषण से हुई ये मौतें जमशेदपुर की बात नहीं करती हैं। दरअसल, पूरे भारत में आदिवासियों से लेकर दलित समाज की यही दशा है, जो बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं से सबसे ज़्यादा महरूम हैं।

कमाल की बात यह भी है कि आदिवासियों से लेकर दलित बच्चों तक ही कुपोषण का मामला सीमित नहीं है। 2015-2016 में आयोजित किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-4) के मुताबिक अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों सहित अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों में भी खून की कमी (एनीमिया) और कुपोषण का प्रसार अधिक है।

क्या कहती है NFHS-4 सर्वेक्षण की रिपोर्ट?

एनएफएचएस-4 सर्वेक्षण से इस बात का पूरी तरह खुलासा होता है कि देश में आज़ादी के पश्चात पिछले 70 वर्षों में लागू हुई सारी की सारी विकास और कल्याण की योजनाओं का लाभ निचले स्तर के लोगों को मिला ही नहीं है। यही कारण है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बच्चे कुपोषण से बुरी तरह पीड़ित हैं।

2015-2016 में आयोजित किए गए चौथे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4) के मुताबिक, वंचित श्रेणी में से अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों सहित अल्पसंख्यक वर्गों के लोगों में भी खून की कमी (एनीमिया) और कुपोषण का प्रसार अधिक है।

मृत बच्चों के परिजन। फोटो साभार- सरताज आलम

पांच साल से कम उम्र के बच्चों के बीच कुपोषण के मुख्य संकेतों के बढ़ते प्रतिशत सिस्टम पर सवाल खड़े करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार देश में कुपोषण के प्रभाव से 38 प्रतिशत बच्चे अविकसित यानी उम्र से कम दिखते हैं। 21 प्रतिशत कमज़ोर अर्थात ऊंचाई के मुकाबले पतले हैं। वहीं, 36 प्रतिशत वजन में कम यानी उम्र के मुकाबले बच्चे पतले हैं।

अनुसूचित जनजातियों के मद्देनज़र रिपोर्ट कहती है कि पांच वर्ष से कम के बीच 43.8 प्रतिशत बच्चे अविकसित पाए गए हैं। जबकि 27.4 प्रतिशत बच्चे शारीरिक रूप से बेइंतेहा कमज़ोर हैं। कुपोषण की बात यहीं नहीं खत्म होती, जब वजन को पैमाना बनाया गया है, तब आश्चर्यचकित करने वाले आंकड़े नज़र आए हैं। अनुसूचित जनजातियों में 45.3 बच्चे कम वजन वाले हैं।

जबकि इन तीनों श्रेणियों में अनुसूचित जाति में सबसे अधिक 42.8 प्रतिशत अविकसित बच्चे पाए गए हैं। तो 21.2 प्रतिशत कमज़ोर और 39.1 प्रतिशत कम वज़न वाले।

एनीमिया यानी रक्त में हीमोग्लोबिन के निचले स्तर को पैमाना बनाकर किए गए सर्वेक्षण के अनुसार देखा गया कि सामान्य श्रेणी में 53.9 प्रतिशत बच्चे पाए गए। जबकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के बच्चों में ये प्रतिशत क्रमशः 60.5, 63.1 और 58.6 से कम है।

एनएफएचएस 4 सर्वेक्षण ने प्रजनन, मृत्यु दर, परिवार नियोजन, मातृ एवं बाल स्वास्थ्य, बाल पोषण और घरेलू हिंसा पर जो भी आंकड़े दे दिए हों, जब तक सिस्टम इन आंकड़ों पर गंभीर नहीं होगा, स्थिति में सुधार 10 क्या 20 सालों में भी नहीं होगा।

संदर्भ- न्यूज़ क्लिक

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