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मेरी प्यारी बेटी आद्या, इस नए साल मैं तुमसे ये पांच वादे करती हूं

मेरा नाम दीपिका घिल्डियाल है। मैं देहरादून की एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी में काम करती हूं और मेरी एक बहुत प्यारी सी सात साल की बेटी है, जिसका नाम आद्या है।

आद्या बहुत खुशमिज़ाज़ और इंटेलिजेंट बच्ची है। आद्या की तमाम खूबियों में यह भी शामिल है कि उसे सेरिब्रल पाल्सी है। प्रेग्नेंसी या प्रसव के दौरान दिमाग तक ऑक्सीज़न की सप्लाई में ज़रा सी भी कमी हो जाए, तो दिमाग को नुकसान पहुंच जाता है। वही आद्या के साथ हुआ और अब आद्या के दिमाग से शरीर के अंगों तक सही से सिग्नल नहीं पहुंच पाते हैं।

चैन की नींद सोती आद्या, फोटो साभार – दीपिका ध्यानी घिल्डियाल की फेसबुक प्रोफाइल

मैं आद्या के लिए लगातार लिखती हूं, ताकि समाज की उस सोच को बदल सकूं जो लोगों को “सामान्य” और “असामान्य” के खांचों में बांटती है। मैं चाहती हूं कि किसी भी किस्म की विकलांगता को दया भाव से ना देखा जाए। लोग जानें की स्पेशल बच्चे भी एक आम बच्चे की तरह प्यार और सम्मान के हकदार हैं और साथ ही उनके माता-पिता भी।

अगर मेरे द्वारा लिखे को पढ़ने वाला एक भी इंसान अगली बार किसी स्पेशल बच्चे से बिना किसी दया या डर के मिले, तो मैं समझूंगी मेरा प्रयास सफल रहा।

अब नया साल भी दस्तक देने को है, तो इस मौके पर मैं अपनी बच्ची के लिए एक खत लिख रही हूं।

प्यारी आद्या!

नए साल के आने और इस साल के गुज़रने से पहले, इस खत के साथ तुम्हें बेशुमार प्यार। यह खत नहीं है, कुछ वादे हैं जो इस साल की शुरुआत होने से पहले मैं तुमसे करती हूं, बल्कि तुमसे पहले खुद से करती हूं।

पहला वादा

मैं वादा करती हूं कि कभी भी अपनी किसी नाकाम हसरत का बोझ तुम पर नहीं डालूंगी। एक शाम को मुझे अचानक ये बात समझ आई कि पूरे सात साल में भी मैं पूरी तरह यह नहीं सीख पाई कि तुम एक अलग व्यक्तित्व हो। तुम कुछ भी ऐसा करने को बाध्य नहीं हो जो मैं कभी करना चाहती थी लेकिन कर नहीं पाई।

उस शाम जब मैं तुम्हें अक्षांश गुप्ता के बारे में बता रही थी, जिन्होंने 95 प्रतिशत विकलांगता के बाद भी जेएनयू से कम्प्यूटर साइंस में पीएचडी कर ली है, तो मैं एक अलग उत्साह में थी। मैं हमेशा से इसी यूनिवर्सिटी में जाना चाहती थी, नहीं जा पाई।

मैंने तुमसे कम से कम तीन बार कहा-आद्या भी जेएनयू जाएगी। मैं उस वक्त बहुत खुश और आशान्वित थी, लेकिन थोड़ी देर बाद मुझे अचानक से ख्याल आया कि आद्या उसी यूनिवर्सिटी क्यों जायेगी जहां मैं जाना चाहती थी। आद्या जब इस लायक होगी तो खुद ही तय करेगी।

अपनी बेटी आद्या के साथ दीपिका, फोटो साभार – दीपिका ध्यानी घिल्डियाल की फेसबुक प्रोफाइल

यह भी तो ज़रूरी नहीं कि वह किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी जाना चाहे। वह कुछ ऐसा भी तो सीखना चाह सकती है, जिसके लिए उसे इन जगहों की ज़रूरत ही ना हो?

तुम हर उससे प्रेरणा लो जिसने अपने दम पर कुछ कर दिखाया हो, लेकिन करना वही जो तुम्हें पसंद हो। मैं तुमसे वादा करती हूं कि तुम्हारी इस आज़ादी के आड़े खुद को भी नहीं आने दूंगी।

दूसरा वादा

यह मेरा वादा है कि जब तक तुम खुद का बचाव करने लायक नहीं हो जाती, मैं तुम्हारी आवाज़ बनकर रहूंगी। तुम्हारी तरफ आती दया या अफसोस भरी हर नज़र को पहले मुझसे टकराना होगा। मैं तुम्हें कहीं दूर नहीं ले जाऊंगी। हम अपने घर और समाज में रहते हुए आत्मविश्वास से भरी ज़िंदगी जिएंगे।

तुम उतना ही प्यार और सम्मान पाओगी जितना कोई भी दूसरा मनुष्य पाने की योग्यता रखता है। मैं किसी को भी, किन्हीं हालातों में भी तुमसे तुम्हारा ये हक नहीं लेने दूंगी। मैं तुम्हें यही सिखाऊंगी कि जैसे तुम्हें अपना सम्मान प्रिय है, दूसरों के साथ भी वैसे ही पेश आना होगा। तुम्हें संवेदनशीलता और दया का फर्क भी समझाऊंगी।

अपनी बेटी आद्या के साथ दीपिका, फोटो साभार – दीपिका ध्यानी घिल्डियाल की फेसबुक प्रोफाइल

तीसरा वादा

मैं वादा करती हूं कि तुम्हारी कंडीशन के बारे में और ज़यादा जानकारियां जुटाऊंगी, ऐसे बहुत सारे लोगों से बात करूंगी जो इस बारे में जानते हों। मैं पूरी तरह आशान्वित होते हुए भी कि तुम ज़रूर बोल पाओगी, इस साल साइन लैंग्वेज सीख लूंगी।

अभी कुछ दिन पहले जब हम मूकबधिर बच्चों के एक स्कूल गए थे, तो वे बच्चे तुमसे मिलकर कितना खुश हुए थे। इशारों में तुम्हारे बारे में पूछ रहे थे। मैं उदास हुई जब मैं उनकी भाषा नहीं जानती थी। तुम्हारे इन प्यारे दोस्तों की सुन्दर सी दुनिया का हिस्सा बनने के लिए मैं इस भाषा को ज़रूर सीखूंगी, तुम्हारे और उनके बीच पुल बन जाऊंगी और अपने लिए भी ढेर सारे नए दोस्त बना लूंगी।

चौथा वादा

मैं इस साल जितना हो सके तुम्हें प्रकृति के नज़दीक ले जाती रहूंगी। पेड़, पौधे, नदी और पहाड़ सिर्फ दिखने में सुन्दर नहीं होते हैं, इनसे हमें जीने की ऊर्जा भी मिलती है।

तुम देखोगी कि कैसे विपरीत से विपरीत परिस्थिति में भी पेड़ तनकर खड़े रहते हैं। फूल किसी से कोई शिकायत ना करते हुए अपने हिस्से की दुनिया को खूबसूरत बनाते हैं। तुम देखोगी कि अगर उगने की ज़िद्द हो तो खड़ी चट्टानों पर भी सुन्दर से पौधे उग आते हैं।

अगर जीने का हौसला हो तो बारिश, सर्दी और पाले की मार के बाद भी पौधे लहलहाते हैं। मैं चाहती हूं कि तुम इस धरती की सुंदरता को भरपूर निहारो और अपने मन में एक भरोसा लाओ कि ये दुनिया बहुत खूबसूरत है।

अपनी बेटी आद्या के साथ दीपिका, फोटो साभार – दीपिका ध्यानी घिल्डियाल की फेसबुक प्रोफाइल

पांचवा वादा

मेरा वादा है तुमसे कि इस साल तुम्हें बहुत सारे अच्छे लोगों से भी मिलवाऊंगी। ऐसे लोग जो अभी भी जीवन की सुंदरता में यकीन रखते हैं। अपने साथ दूसरों का जीवन भी आसान बनाते हैं।

मैं चाहती हूं जब चारों तरफ नफरतों का बोलबाला है, तुम इन प्यार भरी फुहारों से मिलो और महसूस करो कि तमाम बुराइयों के बाद भी बहुत कुछ है जो अभी भी बहुत सुन्दर है, मधुर है।

इन पांच वादों के साथ एक वादा यह भी कि मैं खुद भी इस दुनिया को थोड़ा और सुन्दर बनाने की कोशिश करूंगी। हम सब बस यही करने यहां आये हैं, मुझे यकीन है तुम भी यही करोगी।

साल मुबारक, ज़िंदगी मुबारक मेरी बच्ची।

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यह लेख पहले यहां प्रकाशित हो चुका है।

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