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“सिर्फ हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के नाम पर BJP झारखंड नहीं जीत सकती थी”

प्रधानमंत्री की 9 सभाएं, गृहमंत्री की 11 सभाएं एवं सभी भाजपा के स्टार प्रचारकों के जमावड़े के बावजूद भाजपा की झारखंड में हार यह दर्शाती है कि आप केवल हिंदुत्व एवं राष्ट्र के नाम पर चुनाव नहीं जीत सकते हैं। भाजपा के सभी स्टार प्रचारकों ने झारखंड के राष्ट्रीय मुद्दों को भुनाने की भरपूर कोशिश की पर शायद वे यह भूल गए कि राज्य के चुनावों में स्थानीय मुद्दे हावी रहते हैं।

फोटो सोर्स- रघुवार दास फेसबुक वॉल

वे शायद इसलिए भी राज्य के मुद्दों के बारे में बातें नहीं करना चाहते थे, क्योंकि पिछले पांच सालों से उन्हीं की सरकार थी और वे स्थानीय मुद्दों को सुलझाने की बजाय उलझा चुके थे। आइए झारखंड में बीजेपी की हार की मुख्य वजहों को जानते हैं।

1. भाजपा ने भ्रष्टाचार का मुद्दा भी खोया

भाजपा ने झारखंड में अपना एक प्रमुख मुद्दा ‘भ्रष्टाचार’ भी खो दिया था, क्योंकि झारखंड में भाजपा ने अनेक दागियों को टिकट बांटा, जिनपर भ्रष्टाचार के आरोप थे। भाजपा ने झारखंड में धारा 370, राम मंदिर, CAA, सर्जिकल स्टाइक जैसे मुद्दों पर बात की। बढ़ती महंगाई, बेरोज़गारी जैसे मुद्दों पर एक शब्द नहीं बोला और विपक्ष इन मुद्दों को भुनाने में कामयाब रहा।

2. झारखंड की जनता को रघुवर दास मंज़ूर नहीं थे

फोटो सोर्स- रघुवार दास फेसबुक वॉल

भाजपा के झारखंड में हारने के अनेक कारण हैं, इनमें से पहला है मुख्यमंत्री का चेहरा। भाजपा झारखंड में चुनाव तो नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ रही थी पर यह साफ था कि चुनाव जितने के बाद मुख्यमंत्री रघुवर दास ही बनेंगे। इससे यह संदेश गया कि मुख्यमंत्री फिर से एक बाहरी को ही बनाया जाएगा। साथ-ही-साथ रघुवर दास का अड़ियल रवैया भी उन्हें ले डूबा।

3. हार की एक बड़ी वजह रही बेरोज़गारी

यह इस सरकार के लिए बड़ी शर्म की बात रही कि पांच साल स्थिर सरकार रहने के बावजूद भाजपा सरकार राज्य में एक सिविल सेवा परीक्षा पूरी नहीं करवा सकी। अन्य क्षेत्रों में भी सरकारी नियुक्तियां नहीं हुईं, इससे युवा‌ वर्ग जो भाजपा का कोर वोट है, वह उससे छिटक गया।

4. CNT, SPT Act

CNT, SPT Act के लागू होने से सभी मूलवासियों एवं आदिवासियों में यह संदेश गया कि यह सरकार उनसे उनके मालिकाना हक की ज़मीनें छीन रही है।

5. अनुबंध कर्मियों की अनदेखी

फोटो सोर्स- रघुवार दास फेसबुक वॉल

झारखंड में अनुबंध कर्मियों की संख्या बहुत ज़्यादा है, चाहे वे सेविका सहायिका हो या पारा टीचर, इन सबके मामले में रघुवर दास ने कड़ा रुख अपनाया एवं उनके आंदोलनों को दबाने के लिए पुलिसिया कार्रवाई की गई, जिससे मामला और बिगड़ गया।

6. सबसे मज़बूत कारण रहा, मज़बूत विकल्प का होना

लोकसभा चुनावों में जनता के पास केवल एक नरेंद्र मोदी के रूप में मज़बूत विकल्प था पर विधानसभा के चुनावों में जनता के पास विकल्प की कमी नहीं रही और हेमंत सोरेन भी इसे भुनाने में पूरी तरह कामयाब रहें। हेमंत सोरेन युवाओं में भी काफी लोकप्रिय हैं, क्योंकि वे आदिवासियों एवं गैर आदिवासियों दोनों में पूरी तरह मान्य हैं।

अंततः भाजपा जैसी बड़ी राष्ट्रीय पार्टी को अब जनता की मांग समझने की ज़रूरत है, तभी वह आगे के चुनावों में जीत सकती है वरना आने वाले राज्यों के चुनावों में भी यही हाल ना हो जाए।

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