यह किसी ड्रामे का
कोई रिहर्सल नहीं है
ना ही किसी स्टंट फिल्म का
कोई ड्रामाई सीन है!
लड़की जो बैठ गई है
बेहद सख्ती से तख्ती थामे
विशाल संसद के बाहर
भीतर बैठे सांसदों की ज़मीर जगाने को,
लड़की जो बंदूक की तरह
अपनी ऊंगली ताने चेता रही है
लुढ़के पड़े लड़के की टांगों को कूटते
निर्दयी सशस्त्र जवानों को,
लड़की जो गुलाब की कली लिए
प्रदर्शित कर रही है अपना अपार शौर्य
उस बदमिजाज़ पुलिस अफसर के समक्ष
लैश है जो किसी भी जुलूस को
कुचल डालने के आसुरी अख्तियार से;
या फिर वे तमाम लड़कियां
जो अपने समस्त आंतरिक बल से
मुट्ठियां ताने और लगातीं इंकलाब के नारे
दिख रही हैं आज हर तरफ
जुलूसों में संघर्षों में आगे ही आगे
अपने हज़ार-हज़ार साथियों की ढाल बनकर!
ये तमाम रोमांचकारी दृश्य
आज के समय की जलती ज़मीनी सचाई हैं!
फिल्म या ड्रामे के कृत्रिम दृश्यों से इतर
पढ़ने वाली ये नौजवान लड़कियां
इस खातिर सड़कों पर उतर
इस पाजी सत्ता से सीधे टकराई हैं
कि यह देश किसी के पाप की नहीं कमाई है!
लिखो कवि,
लिखो एक ऐसा वीरोचित गान
कि इन न्यायपूर्ण संघर्षों में
नेतृत्वरत लड़कियों का हर बाप
कह सके छाती अपनी तान
प्रभु, अगले जनम में देना फिर ऐसी ही संतान!