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“अखबार के पन्नों में बलात्कार की खबरें”

लड़की

लड़की

आज का अखबार खोलते ही

नज़र हेडलाइन पर गई

पूरा अखबार रेप, रेप और रेप की खबरों से भरा था

माँ ने जल्दी से अखबार लिया

और कहा यग सब न्यूज़ वाले ऐसे ही खबरें छापते रहते हैं

ध्यान मत दो।

जो माँ रोज़ अखबार पढ़ने को बोलती थी

आज उसी माँ ने अखबार मेरे हाथों से छिन लिया

आखिर क्या मजबूरी हुई होगी माँ की?

 

शायद माँ नहीं चाहती थी कि मेरा इंसानियत से विश्वास उठ जाए

उसके दिल में भी कहीं खौफ सा भरा था

डरती थी वह मुझे कहीं अकेला बाहर भेजने में

सिखाती थी वह मुझे रोज़ दुनिया से लड़ने के लिए

रात को देर हो जाए तो सबसे ज़्यादा मिस्ड कॉल माँ के ही होते थे।

 

जिस बाप की आखों में कभी खौफ नज़र नहीं आता था

बाप रेप की खबरें सुनकर

घबरा सा गया था

आंखों में उसकी बेचैनी थी

और आंखें उसकी नम सी थीं।

 

उसकी बेटी उसके जिगर का टुकड़ा थी

जिसको उसने बड़े ही प्यार से पाला था

उसके शरीर की रूह थी उसकी बेटी

फिर रूह को वो केसे कुछ होने देता

क्योंकि रूह के जाने से वो भी अधमरा सा हो जाता।

 

रोज़-रोज़ की खबरें सुनकर

माँ ओर पापा जिनकी आशा को खत्म होते नहीं देख सकते हैं

और ना ही वे अपनी बेटी को दरिंदों के बिच रहने देने का साहस कर सकते थे

इसलिए माँ और पापा जो कभी बेटी की दुआ मांगा करते थे

आज भगवान से प्रार्थना करने लगे कि अगले जन्म हमें बेटी मत देना।

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