अगर आप के सिर में दर्द है, तो इसका सबसे अच्छा उपचार है कि आप एक हथौड़ा उठाएं और अपने पैर पर मार लें, कुछ ही क्षण में आप अपने सिर का दर्द भूल जाएंगे।
यह ज्ञान मेरा नहीं है, यह तो मैंने वर्तमान समय में चल रहे सत्ता समीकरण से सीखा है। यह ज्ञान देने वाले कोई और नहीं बल्कि मेरे ही देश के सत्ताधारी हैं।
असली मुद्दों से ध्यान भटका रही है सरकार
जहां एक तरफ वर्तमान समय में देश कई तरह की समस्याओं जैसे,
- गिरती हुई सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी),
- महिलाओं और बच्चों के खिलाफ बढ़ रही हिंसा,
- युवाओं में बढ़ रही बेरोजगा़री की दर आदि
जैसे हज़ारों मुद्दों से जूझ रहा है। इन सबपर सरकार को जल्द से जल्द ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, क्योंकि कहीं ना कहीं शायद इन सब मुद्दों की वजह से जनता के हृदय में अत्यधिक आक्रोश भी भरा है।
कहीं आक्रोश सरकार को सवालों के घेरे में ना खड़ा कर दे इसके लिए सरकार ने सही समय पर सही मुद्दा उठा लिया है और लोगों का ध्यान उन मुद्दों से हटाने में काफी हद तक सफल रही है। आज सरकार ने नागरिकता कानून नामक हथौड़े से लोगों के मस्तिष्क पर ऐसा प्रहार किया कि लोगों का ध्यान मुख्य मुद्दों से हटकर एक जगह आकर केंद्रित हो गया है।
- हाल ही में आई राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (2019) की रिपोर्ट के अनुसार 2017 में भारत में 325559 मामले बलात्कार के औक 95893 मामले अपहरण के सामने आए।
- वही इंडिया टुडे (2019) के मुताबिक जीडीपी 4.5 है,
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 2016 से 2019 के बीच अल्पसंख्यकों / दलितों का उत्पीड़न के 2008 मामलें दर्ज किये।
- 2011 की जनगणना के अनुसार 78 लाख बच्चे बाल मज़दूरी में शामिल हैं और
- 102 मिलियन लड़कियों का बाल विवाह हुआ है।
कहने का तात्पर्य यह है कि क्या देश की सरकार इन मुद्दों से जानबूझकर लोगों का ध्यान भटकाना चाहती है? या सिर्फ हिंदू-मुसलमान पर राजनीति खेलकर लोगों का ध्यान आकर्षित करती रहेगी।
लोगों का ध्यान विकास से हटाकर मुस्लिमों पर केंद्रित कर दिया है
मेरे मन में यह प्रश्न उठ रहा है कि क्या अभी हाल में हृदय को दहलाने वाली घटना (हैदराबाद बलात्कार) के प्रति या उन हज़ारों महिलाओं की तुलना में जो बलात्कार, अपहरण, एसिड अटैक जैसी हिंसा का शिकार हुई हैं, उनके लिए ठोस कदम उठाने के लिए सरकार के पास समय नहीं है? शायद नहीं होगा क्योंकि सरकार शायद महिलाओं के बलात्कार से भी ऊपर किसी हाशिए पर रह रहे तबके के लिए कानून बनाने में व्यस्त है।
14.2 प्रतिशत में तो किसी विद्यार्थी का अपनी कक्षा में उत्तीर्ण होना असंभव हो जाता है, तो फिर 121 करोड़ की आबादी वाले देश में 14.2 प्रतिशत तादाद का समाज क्या कर सकता है? लेकिन सरकार को अपनी सत्ता भी तो चलानी है, इसी वजह से उसने लोगों का ध्यान विकास से हटाकर मुस्लिमों पर केंद्रित कर दिया।
वह तबका जो शिक्षा, रोज़गार और आर्थिक स्थिति में अभी भी समाज की मुख्यधारा में शामिल नहीं है (सच्चर कमेटी, 2006)। शायद उस तबके को कुचलना इसलिए और भी महत्वपूर्ण होगा क्योंकि सरकार के पास गिरती हुई जीडीपी का कोई उत्तर नहीं है।
इन सब प्रश्नों से बचने के लिए विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का ध्यान किसी एक जगह केंद्रित करना कोई आसान बात नहीं है लेकिन कैब के ज़रिए सरकार लोगों का ध्यान दूसरी ओर केंद्रित करने में सफल रही।
दुष्यंत कुमार ने कहा था,
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरा उद्देश्य किसी बिल के पक्ष या विपक्ष में रहना नहीं है। मैं तो सिर्फ इतना ही जानना चाहती हूं कि देश में हो रहे हज़ारों अपराध के लिए सरकार ठोस कदम क्यों नही उठा रही?