नागरिकता संशोधन विधेयक या सिटीज़नशिप अमेंडमेंट बिल, जिसे केन्द्रीय मंत्रीमंडल ने आज लोकसभा में स्वीकृति दे दी है। कयास लगाए जा रहे हैं कि अगले एक हप्ते में इसे लोकसभा से पास करा दिया जाएगा। इसका मतलब यह कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी।
गौरतलब है कि सिटीज़नशिप अमेंडमेंट बिल के कानून बन जाने के बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पाससी और इसाईयों को ही भारत की नागरिकता मिलेगी। इसमें मुस्लिम शरणार्थियों को शामिल नहीं किया जाएगा।
नागरिकता संशोधन बिल के तहत उन्हीं शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिलेगी जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए हैं। नागरिकता संशोधन विधेयक के संदर्भ में यह भी जानना ज़रूरी है कि केन्द्र सरकार ने साल 2016 में इसे लोकसभा से पास करा लिया था।
19 जुलाई 2016 को नागरिकता संशोधन विधेयक को लोकसभा में पेश किया गया था। 12 अगस्त 2016 को इसकी रिपोर्ट संसदीय समिति के पास भेजी गई थी। 7 जनवरी 2019 को समिति द्वारा रिपोर्ट पेश करने के बाद 8 जनवरी 2019 को यह बिल लोकसभा से पास हो गया था मगर राज्यसभा में इसे पेश ही नहीं किया गया, जिसके बाद संसद का सत्र खत्म होने के कारण बिल को निरस्त कर दिया गया।
क्यों पड़ रही है दोनों सदनों से बिल को पास कराने की ज़रूरत?
संसदीय प्रक्रियाओं के नियमों के मुताबिक अगर कोई विधेयक लोकसभा में पास हो जाता है मगर किसी कारण से राज्यसभा में पास नहीं हो पाता है और इसी बीच लोकसभा का कार्यकाल समाप्त हो जाने पर वह विधेयक निष्प्रभावी हो जाता है। इसका मतलब यह कि उस बिल को फिर से दोनों सदनों से पास कराना होता है।
चूंकि यह विधेयक राज्यसभा से पास नहीं हो पाया था और इसी बीच 16वीं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त हो गया, इसलिए इस विधेयक को फिर से दोनों सदनों में पास कराना होगा।
नागरिकता संशोधन विधेयक अगर कानून बन गया तो क्या होगा?
सिटीज़नशिप एक्ट 1955 में संशोधन करने के लिए लाया जा रहा है नागरिकता संशोधन विधेयक 2019। यदि यह विधेयक कानून का आकार ले लेता है तो बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से भारत आए शरणार्थियों को केवल 6 साल तक भारत में नागरिकता का प्रमाण देना होगा। जबकि सिटीज़नशिप एक्ट 1955 के मुताबिक शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता हासिल करने के लिए ग्यारह साल तक भारत में होने के प्रमाण पेश करने होते थे।
अवैध प्रवासियों को या तो जेल में रखा जाता है या फिर ‘विदेशी अधिनियम 1946’ और ‘पासपोर्ट अधिनियम 1920’ के तहत उन्हें वापस उनके मुल्क भेजने का प्रावधान है।
अमित शाह ने यह भी कहा है कि 2024 तक देशभर में एनआरसी को लागू कर दिया जाएगा। गौरतलब है कि गृहमंत्री अमित शाह ने अभी हाल ही में कोलकाता में एक रैली को संबोधित करते हुए मुसलमानों के छोड़कर बाकी मज़हब के लोगों को चिंता नहीं करने की बात कही थी। अमित शाह के बयान के बाद एक तरह से सवाल उठ रहे थे कि आखिर शाह ने मुसलमानों का नाम क्यों नहीं लिया?
वहीं, दूसरी तरफ असम और नॉर्थ ईस्ट के अन्य इलाकों की बात की जाए तो वहां सिटीज़नशिप अमेंडमेंट बिल को लेकर लोगों में काफी निराशा देखने को मिल रही है। असम के लोगों का कहना है कि यदि सिटीज़नशिप अमेंडमेंट बिल को राज्यसभा से भी पास कर दिया जाता है और इसके कानून बन जाने के बाद एनआरसी के कोई मायने नहीं रह जाएंगे।
गौरतलब है कि एनआरसी के मुताबिक 1971 से पहले असम आने वाले लोगों को ही असम की नागरिकता मिलने का प्रावधान था। ऐसे में पूरे देश में सिटीज़नशिप अमेंडमेंट एक्ट लागू होने के बाद एनआरसी के 1971 के पैमाने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। लोगों में आक्रोश इस हद तक है कि अभी भी असम से आगजनी की खबरें आ रही हैं।
क्या बीजेपी को होगा राजनीतिक घाटा?
असम के कई राजनीतिक दलों का यह कहना है कि अगर यह बिल पास कर दिया जाता है, तो हम असम को भारत से अलग देश बनाने की पहल शुरू कर देंगे। उनका कहना है कि उन्हें धर्म से कोई मतलब नहीं है मगर जो लोग 1971 से पहले असम आए हैं, उन्हें असम से बाहर निकाला जाना चाहिए।
असम से भाजपा के नेता और और वित्तमंत्री हेमंद बिस्वा शर्मा का कहना है कि असम में अभी और भी बहुत कुछ सामने आना बाकी है। उन्होंने कहा कि वह एनआरसी को लेकर सारी उम्मीदें छोड़ चुके हैं, क्योंकि केंद्र और राज्य सरकार विदेशियों को राज्य से बाहर करने के नए तरीकों पर चर्चा कर रही हैं।
डिटेंशन सेंटर में हो रही हैं मौतें
असम की जेलों में बने डिटेंशन सेंटरों में साल 2011 से अब तक 25 लोगों की मौत हो चुकी है, जिन्हें विदेशी न्यायाधिकरण (फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल) द्वारा विदेशी घोषित कर दिया गया था।
इनमें से 24 मौतें पिछले तीन सालों में हुई हैं। डेक्कन हेराल्ड की खबर के अनुसार इस साल अब तक डिटेंशन सेंटरों में विदेशी घोषित किए गए सात लोगों की मौत हुई है। राज्य के 6 डिटेंशन सेंटरों में 11,145 लोग बंद हैं।