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क्या यूपी में मिड डे मील में चूहे वाली दाल परोसना इत्तेफाक था?

मिड डे मील में परोसी गई चूहे वाली दाल की तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

मिड डे मील में परोसी गई चूहे वाली दाल की तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

“नन्हें मुन्नें बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है, मुट्ठी में है तकदीर हमारी।”

यह कहावत सुनने में तो काफी अच्छा लगता है लेकिन आज कल स्कूलों में इन्हीं नन्हें मुन्नें बच्चों की ज़िंदगी के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। मैं बात कर रही हूं मुज़फ्फरनगर की जहां एक स्कूल के मिड डे मील (मध्याह्न भोजन योजना) में बच्चों को चूहे वाली दाल परोसी गई।

इस वजह से 9 बच्चों और 1 शिक्षक की सेहत अचानक से बिगड़ गई। वहां मौजूद बच्चों ने बताया कि जब दाल परोसी जा रही थी, तब उसके अंदर चूहा पड़ा हुआ था। अब यह इत्तेफाक तो नहीं हो सकता! भला इसको लापरवाही नहीं तो और क्या कहा जाए?

मिड डे मील में परोसी गई चूहे वाली दाल की तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

मिड डे मील सेंट्रल गवर्मेन्ट की एक योजना है। इसका लाभ स्कूल में पढ़ने वाले छोटे बच्चों को मिलता है। यह योजना राज्य के लगभग हर सरकारी स्कूलों में अनिवार्य है। सरकार मिड डे मील की व्यवस्था इसलिए करती है ताकि जो गरीब बच्चे हैं, उन्हें पर्याप्त पौष्टिक खाद्य पदार्थ से भरा खाना मिल सके और कोई भी बच्चा भूखा ना रहे। इस योजना का उद्देश्य यही था कि स्कूलों में बच्चों की संख्या में बढ़त हो।

लेकिन ज़मीनी सच्चाई अकसर सरकारी दावों की पोल खोल देती है। यहां लोगों को अपनी मोटी तनख्वाह से मतलब है फिर चाहे कुपोषण के कारण बच्चों की जान ही क्यों ना जाए? इसके स्कूल प्रशासन को कोई लेना-देना नहीं है।

मिड डे मील योजना के ज़रिये बच्चों को खाने के लिए दाल, चावल, सब्ज़ी एवं दूध आदि दिया जाता है। अब जब दूध की बात आई है, तो हाल ही में एक वायरल वीडियो में यह पाया गया कि 1 लीटर दूध में पानी मिलाकर 85 बच्चों को पिलाया गया।

जर्जर व्यवस्था में देश को स्वस्थ नहीं, बल्कि कुपोषित बच्चे मिलेंगे

मिड डे मील योजना के तहत भोजन तैयार करती महिलाएं। फोटो साभार- Flickr

स्कूल वाले मिड डे मील योजना तो चला रहे हैं लेकिन शायद वे इस बात से परिचित नहीं हैं कि हर एक योजना के पीछे कुछ गाइडलाइंस भी होती हैं। ऐसी ही कुछ गाइडलाइन्स मिड डे मील के लिए भी बनाई गई हैं। जैसे-

सरकार की इन गाइडलाइन्स के मुताबिक कक्षा एक से पांच के बच्चों को दिए जाने वाले भोजन में 450 ग्राम कैलोरी और 12 ग्राम प्रोटीन की मात्रा होनी चाहिए। वहीं, कक्षा छठी से आठवीं तक के बच्चों को दिए जाने वाले भोजन में 700 ग्राम कैलोरी और 20 ग्राम प्रोटीन की मात्रा होनी चाहिए लेकिन ये सब आंकड़े सिर्फ कागज़ों पर ही देखने को मिलते हैं। असल में तो बच्चों को चूहे वाली दाल और दूध में पानी नहीं, बल्कि पानी में दूध मिलाकर दिया जाता है।

गर्मी की छुटियों में जब स्कूल बंद हो जाते हैं, तब बच्चों को खाना नहीं मिल पाता है। कई बच्चों की इस कारण मौत भी हो जाती है। ऐसा ना हो इसलिए सरकार ने 2004 से कई सूखा प्रवाहित क्षेत्रों में छुट्टियों के दौरान भी बच्चों के लिए इसकी व्यवस्था जारी रखी।

इन सबके बावजूद भी बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं और इसके लिए कोई भी एक्शन नहीं लिया जा रहा है। इस तरह बच्चों के जीवन के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। अगर आप उनको पौष्टिक अन्न नहीं उपलब्ध करा सकते हैं, तो कम-से-कम ज़हर को मत परोसिए।

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