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“क्या नागरिकता कानून लागू कर सरकार हिन्दू शरणार्थियों को NRC से बचाना चाहती है?”

सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर नागरिकता कानून का लोगों ने विरोध किया। यह विरोध यहीं तक सीमित नहीं है। इनके अलावा भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) ने नागरिकता संशोधन विधेयक पर एक संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष अपनी आशंका व्यक्त की थी। इस विधेयक को लागू करने को लेकर रॉ ने सुरक्षा के संबंध में चिंता ज़ाहिर की थी। इसी वर्ष जनवरी में लोकसभा और राज्यसभा की संयुक्त संसदीय समिति द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट के अनुसार रॉ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने संयुक्त संसदीय समिति के सामने अपनी चिंता व्यक्त की थी। उनहोंने कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक यानी कि सीएबी का विदेशी दुश्मनों के द्वारा दुरुपयोग किया जा सकता है। जो भारतीय हितों के लिए ठीक नहीं है। रॉ के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार सीएबी एक ऐसा कानूनी ढांचा है जिसका उपयोग भारत में घुसपैठ करने के लिए दुश्मन कर सकते हैं। हमें समझना होगा कि जो एजेंसियां हमारे लिए विरोधी हैं, वे ऐसे कानूनी ढांचों द्वारा हमारी स्थिति का शोषण कर सकती हैं। वे अपने ही लोगों के ज़रिये हमारे देश में घुसपैठ करा सकते हैं जो कि हमारे लिए चिंता का विषय है। CAB को लेकर दशभर में विरोध प्रदर्शन जारी रॉ की बातों को नज़रअंदाज़ करते हुए विवादास्पद नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 को लोकसभा और राज्यसभा से पारित कर दिया गया, जिसके बाद राष्ट्रपति के अनुमोदन के साथ यह कानून बनकर तैयार है। अब इसे लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों में विरोध प्रदर्शन जारी है। इस कानूम में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है। नागरिकता कानून में उन मुसलमानों को नागरिकता देने के दायरे से बाहर रखा गया है जो भारत में शरण लेना चाहते हैं। विधेयक में भेदभाव होने के कारण इसकी आलोचना की जा रही है और इसे भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बदलने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि अभी तक हमारे संविधान में किसी को धर्म के आधार पर भारतीय नागरिकता देने से मना नहीं किया गया था। काँग्रेस ने विभाजन स्वीकार किया था ना कि दो राष्ट्र का सिद्धांत जबकि अमित शाह ने संसद में कहा कि देश की आज़ादी के बाद अगर काँग्रेस ने धर्म के आधार पर देश का विभाजन ना किया होता तो आज नागरिकता संशोधन बिल लाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। अमित शाह का यह कथन बिल्कुल गलत है, क्योंकि हिंदू और मुस्लिम समुदाय के आधार पर देश को बांटने का "दो राष्ट्र सिद्धांत" मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा रखा गया था। हालाकी काँग्रेस ने विभाजन तो स्वीकार किया था लेकिन दो राष्ट्र का सिद्धांत नहीं। चलिए अगर मान लेते हैं कि काँग्रेस ने धर्म के आधार पर विभाजन किया, तो सवाल यह है कि उस वक्त श्यामा प्रसाद मुखर्जी क्या कर रहे थे? संघ या हिन्दू महासभा ने विरोध क्यों नही किया? अमित शाह ने कह दिया और सभी मान लें? क्यों? इसलिए कि अमित शाह संसद में झूठ बड़े गर्व के साथ बोलते हैं। जबकि 1937 में आरएसएस और हिन्दू महासभा जो आज की बीजेपी है, दोनों ने हिन्दू राष्ट्र की मांग की थी। जबकि मुस्लिम लीग की स्थापना 1940 में हुई और इसके बाद जिन्ना ने पाकिस्तान की मांग की। अब यह सच या तो अमित शाह जानते नहीं या जानबूझ कर अनजान हैं। भारत का विभाजन एक काला अध्याय भारत का विभाजन करने में कट्टर हिंदू संगठनों का उतना ही योगदान था जितना मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना का। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रख्यात समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया अपनी किताब 'द गिल्टी मैन ऑफ इंडियाज़ पार्टीशन' में विस्तार से लिखते हैं, कट्टर हिंदूवाद द्वारा विभाजन का विरोध करने का कोई मतलब नहीं है। देश को विभाजित करने वाली शक्तियों में से एक यह हिंदू कट्टरता थी, जो उसके अपराध के बाद की गई हत्या की तरह थी। इसके बारे में कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि अखंड भारत को लेकर चिल्लाने वाले मौजूदा जनसंघ और इनके पूर्वजों ने ब्रिटेन और मुस्लिम लीग की देश के विभाजन में मदद की है। सरकार ने जिस मंशा से NRC लागू किया वह पूरी नहीं हुई जब NRC अभियान असम में शुरू किया गया, तब लगभग 19 लाख से भी ज़्यादा लोग इससे बाहर हो गए थे। NRC के इस अभियान को चलाने में सरकार ने 1600 करोड़ रुपये खर्च हुए थे लेकिन इन 19 लाख लोगों में ज़्यादातर हिन्दू निकले। तब सरकार को लगा कि यह काम उसकी मंशा के अनुरूप नहीं हुआ। परिणाम दुष्परिणाम में बदल गया तब सरकार CAB को लेकर आ गई। मुस्लिमों को इस बिल से नागरिकता ना देने की बात कही, जिससे उसकी मंशा और रव्वैये पर सवाल उठना लाज़मी है। अब सवाल यह उठता है कि NRC अभियान शुरू करने से पहले क्या सरकार यह मानकर चल रही थी कि NRC के दायरे में केवल मुस्लिम ही आएंगे? क्या उन्हें यह लगा कि NRC के ज़रिये मुसलमानों को बाहर भेजने के नाम पर राजनीति करेंगे? या फिर उन्हें डिटेंशन सेंटर में डाला जाएगा। यानी हिन्दू मुस्लिम एजेंडा बनाकर एक राजनितिक मुद्दा तैयार हो लेकिन ऐसा हुआ नहीं।  3.9 करोड़ की आबादी वाला असम दिन महीने साल परेशान रहा। देखते-देखते कई लोगों ने आत्महत्या भी कर ली मगर सरकार पर कोई फर्क नही पड़ा, क्योंकि सरकार को सावरकर और गोडसे के कट्टरपंथी हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करनी है और हिन्दू-मुस्लिम एजेंडा बनाकर राजनीति करनी है। खुद को भारतीय कहने वाले जो 19 लाख से ज़्यादा लोग NRC से बाहर हुए थे, अब यही लोग CAB पारित होने के बाद खुद को बांग्लादेशी, पाकिस्तानी, अफगानिस्तानी आदि बताएंगे। या फिर खुद को प्रताड़ित बताकर भारतीय नागरिक बन जाएंगे। सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर वह इस दौरान कमाकर कोई संपत्ति अर्जित किए होंगे तब उसका क्या होगा? क्योंकि सरकार तो उन्हें विस्थापित  मानेगी? NRC बीजेपी सरकार का ब्लंडर नहीं तो क्या है? जब NRC की प्रक्रिया शुरू हुई तो जो लाखों लोग इससे बाहर हो गए, उनमें अधिक्तर गैर मुस्लिम थे। अब बीजेपी के लिए NRC वाला एजेंडा घातक बनता जा रहा था। इसलिए NRC को ब्लंडर बनता देख CAB पारित कर इसे अपने फेवर में लाने की कोशिश कर रही है भाजपा। ऐसा नहीं है कि NRC बीजेपी का पहला ब्लंडर है। इससे पहले हुए ब्लंडर को याद कीजिए। कालाधन के नाम पर नोटबंदी का ब्लंडर, जो देश को आर्थिक आपातकाल में धकेल देता है। नोटबंदी के समय कहा गया कि कालेधन वाले परेशान होंगे लेकिन असल में कौन परेशान हुआ सब जानते हैं। कों की लाइन में कौन मरा? लाठियां किसने खाईं? लोगों को इस बात पर खुश किया जाता रहा कि अमीरों का कालाधन खत्म हो जाएगा लेकिन हुआ क्या कुछ ऐसा? दूसरा ब्लंडर टैक्स चोरों के नाम GST का लागू होना। जो देश के लघु उद्योग को रसातल पर पहुंचा देता है। GST आया तो बताया गया कि टैक्स की चोरी नहीं होगी। टैक्स चोर अब बचेंगे नहीं लेकिन हुआ क्या? छोटे व्यापारी GST की भेंट चढ़ गए। किसी टैक्स चोर का तो पता नहीं चला लेकिन छोटे व्यापार और रोज़गार खत्म हो गए। तीसरा ब्लंडर आतंकवाद और कश्मीरी पंडितों के नाम पर अनुच्छेद 370 हटा दिया जाना। वहां के लोगों को उनके घरों में कैद करके उनकी पढ़ाई-लिखाई, रोज़गार, व्यापार और उनका अपना अधिकार तक छीन लिया गया। अनुच्छेद 370 का असर वहां के लोगों को आर्थिक रूप से और बच्चों के आने वाले भविष्य में शिक्षा ना ले पाने के रूप में देखा जाएगा। ब्लंडर की इसी कड़ी में NRC का भी नाम जुड़ गया है। घुसपैठियों को रोकने के नाम पर शुरू हुई यह प्रक्रिया देश के संविधान के मूल को बदलने की एक कोशिश है। हमारे संविधान में जब धर्म, जाति, रंग इत्यादि के नाम पर कोई भेदभाव नहीं है, तो धर्म के नाम पर नागरिकता कैसे? आज भी हमारे यहां कुछ लोग बंजारे, नट और नोना के तौर पर परिभाषित किए जाते हैं, जिन्हें हम पीढ़ियों से देखते या सुनते आ रहे हैं। ये लोग यहीं के रहने वाले हैं लेकिन आज भी उनके पास कोई प्रमाण पत्र नहीं है तो क्या वे घुसपैठी हैं? पहले तो बीजेपी वाले अपने मंच से नेहरू पर इल्ज़ाम लगाते हुए झूठ बोलते थे। अब तो संसद में बैठकर झूठ बोल रहे हैं और तो और लाल किले की प्राचीर से भी झूठ बोला जा रहा है। झूठा इतिहास बताकर वर्तमान स्थिति पर भी झूठ बोला जा रहा है, क्योंकि अनुच्छेद 370 हटाते समय अमित शाह ने कहा था, फारूक अब्दुल्ला डिटेंड नहीं हैं। वह बाहर नहीं आना चाहते हैं तो क्या मैं उनकी कनपट्टी पर बंदूक लगाकर उन्हें बाहर ले आऊं? लेकिन सच्चाई अब आपके सामने है। आज कल संसद में फैक्ट आधे बताए जा रहे हैं और वे भी जो इनके हिसाब से हैं। अमित शाह बोलते हैं कि पाकिस्तान ठीक रहता तो हमें यह नहीं करना पड़ता। अगर पाकिस्तान, बांग्लादेश में बंटवारे की वजह से समस्या है तो अफगानिस्तान में कब बंटवारा हुआ था, जो आप उसका नाम ले रहे हैं। आप कहते हैं वहां गैर-मुस्लिमों पर अत्याचार होते हैं। इसलिए हम उन्हें नागरिक बना रहे हैं। तो गृहमंत्री जी ज़रा यह बताओ आपके इस कदम से वहां अत्याचार और बढ़ेगा या घटेगा? अब बांग्लादेश से संबंध बिगड़ता है तो ज़िम्मेदार कौन? अमित शाह ने कहा कि बांग्लादेश में हिंदुओं का उत्पीड़न हो रहा है लेकिन इस बात को वहां के विदेश मंत्री ने खारिज करते हुए कहा, अमित शाह खुद आकर यहां कुछ दिन रहें और देखें कि बांग्लादेश में हिंदुओं का उत्पीड़न कैसे हो रहा है। नाराज़ होकर वहां के गृहमंत्री ने भारत का दौरा समाप्त कर दिया। मूलवासियों पर हो रहे अत्याचार की फिक्र आपको क्यों नहीं शाह जी? भारत में ही हर दिन महिलाएं, दलित, पिछड़े आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदाय के गरीब लोग रोज़ प्रताड़ित किए जा रहे हैं। यहां तो हिन्दू बहुसंख्यक हैं उसके बावजूद भी हिन्दुओं पर अत्याचार हो रहा है। शाह जी यह आपकी सरकार में भी हो रहा है, जिसकी आपको चिंता नहीं है। एक बेटी और उसका परिवार ट्रक से कुचल दिया जाता है, वह भी उनके विधायक के द्वारा। एक बेटी का रेप होता है उसके बाद दिनदहाड़े जला दिया जाता है। अमित शाह को इसकी चिंता क्यों नहीं होती है? क्या ये लोग प्रताड़ित नहीं हो रहे? या फिर ये लोग हिन्दू नहीं हैं? या भारत में प्रताड़ना ठीक है? सच तो यह है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में प्रताड़ना हो रही है जैसी बातें बनाकर यहां के एक विशेष वर्ग को प्रताड़ित करने की चाह यह सब करवा रही है। बांग्लादेश के 1.7 करोड़ हिन्दू को क्या आप जगह दे पायेंगे? देश में आर्थिक मंदी, बेरोज़गारी और बदहाली चरम पर है। इससे निपटने हेतु जनता को सरकार द्वारा मदद मिलनी चाहिए थी लेकिन सरकार ने लोगों के लिए फरमान जारी कर दिया कि पहले अपनी नागरिकता सिद्ध करो फिर कुछ और। यह करते-करते सभी सरकारी संस्थाओं को बेचकर देश को कंगाल बना दिया जाएगा। जबकि उनके दोस्त जो चार्टर्ड प्लेन से घुमते हैं, वे मालामाल हो जाएंगे। आज़ादी के आंदोलन में गद्दारी कौन कर रहे थे? वही जो अंग्रेज़ों के लिए सेना भर्ती का कैंप लगा रहे थे। जो जिन्ना के साथ बंगाल में सरकार चला रहे थे। भारत छोड़ो आंदोलन को अंग्रेज़ों से कुचलने के लिए सिफारिश भरी चिट्ठी लिख रहे थे। आज वे नागरिकता के बहाने गाँधी, अंबेडकर और भगत सिंह के आंदोलनों से प्राप्त सपनों के भारत की जगह जिन्ना और सावरकर के अरमानों वाला देश बनाने पर तुले हैं। सच तो यह है कि आज संसद में उनकी संख्या ज़्यादा हो गई है, जिन्हें संविधान की मूल प्रस्तावना का ही पता नहीं है। उनसे हम बेहतर भारत की क्या उम्मीद करें? आज संसद में गोडसे के चेलों की संख्या बढ़ गई है। लेकिन आवाज दो साथ आने की, प्रतिज्ञा करो उनकी मंशा नाकामयाब बनाने की। वादा करो हम ऐसा नहीं होने देंगे। हम आवाज़ बुलंद करेंगे और रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान की दोस्ती वाले देश को कायम रखने के लिए पुरज़ोर संघर्ष करेंगे। यह साबित करेंगे कि CAB एक्ट 1955 में बदलाव ऐतिहासिक भूल है।

सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर नागरिकता कानून का लोगों ने विरोध किया। यह विरोध यहीं तक सीमित नहीं है। इनके अलावा भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) ने नागरिकता संशोधन विधेयक पर एक संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष अपनी आशंका व्यक्त की थी। इस विधेयक को लागू करने को लेकर रॉ ने सुरक्षा के संबंध में चिंता ज़ाहिर की थी। इसी वर्ष जनवरी में लोकसभा और राज्यसभा की संयुक्त संसदीय समिति द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट के अनुसार रॉ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने संयुक्त संसदीय समिति के सामने अपनी चिंता व्यक्त की थी। उनहोंने कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक यानी कि सीएबी का विदेशी दुश्मनों के द्वारा दुरुपयोग किया जा सकता है। जो भारतीय हितों के लिए ठीक नहीं है। रॉ के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार सीएबी एक ऐसा कानूनी ढांचा है जिसका उपयोग भारत में घुसपैठ करने के लिए दुश्मन कर सकते हैं। हमें समझना होगा कि जो एजेंसियां हमारे लिए विरोधी हैं, वे ऐसे कानूनी ढांचों द्वारा हमारी स्थिति का शोषण कर सकती हैं। वे अपने ही लोगों के ज़रिये हमारे देश में घुसपैठ करा सकते हैं जो कि हमारे लिए चिंता का विषय है। CAB को लेकर दशभर में विरोध प्रदर्शन जारी रॉ की बातों को नज़रअंदाज़ करते हुए विवादास्पद नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 को लोकसभा और राज्यसभा से पारित कर दिया गया, जिसके बाद राष्ट्रपति के अनुमोदन के साथ यह कानून बनकर तैयार है। अब इसे लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों में विरोध प्रदर्शन जारी है। इस कानूम में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है। नागरिकता कानून में उन मुसलमानों को नागरिकता देने के दायरे से बाहर रखा गया है जो भारत में शरण लेना चाहते हैं। विधेयक में भेदभाव होने के कारण इसकी आलोचना की जा रही है और इसे भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बदलने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि अभी तक हमारे संविधान में किसी को धर्म के आधार पर भारतीय नागरिकता देने से मना नहीं किया गया था। काँग्रेस ने विभाजन स्वीकार किया था ना कि दो राष्ट्र का सिद्धांत जबकि अमित शाह ने संसद में कहा कि देश की आज़ादी के बाद अगर काँग्रेस ने धर्म के आधार पर देश का विभाजन ना किया होता तो आज नागरिकता संशोधन बिल लाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। अमित शाह का यह कथन बिल्कुल गलत है, क्योंकि हिंदू और मुस्लिम समुदाय के आधार पर देश को बांटने का "दो राष्ट्र सिद्धांत" मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा रखा गया था। हालाकी काँग्रेस ने विभाजन तो स्वीकार किया था लेकिन दो राष्ट्र का सिद्धांत नहीं। चलिए अगर मान लेते हैं कि काँग्रेस ने धर्म के आधार पर विभाजन किया, तो सवाल यह है कि उस वक्त श्यामा प्रसाद मुखर्जी क्या कर रहे थे? संघ या हिन्दू महासभा ने विरोध क्यों नही किया? अमित शाह ने कह दिया और सभी मान लें? क्यों? इसलिए कि अमित शाह संसद में झूठ बड़े गर्व के साथ बोलते हैं। जबकि 1937 में आरएसएस और हिन्दू महासभा जो आज की बीजेपी है, दोनों ने हिन्दू राष्ट्र की मांग की थी। जबकि मुस्लिम लीग की स्थापना 1940 में हुई और इसके बाद जिन्ना ने पाकिस्तान की मांग की। अब यह सच या तो अमित शाह जानते नहीं या जानबूझ कर अनजान हैं। भारत का विभाजन एक काला अध्याय भारत का विभाजन करने में कट्टर हिंदू संगठनों का उतना ही योगदान था जितना मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना का। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रख्यात समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया अपनी किताब 'द गिल्टी मैन ऑफ इंडियाज़ पार्टीशन' में विस्तार से लिखते हैं, कट्टर हिंदूवाद द्वारा विभाजन का विरोध करने का कोई मतलब नहीं है। देश को विभाजित करने वाली शक्तियों में से एक यह हिंदू कट्टरता थी, जो उसके अपराध के बाद की गई हत्या की तरह थी। इसके बारे में कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि अखंड भारत को लेकर चिल्लाने वाले मौजूदा जनसंघ और इनके पूर्वजों ने ब्रिटेन और मुस्लिम लीग की देश के विभाजन में मदद की है। सरकार ने जिस मंशा से NRC लागू किया वह पूरी नहीं हुई जब NRC अभियान असम में शुरू किया गया, तब लगभग 19 लाख से भी ज़्यादा लोग इससे बाहर हो गए थे। NRC के इस अभियान को चलाने में सरकार ने 1600 करोड़ रुपये खर्च हुए थे लेकिन इन 19 लाख लोगों में ज़्यादातर हिन्दू निकले। तब सरकार को लगा कि यह काम उसकी मंशा के अनुरूप नहीं हुआ। परिणाम दुष्परिणाम में बदल गया तब सरकार CAB को लेकर आ गई। मुस्लिमों को इस बिल से नागरिकता ना देने की बात कही, जिससे उसकी मंशा और रव्वैये पर सवाल उठना लाज़मी है। अब सवाल यह उठता है कि NRC अभियान शुरू करने से पहले क्या सरकार यह मानकर चल रही थी कि NRC के दायरे में केवल मुस्लिम ही आएंगे? क्या उन्हें यह लगा कि NRC के ज़रिये मुसलमानों को बाहर भेजने के नाम पर राजनीति करेंगे? या फिर उन्हें डिटेंशन सेंटर में डाला जाएगा। यानी हिन्दू मुस्लिम एजेंडा बनाकर एक राजनितिक मुद्दा तैयार हो लेकिन ऐसा हुआ नहीं।  3.9 करोड़ की आबादी वाला असम दिन महीने साल परेशान रहा। देखते-देखते कई लोगों ने आत्महत्या भी कर ली मगर सरकार पर कोई फर्क नही पड़ा, क्योंकि सरकार को सावरकर और गोडसे के कट्टरपंथी हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करनी है और हिन्दू-मुस्लिम एजेंडा बनाकर राजनीति करनी है। खुद को भारतीय कहने वाले जो 19 लाख से ज़्यादा लोग NRC से बाहर हुए थे, अब यही लोग CAB पारित होने के बाद खुद को बांग्लादेशी, पाकिस्तानी, अफगानिस्तानी आदि बताएंगे। या फिर खुद को प्रताड़ित बताकर भारतीय नागरिक बन जाएंगे। सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर वह इस दौरान कमाकर कोई संपत्ति अर्जित किए होंगे तब उसका क्या होगा? क्योंकि सरकार तो उन्हें विस्थापित  मानेगी? NRC बीजेपी सरकार का ब्लंडर नहीं तो क्या है? जब NRC की प्रक्रिया शुरू हुई तो जो लाखों लोग इससे बाहर हो गए, उनमें अधिक्तर गैर मुस्लिम थे। अब बीजेपी के लिए NRC वाला एजेंडा घातक बनता जा रहा था। इसलिए NRC को ब्लंडर बनता देख CAB पारित कर इसे अपने फेवर में लाने की कोशिश कर रही है भाजपा। ऐसा नहीं है कि NRC बीजेपी का पहला ब्लंडर है। इससे पहले हुए ब्लंडर को याद कीजिए। कालाधन के नाम पर नोटबंदी का ब्लंडर, जो देश को आर्थिक आपातकाल में धकेल देता है। नोटबंदी के समय कहा गया कि कालेधन वाले परेशान होंगे लेकिन असल में कौन परेशान हुआ सब जानते हैं। कों की लाइन में कौन मरा? लाठियां किसने खाईं? लोगों को इस बात पर खुश किया जाता रहा कि अमीरों का कालाधन खत्म हो जाएगा लेकिन हुआ क्या कुछ ऐसा? दूसरा ब्लंडर टैक्स चोरों के नाम GST का लागू होना। जो देश के लघु उद्योग को रसातल पर पहुंचा देता है। GST आया तो बताया गया कि टैक्स की चोरी नहीं होगी। टैक्स चोर अब बचेंगे नहीं लेकिन हुआ क्या? छोटे व्यापारी GST की भेंट चढ़ गए। किसी टैक्स चोर का तो पता नहीं चला लेकिन छोटे व्यापार और रोज़गार खत्म हो गए। तीसरा ब्लंडर आतंकवाद और कश्मीरी पंडितों के नाम पर अनुच्छेद 370 हटा दिया जाना। वहां के लोगों को उनके घरों में कैद करके उनकी पढ़ाई-लिखाई, रोज़गार, व्यापार और उनका अपना अधिकार तक छीन लिया गया। अनुच्छेद 370 का असर वहां के लोगों को आर्थिक रूप से और बच्चों के आने वाले भविष्य में शिक्षा ना ले पाने के रूप में देखा जाएगा। ब्लंडर की इसी कड़ी में NRC का भी नाम जुड़ गया है। घुसपैठियों को रोकने के नाम पर शुरू हुई यह प्रक्रिया देश के संविधान के मूल को बदलने की एक कोशिश है। हमारे संविधान में जब धर्म, जाति, रंग इत्यादि के नाम पर कोई भेदभाव नहीं है, तो धर्म के नाम पर नागरिकता कैसे? आज भी हमारे यहां कुछ लोग बंजारे, नट और नोना के तौर पर परिभाषित किए जाते हैं, जिन्हें हम पीढ़ियों से देखते या सुनते आ रहे हैं। ये लोग यहीं के रहने वाले हैं लेकिन आज भी उनके पास कोई प्रमाण पत्र नहीं है तो क्या वे घुसपैठी हैं? पहले तो बीजेपी वाले अपने मंच से नेहरू पर इल्ज़ाम लगाते हुए झूठ बोलते थे। अब तो संसद में बैठकर झूठ बोल रहे हैं और तो और लाल किले की प्राचीर से भी झूठ बोला जा रहा है। झूठा इतिहास बताकर वर्तमान स्थिति पर भी झूठ बोला जा रहा है, क्योंकि अनुच्छेद 370 हटाते समय अमित शाह ने कहा था, फारूक अब्दुल्ला डिटेंड नहीं हैं। वह बाहर नहीं आना चाहते हैं तो क्या मैं उनकी कनपट्टी पर बंदूक लगाकर उन्हें बाहर ले आऊं? लेकिन सच्चाई अब आपके सामने है। आज कल संसद में फैक्ट आधे बताए जा रहे हैं और वे भी जो इनके हिसाब से हैं। अमित शाह बोलते हैं कि पाकिस्तान ठीक रहता तो हमें यह नहीं करना पड़ता। अगर पाकिस्तान, बांग्लादेश में बंटवारे की वजह से समस्या है तो अफगानिस्तान में कब बंटवारा हुआ था, जो आप उसका नाम ले रहे हैं। आप कहते हैं वहां गैर-मुस्लिमों पर अत्याचार होते हैं। इसलिए हम उन्हें नागरिक बना रहे हैं। तो गृहमंत्री जी ज़रा यह बताओ आपके इस कदम से वहां अत्याचार और बढ़ेगा या घटेगा? अब बांग्लादेश से संबंध बिगड़ता है तो ज़िम्मेदार कौन? अमित शाह ने कहा कि बांग्लादेश में हिंदुओं का उत्पीड़न हो रहा है लेकिन इस बात को वहां के विदेश मंत्री ने खारिज करते हुए कहा, अमित शाह खुद आकर यहां कुछ दिन रहें और देखें कि बांग्लादेश में हिंदुओं का उत्पीड़न कैसे हो रहा है। नाराज़ होकर वहां के गृहमंत्री ने भारत का दौरा समाप्त कर दिया। मूलवासियों पर हो रहे अत्याचार की फिक्र आपको क्यों नहीं शाह जी? भारत में ही हर दिन महिलाएं, दलित, पिछड़े आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदाय के गरीब लोग रोज़ प्रताड़ित किए जा रहे हैं। यहां तो हिन्दू बहुसंख्यक हैं उसके बावजूद भी हिन्दुओं पर अत्याचार हो रहा है। शाह जी यह आपकी सरकार में भी हो रहा है, जिसकी आपको चिंता नहीं है। एक बेटी और उसका परिवार ट्रक से कुचल दिया जाता है, वह भी उनके विधायक के द्वारा। एक बेटी का रेप होता है उसके बाद दिनदहाड़े जला दिया जाता है। अमित शाह को इसकी चिंता क्यों नहीं होती है? क्या ये लोग प्रताड़ित नहीं हो रहे? या फिर ये लोग हिन्दू नहीं हैं? या भारत में प्रताड़ना ठीक है? सच तो यह है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में प्रताड़ना हो रही है जैसी बातें बनाकर यहां के एक विशेष वर्ग को प्रताड़ित करने की चाह यह सब करवा रही है। बांग्लादेश के 1.7 करोड़ हिन्दू को क्या आप जगह दे पायेंगे? देश में आर्थिक मंदी, बेरोज़गारी और बदहाली चरम पर है। इससे निपटने हेतु जनता को सरकार द्वारा मदद मिलनी चाहिए थी लेकिन सरकार ने लोगों के लिए फरमान जारी कर दिया कि पहले अपनी नागरिकता सिद्ध करो फिर कुछ और। यह करते-करते सभी सरकारी संस्थाओं को बेचकर देश को कंगाल बना दिया जाएगा। जबकि उनके दोस्त जो चार्टर्ड प्लेन से घुमते हैं, वे मालामाल हो जाएंगे। आज़ादी के आंदोलन में गद्दारी कौन कर रहे थे? वही जो अंग्रेज़ों के लिए सेना भर्ती का कैंप लगा रहे थे। जो जिन्ना के साथ बंगाल में सरकार चला रहे थे। भारत छोड़ो आंदोलन को अंग्रेज़ों से कुचलने के लिए सिफारिश भरी चिट्ठी लिख रहे थे। आज वे नागरिकता के बहाने गाँधी, अंबेडकर और भगत सिंह के आंदोलनों से प्राप्त सपनों के भारत की जगह जिन्ना और सावरकर के अरमानों वाला देश बनाने पर तुले हैं। सच तो यह है कि आज संसद में उनकी संख्या ज़्यादा हो गई है, जिन्हें संविधान की मूल प्रस्तावना का ही पता नहीं है। उनसे हम बेहतर भारत की क्या उम्मीद करें? आज संसद में गोडसे के चेलों की संख्या बढ़ गई है। लेकिन आवाज दो साथ आने की, प्रतिज्ञा करो उनकी मंशा नाकामयाब बनाने की। वादा करो हम ऐसा नहीं होने देंगे। हम आवाज़ बुलंद करेंगे और रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान की दोस्ती वाले देश को कायम रखने के लिए पुरज़ोर संघर्ष करेंगे। यह साबित करेंगे कि CAB एक्ट 1955 में बदलाव ऐतिहासिक भूल है।

सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर नागरिकता कानून का लोगों ने विरोध किया। यह विरोध यहीं तक सीमित नहीं है। इनके अलावा भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) ने नागरिकता संशोधन विधेयक पर एक संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष अपनी आशंका व्यक्त की थी। इस विधेयक को लागू करने को लेकर रॉ ने सुरक्षा के संबंध में चिंता ज़ाहिर की थी।

एनआरसी के लिए दस्तावेज़ जमा करते लोग

इसी वर्ष जनवरी में लोकसभा और राज्यसभा की संयुक्त संसदीय समिति द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट के अनुसार रॉ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने संयुक्त संसदीय समिति के सामने अपनी चिंता व्यक्त की थी। उनहोंने कहा,

नागरिकता संशोधन विधेयक यानी कि सीएबी का विदेशी दुश्मनों के द्वारा दुरुपयोग किया जा सकता है। जो भारतीय हितों के लिए ठीक नहीं है।

रॉ के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, सीएबी एक ऐसा कानूनी ढांचा है जिसका उपयोग भारत में घुसपैठ करने के लिए दुश्मन कर सकते हैं। हमें समझना होगा कि जो एजेंसियां हमारे लिए विरोधी हैं, वे ऐसे कानूनी ढांचों द्वारा हमारी स्थिति का शोषण कर सकती हैं। वे अपने ही लोगों के ज़रिये हमारे देश में घुसपैठ करा सकते हैं जो कि हमारे लिए चिंता का विषय है।

CAB को लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन जारी

असम में नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते लोग। फोटो साभार- सोशल मीडिया

रॉ की बातों को नज़रअंदाज़ करते हुए विवादास्पद नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 को लोकसभा और राज्यसभा से पारित कर दिया गया, जिसके बाद राष्ट्रपति के अनुमोदन के साथ यह कानून बनकर तैयार है। अब इसे लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों में विरोध प्रदर्शन जारी है।

इस कानूम में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है। नागरिकता कानून में उन मुसलमानों को नागरिकता देने के दायरे से बाहर रखा गया है जो भारत में शरण लेना चाहते हैं।

विधेयक में भेदभाव होने के कारण इसकी आलोचना की जा रही है और इसे भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बदलने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि अभी तक हमारे संविधान में किसी को धर्म के आधार पर भारतीय नागरिकता देने से मना नहीं किया गया था।

काँग्रेस ने विभाजन स्वीकार किया था ना कि दो राष्ट्र का सिद्धांत

अमित शाह। फोटो साभार- Getty Images

जबकि अमित शाह ने संसद में कहा कि देश की आज़ादी के बाद अगर काँग्रेस ने धर्म के आधार पर देश का विभाजन ना किया होता तो आज नागरिकता संशोधन बिल लाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। अमित शाह का यह कथन बिल्कुल गलत है, क्योंकि हिंदू और मुस्लिम समुदाय के आधार पर देश को बांटने का “दो राष्ट्र सिद्धांत” मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा रखा गया था। हालाकी काँग्रेस ने विभाजन तो स्वीकार किया था लेकिन दो राष्ट्र का सिद्धांत नहीं।

चलिए अगर मान लेते हैं कि काँग्रेस ने धर्म के आधार पर विभाजन किया, तो सवाल यह है कि उस वक्त श्यामा प्रसाद मुखर्जी क्या कर रहे थे? संघ या हिन्दू महासभा ने विरोध क्यों नही किया? अमित शाह ने कह दिया और सभी मान लें? क्यों?

इसलिए कि अमित शाह संसद में झूठ बड़े गर्व के साथ बोलते हैं। जबकि 1937 में आरएसएस और हिन्दू महासभा जो आज की बीजेपी है, दोनों ने हिन्दू राष्ट्र की मांग की थी। जबकि मुस्लिम लीग की स्थापना 1940 में हुई और इसके बाद जिन्ना ने पाकिस्तान की मांग की। अब यह सच या तो अमित शाह जानते नहीं या जानबूझ कर अनजान हैं।

भारत का विभाजन एक काला अध्याय

नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन। फोटो साभार- सोशल मीडिया

भारत का विभाजन करने में कट्टर हिंदू संगठनों का उतना ही योगदान था जितना मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना का। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रख्यात समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया अपनी किताब ‘द गिल्टी मैन ऑफ इंडियाज़ पार्टीशन’ में विस्तार से लिखते हैं,

कट्टर हिंदूवाद द्वारा विभाजन का विरोध करने का कोई मतलब नहीं है। देश को विभाजित करने वाली शक्तियों में से एक यह हिंदू कट्टरता थी, जो उसके अपराध के बाद की गई हत्या की तरह थी। इसके बारे में कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि अखंड भारत को लेकर चिल्लाने वाले मौजूदा जनसंघ और इनके पूर्वजों ने ब्रिटेन और मुस्लिम लीग की देश के विभाजन में मदद की है।

सरकार ने जिस मंशा से NRC लागू किया वह पूरी नहीं हुई

जब NRC अभियान असम में शुरू किया गया, तब लगभग 19 लाख से भी ज़्यादा लोग इससे बाहर हो गए थे। NRC के इस अभियान को चलाने में सरकार ने 1600 करोड़ रुपये खर्च हुए थे लेकिन इन 19 लाख लोगों में ज़्यादातर हिन्दू निकले।

तब सरकार को लगा कि यह काम उसकी मंशा के अनुरूप नहीं हुआ। परिणाम दुष्परिणाम में बदल गया तब सरकार CAB को लेकर आ गई। मुस्लिमों को इस बिल से नागरिकता ना देने की बात कही, जिससे उसकी मंशा और रव्वैये पर सवाल उठना लाज़मी है।

एनआरसी के लिए दस्तावेज़ जमा करते लोग

अब सवाल यह उठता है कि NRC अभियान शुरू करने से पहले क्या सरकार यह मानकर चल रही थी कि NRC के दायरे में केवल मुस्लिम ही आएंगे? क्या उन्हें यह लगा कि NRC के ज़रिये मुसलमानों को बाहर भेजने के नाम पर राजनीति करेंगे? या फिर उन्हें डिटेंशन सेंटर में डाला जाएगा। यानी हिन्दू मुस्लिम एजेंडा बनाकर एक राजनितिक मुद्दा तैयार हो लेकिन ऐसा हुआ नहीं। 

3.9 करोड़ की आबादी वाला असम दिन महीने साल परेशान रहा। देखते-देखते कई लोगों ने आत्महत्या भी कर ली मगर सरकार पर कोई फर्क नही पड़ा, क्योंकि सरकार को सावरकर और गोडसे के कट्टरपंथी हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करनी है और हिन्दू-मुस्लिम एजेंडा बनाकर राजनीति करनी है।

खुद को भारतीय कहने वाले जो 19 लाख से ज़्यादा लोग NRC से बाहर हुए थे, अब यही लोग CAB पारित होने के बाद खुद को बांग्लादेशी, पाकिस्तानी, अफगानिस्तानी आदि बताएंगे। या फिर खुद को प्रताड़ित बताकर भारतीय नागरिक बन जाएंगे। सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर वह इस दौरान कमाकर कोई संपत्ति अर्जित किए होंगे तब उसका क्या होगा? क्योंकि सरकार तो उन्हें विस्थापित  मानेगी?

NRC बीजेपी सरकार का ब्लंडर नहीं तो क्या है?

नरेन्द्र मोदी। फोटो साभार- Getty Images

जब NRC की प्रक्रिया शुरू हुई तो जो लाखों लोग इससे बाहर हो गए, उनमें अधिक्तर गैर मुस्लिम थे। अब बीजेपी के लिए NRC वाला एजेंडा घातक बनता जा रहा था। इसलिए NRC को ब्लंडर बनता देख CAB पारित कर इसे अपने फेवर में लाने की कोशिश कर रही है भाजपा।

ऐसा नहीं है कि NRC बीजेपी का पहला ब्लंडर है। इससे पहले हुए ब्लंडर को याद कीजिए। कालाधन के नाम पर नोटबंदी का ब्लंडर, जो देश को आर्थिक आपातकाल में धकेल देता है। नोटबंदी के समय कहा गया कि कालेधन वाले परेशान होंगे लेकिन असल में कौन परेशान हुआ सब जानते हैं।

लाइन में खड़े होकर कौन मरा? लाठियां किसने खाईं? लोगों को इस बात पर खुश किया जाता रहा कि अमीरों का कालाधन खत्म हो जाएगा लेकिन हुआ क्या कुछ ऐसा?

दूसरा ब्लंडर टैक्स चोरों के नाम GST का लागू होना। जो देश के लघु उद्योग को रसातल पर पहुंचा देता है। GST आया तो बताया गया कि टैक्स की चोरी नहीं होगी। टैक्स चोर अब बचेंगे नहीं लेकिन हुआ क्या? छोटे व्यापारी GST की भेंट चढ़ गए। किसी टैक्स चोर का तो पता नहीं चला लेकिन छोटे व्यापार और रोज़गार खत्म हो गए।

तीसरा ब्लंडर आतंकवाद और कश्मीरी पंडितों के नाम पर अनुच्छेद 370 हटा दिया जाना। वहां के लोगों को उनके घरों में कैद करके उनकी पढ़ाई-लिखाई, रोज़गार, व्यापार और उनका अपना अधिकार तक छीन लिया गया। अनुच्छेद 370 का असर वहां के लोगों को आर्थिक रूप से और बच्चों के आने वाले भविष्य में शिक्षा ना ले पाने के रूप में देखा जाएगा।

ब्लंडर की इसी कड़ी में NRC का भी नाम जुड़ गया है। घुसपैठियों को रोकने के नाम पर शुरू हुई यह प्रक्रिया देश के संविधान के मूल को बदलने की एक कोशिश है। हमारे संविधान में जब धर्म, जाति, रंग इत्यादि के नाम पर कोई भेदभाव नहीं है, तो धर्म के नाम पर नागरिकता कैसे?

आज भी हमारे यहां कुछ लोग बंजारे, नट और नोना के तौर पर परिभाषित किए जाते हैं, जिन्हें हम पीढ़ियों से देखते या सुनते आ रहे हैं। ये लोग यहीं के रहने वाले हैं लेकिन आज भी उनके पास कोई प्रमाण पत्र नहीं है तो क्या वे घुसपैठी हैं?

पहले तो बीजेपी वाले अपने मंच से नेहरू पर इल्ज़ाम लगाते हुए झूठ बोलते थे। अब तो संसद में बैठकर झूठ बोल रहे हैं और तो और लाल किले की प्राचीर से भी झूठ बोला जा रहा है। झूठा इतिहास बताकर वर्तमान स्थिति पर भी झूठ बोला जा रहा है, क्योंकि अनुच्छेद 370 हटाते समय अमित शाह ने कहा था,

फारूक अब्दुल्ला डिटेंड नहीं हैं। वह बाहर नहीं आना चाहते हैं तो क्या मैं उनकी कनपट्टी पर बंदूक लगाकर उन्हें बाहर ले आऊं?

लेकिन सच्चाई अब आपके सामने है। आज कल संसद में फैक्ट आधे बताए जा रहे हैं और वे भी जो इनके हिसाब से हैं। अमित शाह बोलते हैं कि पाकिस्तान ठीक रहता तो हमें यह नहीं करना पड़ता। अगर पाकिस्तान, बांग्लादेश में बंटवारे की वजह से समस्या है तो अफगानिस्तान में कब बंटवारा हुआ था, जो आप उसका नाम ले रहे हैं।

आप कहते हैं वहां गैर-मुस्लिमों पर अत्याचार होते हैं। इसलिए हम उन्हें नागरिक बना रहे हैं। तो गृहमंत्री जी ज़रा यह बताओ आपके इस कदम से वहां अत्याचार और बढ़ेगा या घटेगा?

अब बांग्लादेश से संबंध बिगड़ता है तो ज़िम्मेदार कौन?

अमित शाह ने कहा कि बांग्लादेश में हिंदुओं का उत्पीड़न हो रहा है लेकिन इस बात को वहां के विदेश मंत्री ने खारिज करते हुए कहा,

अमित शाह खुद आकर यहां कुछ दिन रहें और देखें कि बांग्लादेश में हिंदुओं का उत्पीड़न कैसे हो रहा है। नाराज़ होकर वहां के गृहमंत्री ने भारत का दौरा समाप्त कर दिया।

मूलवासियों पर हो रहे अत्याचार की फिक्र आपको क्यों नहीं शाह जी?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

भारत में ही हर दिन महिलाएं, दलित, पिछड़े आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदाय के गरीब लोग रोज़ प्रताड़ित किए जा रहे हैं। यहां तो हिन्दू बहुसंख्यक हैं उसके बावजूद भी हिन्दुओं पर अत्याचार हो रहा है। शाह जी यह आपकी सरकार में भी हो रहा है, जिसकी आपको चिंता नहीं है।

एक बेटी और उसका परिवार ट्रक से कुचल दिया जाता है, वह भी उनके विधायक के द्वारा। एक बेटी का रेप होता है उसके बाद दिनदहाड़े जला दिया जाता है। अमित शाह को इसकी चिंता क्यों नहीं होती है?

क्या ये लोग प्रताड़ित नहीं हो रहे? या फिर ये लोग हिन्दू नहीं हैं? या भारत में प्रताड़ना ठीक है? सच तो यह है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में प्रताड़ना हो रही है जैसी बातें बनाकर यहां के एक विशेष वर्ग को प्रताड़ित करने की चाह यह सब करवा रही है।

बांग्लादेश के 1.7 करोड़ हिन्दू को क्या आप जगह दे पाएंगे?

देश में आर्थिक मंदी, बेरोज़गारी और बदहाली चरम पर है। इससे निपटने हेतु जनता को सरकार द्वारा मदद मिलनी चाहिए थी लेकिन सरकार ने लोगों के लिए फरमान जारी कर दिया कि पहले अपनी नागरिकता सिद्ध करो फिर कुछ और। यह करते-करते सभी सरकारी संस्थाओं को बेचकर देश को कंगाल बना दिया जाएगा। जबकि उनके दोस्त जो चार्टर्ड प्लेन से घुमते हैं, वे मालामाल हो जाएंगे।

आज़ादी के आंदोलन में गद्दारी कौन कर रहे थे? वही जो अंग्रेज़ों के लिए सेना भर्ती का कैंप लगा रहे थे। जो जिन्ना के साथ बंगाल में सरकार चला रहे थे। भारत छोड़ो आंदोलन को अंग्रेज़ों से कुचलने के लिए सिफारिश भरी चिट्ठी लिख रहे थे।

आज वे नागरिकता के बहाने गाँधी, अंबेडकर और भगत सिंह के आंदोलनों से प्राप्त सपनों के भारत की जगह जिन्ना और सावरकर के अरमानों वाला देश बनाने पर तुले हैं।

सच तो यह है कि आज संसद में उनकी संख्या ज़्यादा हो गई है, जिन्हें संविधान की मूल प्रस्तावना का ही पता नहीं है। उनसे हम बेहतर भारत की क्या उम्मीद करें? आज संसद में गोडसे के चेलों की संख्या बढ़ गई है।

लेकिन आवाज दो साथ आने की, प्रतिज्ञा करो उनकी मंशा नाकामयाब बनाने की। वादा करो हम ऐसा नहीं होने देंगे। हम आवाज़ बुलंद करेंगे और रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान की दोस्ती वाले देश को कायम रखने के लिए पुरज़ोर संघर्ष करेंगे। यह साबित करेंगे कि CAB एक्ट 1955 में बदलाव ऐतिहासिक भूल है।

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