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विश्वगुरु होने का दावा करने वाले भारत में स्टूडेंट्स और टीचर्स पर लाठियां क्यों बरसती है?

दिल्ली विश्वविद्यालय का शिक्षक संगठन DUTA पिछले 4 दिसम्बर से लगभग 4500 एडहॉक शिक्षकों के “समायोजन” के तहत स्थायी नियुक्ति की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर है। यह आंदोलन अपने चरम पर है और एडहॉक शिक्षकों का आक्रोश थमने का नाम नहीं ले रहा है।

DUTA मुख्य पांच मांगों के साथ इस आंदोलन में उतरा था, जिसमें से चार मांगों को शिक्षा मंत्रालय ने संज्ञान में लिया। उनके द्वारा एक सर्कुलर भी जारी किया गया है। यह DUTA जैसे किसी भी ट्रेड यूनियन के लिए काफी बड़ी जीत है लेकिन समायोजन के मुद्दे पर मंत्रालय की तरफ से कोई संज्ञान अभी तक नहीं लिया गया है।

प्रोटेस्ट करते दिल्ली विश्वविद्यालय के एडहॉक प्रॉफेसर्स, फोटो साभार- ट्विटर

एडहॉक शिक्षक इस मांग पर अड़े हुए हैं और आंदोलन दिन-प्रतिदिन तेज़ होता जा रहा है। इसी बीच कल यानी कि 10 दिसम्बर को पुलिस ने वॉटर कैनन चलाकर प्रदर्शन को तितर-बितर करने का एक असफल प्रयास किया लेकिन पुलिस के इस कुकृत्य ने इस आंदोलन को मज़बूती ही प्रदान की है।

बहरहाल,ऐसे में किसी भी आंदोलन की समालोचनात्मक व्याख्या आवश्यक है। तो कुछ महत्वपूर्ण सवाल पर रोशनी डालने की ज़रूरत है।

एडहॉक शिक्षक कौन होते हैं?

दिल्ली विश्वविद्यालय ने ऑर्डिनेंस 12 के तहत किसी स्थायी शिक्षक की छुट्टी अथवा सेवानिवृति एवम नए वर्कलोड के संदर्भ में महज़ 4 महीने के लिए एडहॉक शिक्षक की नियुक्ति का प्रावधान बनाया था। इसके साथ यह भी प्रावधान बना कि महज़ 6 महीने के भीतर इन पदों पर स्थायी नियुक्ति कर दी जाएगी।

यह एडहॉक नियुक्ति असल में एक अरेंजमेंट था, ताकि विश्वविद्यालय को स्थायी नियुक्ति में जो 6 महीने का वक्त लगेगा उसमें पठन-पाठन की प्रक्रिया सुचारू रूप से चल सके लेकिन स्थायी नियुक्ति सालों दर साल किसी ना किसी वजह से रोकी गई और एक दशक में ही एडहॉक शिक्षकों की संख्या 500 से 5000 के पास पहुंच गई

स्थायी नियुक्ति को बंद करना, निजीकरण की तरफ एक मुक्कमल कदम बढ़ाने की तैयारी है, जो अब नई शिक्षा नीति 2019 के आने बाद होना तय ही है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के एडहॉक प्रॉफेसर्स द्वारा प्रोटेस्ट, फोटो साभार- ट्विटर

समायोजन (ABSORPTION) क्या है?

शिक्षक बनने की चाहत रखने वालों ने एडहॉक अरेंजमेंट को इसलिए स्वीकारा था, क्योंकि प्रावधान महज़ 6 महीने में स्थायी नियुक्ति की प्रक्रिया को पूरा करना था लेकिन ऐसा विश्वविद्यालय प्रशासन एवम सरकारों की शिक्षा के निजीकरण की मंशा के तहत नहीं हुआ ।

अब एडहॉक शिक्षक की यह मांग जायज़ और न्यायिक भी है कि उन्हें स्थायी नियुक्ति मिले। इसके लिए एडहॉक शिक्षक, समायोजन चाहते हैं मतलब सरकार की तरफ से एक रेगुलशन अथवा ऑर्डिनेंस बनाकर सभी शिक्षकों को बिना परंपरागत इंटरव्यू प्रक्रिया में गए, स्थायी कर दिया जाए।

एडहॉक शिक्षक “समायोजन” क्यों चाहते हैं?

इसमें दो बातें हैं।

ऐसा नहीं है कि एडहॉक शिक्षक इंटरव्यू देने से डरते हैं बल्कि एडहॉक शिक्षक तो हर 4 महीने में ही इंटरव्यू देते हैं। इस बात को जानना ज़रूरी है कि एडहॉक शिक्षकों ने विश्वविद्यालय प्रशासन को कई मौके दिए कि विश्वविद्यालय परंपरागत तरीके से सलेक्शन कमिटी के द्वारा इंटरव्यू कराकर उन्हें या तो स्थायी कर दे  या फिर निकाल दे।

दिल्ली विश्वविद्यालय के एडहॉक प्रॉफेसर्स द्वारा प्रोटेस्ट, फोटो साभार- ट्विटर

शिक्षकों ने 2015, 2017, 2019 में  हज़ारों रुपए के फॉर्म भरे थे लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय में स्थायी नियुक्ति का मतलब सिर्फ विज्ञापन देना हो गया है। स्थायी नियुक्ति के लिए विज्ञापन तो आया लेकिन नियुक्ति नहीं हुई।

अब इसमें शिक्षकों की क्या गलती है? अब सालों गुज़रने के बाद, जब शिक्षकों की दूसरी सारी संभावनाएं खत्म हो चुकी है तो उनका समायोजन एक न्यायसम्मत मांग बन चुका है।

समायोजन की मांग जायज है?

असल में समायोजन की मांग, इस व्यवस्था की नाकामी का नतीजा है। अगर एडहॉक अरेंजमेंट के प्रावधान के तहत चला जाता तो हर छह महीने पर स्थायी नियुक्ति होती। फिर शायद यह मांग किसी के जे़हन में भी नहीं होती। इसको “सिस्टमिक इंजस्टिस” कहा जा सकता है।

समायोजन की मांग विश्वविद्यालय की सलेक्शन कमिटी के रवैये के कारण भी हो रहा है। विश्वविद्यालय में यह माना जाता है कि एक्सपर्ट अपने-अपने कैंडिडेट को लगाने के लिए ही इंटरव्यू लेने आते हैं। इंटरव्यू प्रक्रिया में किसी भी तरह की Randomness से नहीं बची हुई है।

ऐसा लगता है कि सब कुछ प्रायोजित है मसलन जिसका चयन होता है वह भी खुश नहीं होता और जिसका नहीं होता वह दुखी भी नहीं होता। चयन समिति बस प्रक्रिया है बाकी उसमें कुछ भी बेहतरीन नहीं है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के एडहॉक प्रॉफेसर्स द्वारा प्रोटेस्ट, फोटो साभार- ट्विटर

बहरहाल, यह आंदोलन चयनकर्ताओं एवम चयन समिति का रिजेक्शन भी है। आजतक चयन समिति रिजेक्ट करती थी लेकिन आज उन्हें ही रिजेक्ट किया जा रहा है। ये तो होना ही था। जब चयन समिति चयन के आधार बदल देगी तो ऐसा ही होगा।

दिल्ली विश्वविद्यालय के एडहॉक शिक्षकों ने, समायोजन की मांग करके चयन समिति एवम चयनकर्ताओं के ऊपर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। अब समायोजन की मांग असल में इस चरमराती हुई व्यवस्था को ठीक करने के लिए भी है।

विश्वविद्यालय की व्यवस्था को साफ-सुथरा होना पड़ेगा। उन्हें यह समझना पड़ेगा कि विश्वविद्यालय सिर्फ दूसरों को मानवीयता, न्यायसम्मत होने की दुहाई नहीं दे सकता बल्कि विश्वविद्यालय को तमाम आदर्शों के प्रैक्टिस की भी जगह बनानी पड़ेगी। रही बात आंदोलन के नतीजे की, तो इस बात को समझना आवश्यक है कि आंदोलन सिर्फ नतीजे के लिए नहीं बल्कि व्यवस्था को आइना दिखाने के लिए भी होता है।

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