Site icon Youth Ki Awaaz

“बोलना ज़रूरी हो जाता है”

सत्ता के नशे में चूर होकर

जब देश के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री

जला रहे हों संविधान की प्रतियां

और उनकी अठ्ठाहस वाली हंसी के पीछे

गायब हो जाती है देश की मूल समस्याएं

तब हमारा बोलना ज़रूरी हो जाता है।

 

संविधान के प्रस्तावना को नज़रअंदाज़ करके

जब बदल दिया जाता है, देश का कानून

और थोप दिया जाता है देश पर मिलिट्री शाषन।

जब लोग अपने अधिकारों के लिए उतर आते हैं सड़कों पर

और देश का ‘धर्मनिरपेक्ष’ होना खतरे में पड़ जाता है,

तब हमारा बोलना ज़रूरी हो जाता है।

 

लोकतंत्र का चौथा खम्भा जब डगमगाने लगे

और खुद ही अपना कर्तव्य भूल जाए।

सत्ता के हाथों का कठपुतली बनकर

जब नाचने लगे सत्ताधीशों के इशारों पर

तब हमारा बोलना ज़रूरी हो जाता है।

 

देश की आधी आबादी

जब अभिशप्त हो अंधेरे में जीने के लिए

और रोज़ आती हो उनके साथ होने वाली

सामूहिक बलात्कार और जलाकर मारने वाली खबरें।

जब देश की सरकार मौन रहती है

तब हमारा बोलना ज़रूरी हो जाता है।

 

जब देश का राजमुकुट

सियासी लाभ के लिए

टुकड़े-टुकड़े कर दिया जाता है

और छीन लिया जाता है

80 लाख लोगों का मौलिक अधिकार,

बच्चों को स्कूल जाने से रोक दिया जाता है

और नौजवानों को डाल दिया जाता है कारागार में

तब हमारा बोलना ज़रूरी हो जाता है।

 

देश के नागरिकों को बांट दिया जाता है

नागरिकता के के सवाल पर और

लोगों में घोल दिया जाता है धर्म का ज़हर

और जल उठता है देश का उत्तरी पूर्वी भाग

फिर भी सत्ताधीशों के कानों पर

जूं तक नहीं रेंगती

तब हमारी बोलना ज़रूरी हो जाता है।

 

जब देश के प्रधानमंत्री आह्वान करते हों

भारत को विश्वगुरू बनाने के लिए

और साज़िश करते हों विश्वविद्यालयों को बन्द कराने की

छात्रों के ऊपर बरसाई जाती हो अनगिनत लाठियां

और ठोक दिया जाता है छात्रों के ऊपर राजद्रोह का मुकदमा

बंद करा दिया जाता है विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों का मुंह

तब हमारा बोलना ज़रूरी हो जाता है।

 

जब देश की अर्थव्यवस्था गिर रही हो औंधे मुंह

डर रहे हों देश के व्यापारी अपनी आवाज उठाने से

किसानों को नहीं मिल रही हो फसल की उचित कीमत

और मजबूर होते हों आत्मदाह करने के लिए

आम जनता त्रस्त हो अनगिनत समस्याओं से

और भूल चुकी हो अपनी आवाज़

तब हमारा बोलना ज़रूरी हो जाता है।

Exit mobile version