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नाबालिग विवाहित गर्भवती लड़कियों के लिए कहां है बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ?

लड़की। फोटो साभार- Flickr

लड़की। फोटो साभार- Flickr

इतिहास गवाह है कि बाल विवाह को रोकने के लिए राजाराम मोहन रॉय ने ब्रिटिश सरकार द्वारा स्पेशल मैरिज एक्ट पास कराया, जिसमें शादी के लिए लड़कियों कि उम्र 14 वर्ष व लड़कों की उम्र 18 निर्धारित की गयी थी। लेकिन इसे प्रतिबंधित कर दिया गया।

इस प्रक्रिया के पश्चात भी जब इसमें कोई सुधार नज़र नहीं आया तो फिर से एक बिल पास किया गया, जिसे बाल विवाह निषेध अधिनियम नाम दिया गया।

इस बिल में लड़कों की उम्र बढ़ाकर 21 वर्ष व लड़कियों की 18 कर दी गयी। इसके बाद इस बिल को कठोरता से पूरे भारत में लागू करने का प्रयास किया गया। इसके अलावा सरकार ने बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 में पारित किया गया, जो अभी भी अस्तित्व में है। इस कानून के अंतर्गत कोई भी बच्चा अपनी इच्छा से व्यस्क होने के दो साल के अंतर्गत अपनी बालावस्था के दौरान कराये गए विवाह को अवैध घोषित कर सकता है।

वर्तमान परिप्रेक्ष

वर्तमान स्थिति यह है कि बाल विवाह के मामलों में विश्व में भारत का दूसरा स्थान है, जिसके अंतर्गत 49% लड़कियों का विवाह 18 वर्ष की आयु के पूर्व ही कर दिया जाता है। संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय बाल आपात निधि की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में सबसे अधिक 68% बाल विवाह की घटनाये देखने को मिलती हैं।

पांच वर्षों की रिपोर्ट पर अगर नज़र डाली जाए तो बाल विवाह के तकरीबन 1500 मामले सामने आये हैं, जिसमें सबसे अधिक विवाह 2017 में 395 व 326 विवाह वर्ष 2016 में देखने को मिले हैं, वहीं 2015 में 293 विवाह,  2014 में 280 और 2013 में 222 बल विवाह की घटनाएं देखने को मिली।

कम उम्र में महिलाएं हो रही हैं गर्भवती

बाल विवाह का दुष्प्रभाव कम उम्र में गर्भधारण के रूप में देखा जाता है। जिसमें 15 वर्ष से 19 की उम्र में शादी होने वाली हर तीन लड़कियों में से एक लड़की गर्भवती हो रही हैं। जहांं तक हमारे कानून की बात करें तो किसी भी नाबालिग लड़की के साथ संभोग (चाहे उसमें लड़की की ही मर्ज़ी क्यों ना हो) बलात्कार माना जाएगा।

इस उम्र की लड़कियों में से एक चौथाई 17 साल की उम्र तक माँ बन जाती है और 31% लड़कियां 18 साल की उम्र तक। वहीं कम उम्र में प्रेग्नेंसी में गोवा पहले नंबर पर है और मिज़ोरम और मेघालय दूसरे और तीसरे नंबर पर है।

आज बाल विवाह अकेले एक मुद्दा नहीं है, अगर आप ध्यान से देखें तो एक लड़की की ज़िंदगी के साथ तो खिलवाड़ होता ही है लेकिन उसके साथ-साथ उसके कम आयु में हुए बच्चे भी कुपोषित और बीमार पैदा होते हैं। जिन लड़कियों को स्कूल में जाना चाहिए वे आज बाल विवाह और कम उम्गर में र्भधारण जैसी समस्या को सह रही हैं। ऐसे में बेटी पढ़ाओ जैसे नारे कहां तक जायज़ हैं?

पिछले कुछ सालों के आकड़ों पर यदि नज़र डाली जाये तो 10 सालों में बाल विवाह के आकड़ों में काफी सुधार देखा गया है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में बाल विवाह की दर केवल 6 .4 % ही रह गया है और शहरी शहरी क्षेत्रो में होने वाले बाल विवाह में हरियाणा अव्वल नम्बर पर है।
समय रहते यदि लोगो को शिक्षित और जागरूक किया जाये तो ये आंकड़ा और कम हो सकता है ।

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