हर गुज़रते दिन के साथ मैं इस सरकार के प्यार में पागल सा हुआ जा रहा हूं। क्या सरकार है, क्या नेतृत्व है, मतलब ये लोग देश को ‘विश्वगुरु’ नहीं ‘विषगुरु’ बनाकर ही छोड़ेंगे।
आज पूरी दुनिया हमारा लोहा मान रही है, वही ‘जंग लगा लोहा’ जो कबाड़खाने की पूंजी है। हमारे नेता दिन रात इस देश को बनाने में जुटे हुए हैं। कभी छुट्टी नहीं लेते, क्या पता कोई देशद्रोही आकर ‘अर्धनिर्मित बुलंद भारत’ को ढहा ना जाए। चुनाव के वक्त ‘चुनावी चौकीदारों’ ने रखवाली की थी लेकिन वे सभी ‘अवैतनिक अज्ञात लिव’ पर हैं।
असल में देश के लिए कुछ कर गुज़रने की भूख तब से कुछ ज़्यादा ही बढ़ गई थी, जब से सत्ता की मलाई आज के विपक्षियों को खाते देखा था। मोटे-मोटे तौर पर यह भूख 72 वर्ष पुरानी मानी जाती है, इसलिए पिछले वर्षों की सभी गलतियों को सुधारने के ठेके के साथ यह सरकार मिशन पर है।
72 वर्ष से पूर्व देश में सबकुछ सही था, कोई समस्या, परेशानी नहीं थी। अंग्रेज़ों ने तो भारत को लगभग विश्वगुरु बनाकर ही सौंपा था। एक विलुप्त ऐतिहासिक तथ्य यह भी है कि अंग्रेज़ों ने भारत को कभी गुलाम बनाया ही नहीं था, कायदे से ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ ने भारत को ‘विश्वगुरु’ बनाने का ठेका लिया था।
इसमें समाज के एक बड़े वर्ग ने चौकीदारी भी निभाई थी। ऐसे-ऐसे ना जाने कितने ऐतिहासिक तथ्य आज हमारे मोबाइलों पर बजबजा रहे हैं। जो भी हो एक बार भारत के पुनः विश्वगुरु बनने की अपार संभावनाएं बलवती हो रही हैं, क्योंकि फिर किसी ने यह ठेका ले लिया है।
हमारी सरकार पिछले 72 वर्षों की कई बड़ी गलतियों को सुधारने के लिए दिन-रात नींदे हराम किए हुई हैं। कालेधन से आज़ादी के लिए नोटबंदी, आर्थिक आज़ादी के लिए GST , कश्मीर की आज़ादी के लिए 370 हटाना, कई शहरों को नाम से आज़ादी।
GST लागू करने के लिए बनाए गए फिल्म सेट देखकर तो लोगों को रोना आ गया। इसी प्रकार पिछले 72 वर्षों की एक और बड़ी गलती ‘संविधान’ को फिलहाल सही करने के लिए जी-तोड़ परिश्रम हो रहा है।
इसके लिए कई प्लान ‘वैचारिक गर्भगृह’ में थे, कुछेक धीरे-धीरे अवतरित भी हो रहे हैं। ऐसा ही एक नवजात अवतरण है CAA। इसमें जो अंतिम ‘A’ है, वह पहले ‘बी’ था, ‘कैब’। बाद में सरकार ने आंदोलनकारियों को खुश करने के लिए एक कदम पीछे ले लिया, फिर ‘B’ से ‘A’ हो गया।
आंदोलनकारियों से याद आया, ये मतलब सच में पागल लोग हैं। इन्हें यह बेसिक नॉलेज नहीं है कि एक इंसान के अंदर अपनी सभ्यता, संस्कृति एवं राष्ट्रवादी सरकार को समझने के लिए अशिक्षा बेहद ज़रूरी है।
एक अंदरूनी खबर तो यह भी है कि सरकार ने जान-बूझकर ठंढ के मौसम में ही इस कानून को लागू किया वजह उन्हें पूर्ण विश्वास था कि इन ‘शो कॉल्ड बुद्धिजीवियों’ की सरकार के प्रति जलन बढ़ेगी, जलन बढ़ने से आगजनी की घटनाएं होंगी, धीरे-धीरे पूरे देश में विद्रोह की ज्वाला भड़क उठेगी और इस ज्वाला की आंच में भीषण सर्दी निष्प्रभावी हो जाएगी।
इस पूरे फैसले से सबसे ज़्यादा खुश स्टूडेंट्स नज़र आ रहे हैं। कई जगह खुशी का प्रदर्शन इतना विस्फोटक था कि कई पब्लिक प्रॉपर्टी इसकी जद में आ गए हैं। दिल्ली में ऐसे ही खुशी से बलबला रहे स्टूडेंट्स का झुंड सरकार को गले लगाने जा रहा था, वे सरकार के गले तक पहुंचते उसके पहले ही पुलिस ने उन्हें गले लगा लिया।
सरकार के निर्देश पर छात्र-छात्राओं को पकड़-पकड़कर, उनकी लाइब्रेरी, उनके हॉस्टल में घुस-घुसकर जादू की झप्पी दी गई, उनके ऊपर प्यार के पुष्प बरसाए गए।
कुछेक को बकायदा थाने से प्रेम-पत्र भी जारी किये गए, तो कुछेक को ‘लव बाइटस’ भी दिए। कुछ पढ़ाकू और गंभीर टाइप स्टूडेंट्स भी हैं, जिन्हें थप्पड़ से नहीं प्यार से डर लगता है, वे इस प्रकार के कार्यक्रमों से दूर रह रहे हैं।
असम के लोग तो कुछ ज़्यादा ही खुशी में पागल हुए जा रहे हैं, बांग्लादेश को लेकर ‘वेलकम स्टेट’ का दर्जा अब स्वीकृत हो गया है। असम से आ रही जश्न की तस्वीरों को देखकर भारत-पाक बंटवारे के दिन याद आ गएं। पश्चिम बंगाल वालों का चुनाव है इसलिए उनकी खुशी तो जायज भी है।
कुल-मिलाकर ‘सर्वे भवन्तु सुखिना’ की लहर के आगे इस बार शीत लहर भी फींकी पड़ गई है। देश अपने स्वर्ण काल में नित्य डूबकी लगा रहा है। सरकार देश को ‘प्राचीन भारत का गौरव’ दिलाकर रहेगी, यह प्रतिबद्धता स्पष्ट महसूस की जा सकती है।
मतलब हमें 21वीं सदी में रहते, 12वीं सदी के गौरव को जीने का अवसर प्राप्त होगा। इसके लिए कायदे से ’21’ संख्या को पलट दिया जायेगा। अज्ञान को विज्ञान माना जाएगा, शोषण को पोषण माना जायेगा। साथ ही हम आराम से ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाने वाला देश भी बनेंगे।
कई ऐसी चीज़ें जो इस देश की गरिमा में बट्टा लगा रही हैं, उन्हें एक-एक कर उखाड़ फेंकने की तैयारी है। राजघराने वाली अर्थव्यस्था में GDP का खूंटा किसने ठोका, विमर्श जारी है।
देश की इस शानदार तरक्की को देखकर, हमेशा बोलने वाला नेपथ्य भी गुमसुम सा है, मदहोश है, खामोश है क्योंकि उसे पता है यह शमां कुछ और है। ऐसे में मुझे ही कहना पड़ता है, वक्त कोई और होगा ‘कलम’ वाले ‘कलाम’ का, अब तो सिर्फ ‘कमल’ ही ‘कमाल’ करेगा। लेट्स बी द कीचड़।
नोट- यह एक व्यंग्य है।