विख्यात पर्यावरणविद और इनोवेटर सोनम वांगचुक ने हाल ही में एक वीडियो के ज़रिए इस दिशा में चिंता जताई है। वह अपने वीडियो में इस बारे में बात करते हुए कह रहे हैं,
अगर संरक्षण नहीं मिला तो यहां की ज़मीनें अब सुरक्षित नहीं रहेंगी और यहां का पर्यावरण सुरक्षित नहीं होगा। लद्दाख बहुत ही नाज़ुक इकोलॉजी है। अगर यहां पर बड़े उद्योग, हज़ारों की जनसंख्या में लोग आ जाएं तो लद्दाख की ज़मीन यह सह नहीं पाएगी। यहां के ग्लेशियर्स पिघलते जा रहे हैं।
वह आगे बताते हैं,
यहां के लोगों की सभ्यता है कि 5 से 10 लीटर पानी से प्रतिदिन प्रति व्यक्ति गुज़ारा कर लेते हैं। बाहर की दुनिया के लोग जो कि 100 लीटर दिन का पानी मांगते हैं, वे यहां अगर बड़ी संख्या में आने लगे तो ना ये लद्दाख यहां के मूलनिवासियों का रहेगा और ना ही किसी और का रहेगा। तो ऐसे में यहां का पर्यावरण और संस्कृति बहुत ही खतरे में होगी।
लद्दाख में पर्यटन की वजह से बढ़ गई है पानी की समस्या
लद्दाख की स्थानीय वेबसाइट Daily Excelsior में Ladakh: Living on brink of ecological disaster शीर्षक से एक आर्टिकल छपा था। 3 इडियट्स मूवी आने के बाद साल 2010 से लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में पर्यटन बहुत तेज़ गति से बढ़ा है, जिसके चलते ठंडे मरुस्थल (कोल्ड डेज़र्ट) लद्दाख और कारगिल में पानी की समस्या बहुत बढ़ गई है।
अगर आंकड़ों की बात करें तो लद्दाख में एक साल में सिर्फ 100 मिलीमीटर ही बारिश होती है और पर्यटक बड़ी मात्रा में पानी की बर्बादी करते हैं। पहाड़ी क्षेत्र दार्जलिंग में बढ़ते पर्यटन के बाद हालत यह हो गई है कि यहां पानी जलपाईगुड़ी से टैंकरों में मंगाया जा रहा है। मुझे इस बात का पता तब चला जब मैं सांदाखफू ट्रेक के लिए दार्जलिंग गया था। तो क्या हम लद्दाख में भी वही हालत करना चाहते हैं?
हवा में पीएम पार्टिकल्स बढ़ रहे हैं
बढ़ते टूरिज़्म के कारण पर्यावरण के प्रति संवेदनशील जगहों पर डीज़ल वाहनों की संख्या बढ़ रही है, जिसके चलते हवा में पीएम पार्टिकल्स बढ़ते जा रहे हैं, जो वहां के पहाड़ों के लिए बहुत खतरनाक हैं।
खारदुंगला पास इस बात का सबसे प्रभावी उदहारण है कि ग्लोबल वॉर्मिंग और डीज़ल वाहनों के कारण किस तरह से ग्लेशियर्स पिघल रहे हैं। लद्दाख में अब भी वाहनों से हो रहे प्रदूषण के लिए कोई नियम-कानून नहीं हैं। दिल्ली-एनसीआर समेत कई क्षेत्रों में यह नियम है कि अगर वाहन की उम्र 15 साल से अधिक हो जाती है, तो वे चल नहीं सकते हैं। हालांकि, लद्दाख में ऐसा कोई कानून नहीं है जबकि यहां इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।
बेशक लद्दाख की जीडीपी का 50% हिस्सा टूरिज़्म सेक्टर से आ रहा है लेकिन इसका यह मतलब यह नहीं है कि चंद लाभ के कारण उस पूरे क्षेत्र को बर्बाद होने के लिए छोड़ दिया जाए। गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज (सांबा) में असिस्टेंट प्रोफेसर सोनम ऑन्गमो के मुताबिक,
लद्दाखवासी अपनी पारंपरिक व्यवस्था को भूलते जा रहे हैं, जिसमें ऑर्गेनिक और समरसतापूर्ण (harmonious) जीवनशैली की बात थी।
लद्दाख में प्लास्टिक कचरे के कारण बढ़ती लैंडफिल साइट्स इस बात का प्रमाण हैं कि वहां प्रदूषण कितनी बड़ी मात्रा में फैल चुका है?
सरकार और स्थानीय प्रशासन को हर हालत में लद्दाख और कारगिल के वातावरण को बचाने के लिए काम करना चाहिए। जिस तरह से सिक्किम में नाथुला पास जाने के लिए एक दिन में वाहनों की सीमा तय है, क्या उसी तरह ये नियम पर्टयक वाहनों के लिए पैंगॉक लेक, सो मुरी-री लेक, नुब्रा वैली, श्योक वैली या खारदुंगला पास में लागू नहीं हो सकते हैं।
सरकार इन सब बातों पर जल्द-से-जल्द कार्रवाई करे, नहीं तो इस संबंध में बहुत देरी हो जाएगी और हम बाद में कुछ नहीं कर पाएंगे। ऊपर दिए गए तर्कों से यह स्पष्ट है कि वहां की इकोनॉमी और पर्यावरण को संरक्षित किए जाने की बहुत ज़रूरत है।