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“पीरियड्स के दौरान काम पर नहीं जाने के कारण मुझे नौकरी से निकाल दिया गया था”

अनुपमा सिंह

अनुपमा सिंह

दो साल पहले 2017 में मैं सोशल डेवलपमेंट सेक्टर के एक इंटरनैशनल ऑर्गनाइज़ेशन में प्रोजेक्ट बेस्ड मैन डेज पर काम कर रही थी। पीरियड्स के पहले दिन 4 घंटे ट्रैवल करके जब फिल्ड में ट्रेनिंग के लिए पहुंची, तब तीन घंटे की ट्रेनिंग के बाद मुझे कमज़ोरी महसूस होने लगी। पैर और कमर दर्द के कारण खड़ा होना मुश्किल हो रहा था।

ऐसे में मैं अपने साथ काम करने वाले सहयोगी सदस्यों को सूचित करके रेस्ट करने चली गई। उसी रात मुझे मेरे विभाग के वरीय अधिकारी का मेल आता है कि आप बिना बताए सेकेंड हाफ में फिल्ड में मौजूद नहीं रहीं जिस कारण आपको इसी वक्त इस प्रोजेक्ट से अनुशासनहीनता के लिए निकाला जा रहा है।

तब मैंने गुस्से में वहां जाना बंद कर दिया। हालांकि इस स्टोरी को शेयर करने से पहले उस संस्था के स्टेट हेड से बात कर जब मैंने अपना अनुभव बताया, तो उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि संस्था में जो पर्मानेंट इंप्लाई हैं, उन्हें भी माहवारी के दौरान कोई लीव नहीं मिलती है। उन्होंने कहा, “हालांकि हम महिलाओं को मैटरनिटी लीव देते हैं लेकिन माहवारी की छुट्टी के लिए वे कॉमन सिक लीव ही ले सकती हैं।

उन्होंने एक और बड़ी अजीब बात कही कि एक तरफ हम माहवारी को लेकर जागरूकता कार्यक्रम चलाते हैं और कहते हैं कि यह कोई बीमारी नहीं है। ऐसे में उन दिनों छुट्टी देना कितना सही है यह समझ से परे है।

दूसरी तरफ एक कॉरपोरेट स्कूल की प्रिंसिपल ने बताया कि उनके लिए माहवारी की छुट्टी देना तब विशेष मुश्किल हो जाता है जब एक ही माह में दो बार छुट्टी लेने आ जाती है क्योंकि पीरियड स्वस्थ महिलाओं को 28 दिनों पर आता है लेकिन कई बार शरीर से कमज़ोर होने पर यह एक माह में दो बार भी आता है ऐसे में छुट्टी का प्रावधान क्या होगा?

कुल मिलाकर कार्यालयों में काम कर रहे स्थाई कर्मचारियों को तो अन्य स्वास्थ्य संबंधित छुट्टियां भी मिलती हैं लेकिन घरेलू कामगार महिलाओं को इस तरह की छुट्टी देने की बात शायद ही इस समाज में होती होगी। इन चीज़ों से पता चलता है कि एक समाज के तौर पर हम महिलाओं से जुड़े मुद्दों के प्रति कितने असंवेदनशील हैं।

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