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ICSE काउंसिल को आखिर सिलेबस से क्यों हटानी पड़ी ‘जामुन के पेड़’ की कहानी?

कुछ दिनों पहले एक खबर सुर्खियों में आई कि लेखक कृष्ण चंदर द्वारा लिखी गई कहानी ‘जामुन का पेड़’ ICSE काउंसिल द्वारा दसवीं की पाठ्यपुस्तक से हटा दी गई है। इसका क्या कारण रहा होगा? यह किस के दिमाग की उपज होगी? दरअसल, 1960 में लिखी गई इस कहानी की सबसे अधिक ज़रूरत तो आज है। 

क्या इस कहानी को हटाने के पीछे JNU जैसी घटनाओं पर रोक लगाना तो नहीं ताकि भारत के बच्चे अधिक विकसित ना हो सकें। जिन्होंने इसे हटाया क्या वे लोग इससे डर गए कि युवा पीढ़ी में तर्क-वितर्क करने की शक्ति ना उत्पन्न हो जाए। मैं तो कहता हूं कि आप खुद ही कहानी पढ़ लीजिए और विचार रखिए कि इस कहानी को पुस्तक से हटाके के क्या कराण रहे होंगे?

क्या है कहानी ‘जामुन के पेड़’ की?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

रात को बड़े ज़ोर का अंधड़ चला। सेक्रेटेरिएट के लॉन में जामुन का एक पेड़ गिर पड़ा। सुबह जब माली ने देखा तो उसे मालूम हुआ कि पेड़ के नीचे एक आदमी दबा पड़ा है। माली दौड़ा-दौड़ा चपरासी के पास गया, चपरासी दौड़ा-दौड़ा क्‍लर्क के पास गया, क्‍लर्क दौड़ा दौड़ा सुपरिंटेंडेंट के पास गया। सुपरिटेंडेंट दौड़ा-दौड़ा बाहर लॉन में आया। मिनटों में ही गिरे हुए पेड़ के नीचे दबे आदमी के इर्द-गिर्द मजमा इकट्ठा हो गया।

एक क्लर्क बोला, “बेचारा जामुन का पेड़ कितना फलदार था।” दूसरा क्लर्क बोला, “इसकी जामुन कितनी रसीली होती थी।”

“मैं फलों के मौसम में झोली भरके ले जाता था। मेरे बच्‍चे इसकी जामुनें कितनी खुशी से खाते थे।” तीसरे क्‍लर्क का यह कहते हुए गला भर आया। माली ने पेड़ के नीचे दबे आदमी की तरफ इशारा करते हुए कहा, “मगर यह आदमी?” यह सनकर सुपरिटेंडेंट सोच में पड़ गया।

एक चपरासी ने  पूछा, “पता नहीं ज़िंदा है कि मर गया।” दूसरा चपरासी बोला,

मर गया होगा। इतना भारी तना जिसकी पीठ पर गिरे, वह बच कैसे सकता है?

इसी बीच दबे हुए आदमी ने बमुश्किल कराहते हुए कहा, “नहीं मैं ज़िंदा हूं।” उसकी आवाज़ सुनकर एक क्लर्क ने हैरत से कहा, “ज़िंदा है?” माली ने कहा कि पेड़ को हटाकर इसे निकाल लेना चाहिए।

एक काहिल और मोटा चपरासी बोला, ‘’मुश्किल मालूम होता है। पेड़ का तना बहुत भारी और वजनी है।” इस पर माली ने कहा,

क्या मुश्किल है? अगर सुपरिटेंडेंट साहब आदेश दें तो अभी पंद्रह-बीस माली, चपरासी और क्‍लर्क ज़ोर लगाकर पेड़ के नीचे दबे आदमी को निकाल सकते हैं।

इस बात पर बहुत सारे क्लर्क एक साथ बोल पड़े,

माली ठीक कहता है। लगाओ ज़ोर हम तैयार हैं।

इसके बाद बहुत से लोग पेड़ काटने के लिए तैयार हो गए। इसी बीच सुपरिटेंडेंट ने कहा, “ठहरो मैं अंडर-सेक्रेटरी से उनकी राय ले लूं।”

सु‍परिन्‍टेंडेंट अंडर सेक्रेटरी के पास गया जिसके बाद अंडर सेक्रेटरी डिप्‍टी सेक्रेटरी के पास गया। डिप्‍टी सेक्रेटरी ज्वाइंट सेक्रेटरी के पास गया और ज्वाइंट सेक्रेटरी चीफ सेक्रेटरी के पास गया। चीफ सेक्रेटरी ने ज्वाइंट  सेक्रेटरी से कुछ कहा और ज्वाइंट सेक्रेटरी ने डिप्‍टी सेक्रेटरी से कहा। डिप्‍टी सेक्रेटरी ने अंडर सेक्रेटरी से कहा और फाइल चलती रही। इसी में आधा दिन गुज़र गया।

फोटो साभार- ट्विटर

दोपहर को खाने पर दबे हुए आदमी के इर्द-गिर्द बहुत भीड़ हो गई थी। लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे। कुछ मनचले क्‍लर्कों ने मामले को अपने हाथ में लेना चाहा। वे हुकूमत के फैसले का इंतज़ार किए बगैर पेड़ को खुद से हटाने की तैयारी कर रहे थे कि इतने में सुपरिटेंडेंट फाइल लिए भागा भागा आया और बोला,

हम लोग खुद से इस पेड़ को यहां से नहीं हटा सकते हैं। हम लोग वाणिज्‍य विभाग के कर्मचारी हैं और यह पेड़ का मामला है। पेड़ कृषि विभाग के तहत आता है। इसलिए मैं इस फाइल को अर्जेंट मार्क करके कृषि विभाग को भेज रहा हूं। वहां से जवाब आते ही इसको हटवा दिया जाएगा।

दूसरे दिन कृषि विभाग से जवाब आया कि पेड़ हटाने की ज़िम्मेदारी तो वाणिज्‍य विभाग की ही बनती है। यह जवाब पढ़कर वाणिज्‍य विभाग को गुस्‍सा आ गया। उन्‍होंने तुरन्त लिखा कि पेड़ों को हटवाने या ना हटवाने की ज़िम्मेदारी कृषि विभाग की ही है। वाणिज्‍य विभाग का इस मामले से कोई ताल्‍लुक नहीं है।

दूसरे दिन भी फाइल चलती रही। शाम को जवाब आया, “हम इस मामले को हॉर्टिकल्‍चर विभाग के सुपुर्द कर रहे हैं, क्‍योंकि यह एक फलदार पेड़ का मामला है और कृषि विभाग सिर्फ अनाज और खेती-बाड़ी के मामलों में फैसला करने का हक रखता है। जामुन का पेड़ एक फलदार पेड़ है, इसलिए पेड़ हॉर्टिकल्‍चर विभाग के अधिकार क्षेत्र में आता है।

रात को माली ने दबे हुए आदमी को दाल-भात खिलाया। हालांकि लॉन के चारों तरफ पुलिस का पहरा था कि कहीं लोग कानून को अपने हाथ में लेकर पेड़ को खुद से हटवाने की कोशिश ना करें। मगर एक पुलिस कॉन्सटेबल को रहम आ गया और उसने माली को दबे हुए आदमी को खाना खिलाने की इजाज़त दे दी।

माली ने दबे हुए आदमी से कहा,

तुम्‍हारी फाइल चल रही है। उम्‍मीद है कि कल तक फैसला हो जाएगा।

इस पर दबा हुआ आदमी कुछ नहीं बोला। माली ने पेड़ के तने को गौर से देखकर कहा,

अच्‍छा है तना तुम्‍हारे कूल्‍हे पर गिरा। अगर कमर पर गिरता तो रीढ़ की हड्डी टूट जाती।

दबा हुआ आदमी फिर भी कुछ नहीं बोला। माली ने फिर कहा,

तुम्‍हारा यहां कोई वारिस हो तो मुझे उसका अता-पता बताओ। मैं उसे खबर देने की कोशिश करूंगा।

इस पर दबे हुए आदमी ने बड़ी मुश्किल से कहा, “मैं लावारिस हूं।” माली अफसोस जाहिर करता हुआ वहां से हट गया।

तीसरे दिन हॉर्टिकल्‍चर विभाग से आलोचनात्मक तरीके से काफी कड़ा जवाब लिखा गया था। उससे हॉर्टिकल्‍चर विभाग का सेक्रेटरी साहित्यिक मिज़ाज का आदमी मालूम होता था। उसने लिखा था,

हैरत है इस समय जब ‘पेड़ उगाओ’ स्‍कीम बड़े पैमाने पर चल रही है, हमारे मुल्‍क में ऐसे सरकारी अफसर मौजूद हैं, जो पेड़ काटने की सलाह दे रहे हैं, वह भी एक फलदार पेड़ को! वह भी जामुन के पेड़ को! जिसके फल जनता बड़े चाव से खाती है। हमारा विभाग किसी भी हालत में इस फलदार पेड़ को काटने की इजाज़त नहीं दे सकता।

एक मनचले ने कहा, “अब क्‍या किया जाए?’’ इस पर सुपरिटेंडेंट ने कहा, “अगर पेड़ नहीं काटा जा सकता तो इस आदमी को काटकर निकाल लिया जाए! अगर इस आदमी को बीच में से यानी धड़ की जगह से काटा जाए, तो आधा आदमी इधर से निकल आएगा और आधा आदमी उधर से बाहर आ जाएगा और पेड़ भी वहीं का वहीं रहेगा।”

मगर शायर का हाथ सर्द था। आंखों की पुतलियां बेजान थीं और चींटियों की एक लंबी कतार उसके मुंह में जा रही थी। उसकी ज़िंदगी की फाइल मुकम्‍मल हो चुकी थी।अगर नीचे दबे आदमी में आप भारत का आम नागरिक ढूंढ रहे हैं, तो ऐसा ही है।

क्या आपको लग रहा है कि यह हमारे सहकारी तंत्र के काम करने की नीति को दर्शा रही है? अरे ना जी ना! गलत मत समझिए। यह तो सिर्फ कहानी मात्र है, इससे कुछ नहीं होता है। ICSE काउंसिल के सचिव और मुख्य कार्यकारी गैरी एराथन ने बताया, “इस कहानी को इसलिए हटा दिया गया है, क्योंकि यह 10वीं के स्टूडेंट्स के अनुरूप नहीं थी।”

देखा हमने कहा था न कि यह कहानी उनके अनुरूप नहीं है। अरे भाई!  कहानी ही तो है हटा दी ताकि हमारी आने वाली नस्लें तर्क-वितर्क ना कर सकें। वे कमज़ोर और खोखले हो चुके इस तंत्र के सामने आवाज़ ना उठा सके।

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