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“पड़ोसी मित्र देशों के साथ संबंध खराब ना कर दे यह नागरिकता कानून”

अभी जिस तरह से हमारे देश में नागरिकता संशोधन बिल के संसद के दोनों सदनों में पास होने के बाद पूर्वोत्तर राज्यों के साथ-साथ अब लगभग अखंड भारत में विरोध प्रदर्शन की तपिश देखने को मिल रही है। वह विरोध एक चिंगारी (असम) से प्रारम्भ होकर भारत के कई जगहों पर भयावह आग का रूप ले चुकी है। ये विरोध तथाकथित धर्म बाहुल्य क्षेत्रों में अधिक देखने को मिल रहे हैं।

भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है जहां पर समस्त धर्मों को एक सम्मानित नज़रिये से देखा जाता है। जिसके लिए भारत समूचे विश्व मे ख्याति प्राप्ति किये हुए है। इस ख्याति को तार-तार करते हुए आप ऐसे बिल को संसद में पास करवाते हैं, जिसकी भारत मे अन्य आवश्यक पहलुओं की तुलना बिल्कुल नगण्य है।

आज सबसे ज़्यादा ज़रूरत रोज़गार की

आज अगर हमारे देश को किसी चीज़ की सबसे अधिक ज़रूरत है, तो वह है रोज़गार, किन्तु सरकार अपनी नाकामी छुपाने हेतु नागरिकता संशोधन बिल की आड़ में मूल मुद्दों को दबाना चाहती है, जिसमें वह सफल भी हो रही है।

उक्त बिल में मुसलमानों को छोड़कर अन्य सभी धर्मों को मानने वाले लोगों (वहां के अल्पसंख्यकों) को भारत में नागरिकता देने की बात की गई है, जिससे कहीं ना कहीं हमारे पड़ोसी मित्र देश अफगानिस्तान एवं बांग्लादेश को ठेस पहुंची होगी, क्योंकि परोक्ष रूप से भारत अफगानिस्तान और बांग्लादेश को अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करने के आरोप लगा रहा है तथा दुनिया के सामने इन देशों को पाकिस्तान जैसे कट्टरवादी देश की कतार में खड़ा कर दिया है, जो कहीं न कही गलत है।

हमारे पड़ोसी देशों के साथ संबंध खराब

अफगान भारत से कंधे से कंधा मिलाता चला आया है और जब भी पाकिस्तान से हमारे देश की तू तू- मैं मैं हुई है, तब यही अफगान देश हमारे देश के साथ मिलकर पाकिस्तान को आंख दिखाता है ,जिससे कहीं ना कहीं पाकिस्तान पर कूटनीतिक दबाव पड़ जाता है। यहां तक कि अफगानिस्तान ने क्रिकेट के मैदान में भारत को विश्व के समक्ष अपना घर बताया है और आज उसी मित्र देशों को हम पाकिस्तान देश के साथ जोड़ रहे हैं।

क्या आगे इस बिल के बाद अब कभी भविष्य में अफगानिस्तान हमारे देश के साथ उसी तरह खड़ा होगा, जैसे पहले खड़ा रहा है? अगर हम पड़ोसी देशों के साथ मित्रवत व्यवहार नहीं करेंगे तो परोक्ष रूप से देश को नुकसान हो सकता है। एक पुरानी कहावत है,

जब घर मे आग लगती है तो बुझाने के लिए पड़ोसी ही आते है।

धर्म की कट्टरता पर चलने वाले देशों की दशा

इन सबके अलावा धार्मिक आधार पर यह फैसला लेना कि कौन गलत या सही है, पूर्णतया गलत है। चूंकि जब कोई देश धर्म की कट्टरता पर चलता है, तो वह गर्त में जाता है। कार्ल मार्क्स ने कहा है,

धर्म लोगों का अफीम है।

उपरोक्त बिल से इस्लाम धर्म के मानने वाले लोगों पर एक मनोवैज्ञानिक दबाव भी बनाया जा रहा है कि उनकी कौम कहीं ना कहीं गलत है। हम जानते हैं कि विश्व में इस्लाम दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है, जिसे मानने वालों की आबादी लगभग 1.6 अरब मानी जाती है।

संभवतः बहुतायत में कई इस्लामिक देश इस नागरिकता संशोधन बिल के नियम से अप्रत्यक्ष रूप से नाराज़ होंगे, जिससे भारत के आर्थिक व्यापार में अच्छा खासा प्रभाव पड़ सकता है तथा उपरोक्त बिल से हमारी संस्कृति भी धूमिल हो सकती है। वह छवि जिसके लिए हमारा देश  पूरे विश्व मे जाना जाता था।

इस बिल को अगर चुनावी नज़र से देखा जाए तो हर एक सरकार जानती है कि भारत हिन्दू बाहुल्य देश है, इसलिये धर्म के आधार पर हिंदुत्व हितैषी की छवि प्रदर्शित की जाती है।

 

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