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क्या सरकार का ‘राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम’ प्रदूषण को रोकने में कारगर साबित होगा?

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम है क्या?

यह वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए एक पांच वर्षीय कार्यक्रम है, जिसके तहत साल 2024 तक 102 शहरों में पर्टिकुलेट मैटर की मात्रा 20-30% कम करना है। इसके तहत 2017 को आधार वर्ष मानते हुए वायु में मौजूद PM 2.5 और PM10 पार्टिकल्स की मात्रा कम की जाएगी।

इस योजना के तहत प्रत्येक शहर को प्रदूषण के स्रोतों के आधार पर उसे कम करने के लिए अपनी कार्य योजना विकसित करने के लिए कहा जाएगा। हालांकि, इस योजना की सबसे बड़ी खामी यह है कि यह योजना शहरों के लिए कानूनन बाध्यकारी नहीं है और इसका उल्लंघन करने पर किसी तरह की कोई कार्रवाई या जुर्माना लगाने का भी कोई प्रावधान नहीं है।

सरकार ने पर्टिकुलेट मैटर की मात्रा 20-30% तक कम करने की बात कही है लेकिन यह काफी बड़ी चुनौती है, क्योंकि देश में प्रदूषण बढ़ने की रफ्तार जितनी तेज़ है, उतनी तेज़ी से इसकी रोकथाम के लिए नीतियां और उनका कर्यान्वयन नहीं हो पा रहा है। आज भी शहरों में हज़ारों की संख्या में ऐसे डीज़ल-पेट्रोल वाहन दौड़ रहे हैं, जिनकी अवधि खत्म हो चुकी है।

इस कार्यक्रम में किन-किन शहरों को किया गया है शामिल?

एनसीएपी में 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 102 शहरों को शामिल किया गया है। इसमें दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु को छोड़ दें तो अधिकतर टियर-2 शहर शामिल हैं। इसमें सबसे ज़्यादा 17 महाराष्ट्र के शहर (जैसे पुणे और नागपुर) शामिल हैं, जबकि इस मामले में उत्तर प्रदेश 15 शहरों के साथ दूसरे नंबर पर है।

वर्तमान आंकड़ों को देखें तो लखनऊ और वाराणसी में एयर क्वालिटी इंडेक्स गंभीर-खतरनाक स्थिति में रहता है। इस कार्यक्रम में सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम, त्रिपुरा, केरल, गोवा और हरियाणा को शामिल नहीं किया गया है।

यह बात ध्यान में रखनी होगी कि नेताओं की तरह हवा की कोई राजनीतिक बाध्यता नहीं होती है कि वह बीजेपी शासित राज्यों को दूषित ना करे और गैर-बीजेपी राज्यों में प्रदूषण फैलाए। अगर बीते घटनाक्रमों को देखें, तो वायु प्रदूषण को लेकर दिल्ली और हरियाणा-पंजाब के बीच चूहा बिल्ली का खेल होता है। इसमें नुकसान सबसे ज़्यादा आम लोगों और गरीबों का हो रहा है, क्योंकि प्रधानमंत्री कार्यालय तो अपने लिए महंगे-महंगे एयर प्यूरीफायर मंगा लेते हैं।

रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक,

केंद्र सरकार ने 2014 से 2017 के बीच 36 लाख में ₹140 एयर प्यूरीफायर खरीदे हैं।

अगर वायु प्रदूषण से लड़ना है तो पार्टियों को अपने राजनीतिक हितों से ऊपर उठकर काम करना होगा लेकिन इसकी मंशा कम ही दिखाई देती है। वहीं, सरकार ने प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम की शुरुआत की लेकिन इसे सही तरीके से लागू करने के लिए जन-भागीदारी भी बहुत ज़रूरी है। जब तक नीतियों के सही क्रियान्वयन के साथ-साथ लोगों को इसके बारे में जागरूक नहीं किया जाएगा तब तक प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार के प्रयास कारगर साबित नहीं होंगे।

This post has been written by a YKA Climate Correspondent as part of #WhyOnEarth. Join the conversation by adding a post here.
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