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देशभर में चल रहे आंदोलनों के बीच रूस की यह तस्वीर क्यों याद की जानी चाहिए

तस्वीर ज़्यादा पुरानी नहीं है। बात अगस्त 2019 के आसपास की है, जब रूस में चुनाव को लेकर आंदोलन हो रहे थे। उसी समय की एक तस्वीर वायरल हुई है, जिसमें यह है 17 साल की ओल्गा मिसिक, जो बुलेट प्रूफ जैकेट पहनकर रूस की पुलिस के सामने बैठी है।

रशियन पुलिस के सामने संविधान पढ़ती ओल्गा मिसिक। फोटो सोर्स- सोशल मीडिया

ओल्गा के हाथ में है रूस का संविधान, जिसे वह पुलिस के सामने ज़ोर-ज़ोर से पढ़ रही है। उनके पीछे हैं वे प्रदर्शनकारी, जो रूस में पारदर्शी चुनाव की मांग कर रहे हैं। दंगों के दौरान जब रशियन पुलिस उसे घेर लेती है, तो वह उनके सामने रूस का संविधान पढ़ने लगती है।

इसे रसियन पुलिस के मन में अपने संविधान की इज्ज़त कहें या कुछ और किसी पुलिस वाले इतना सामर्थ्य नहीं जुटा पाएं कि वे ओल्गा को चुनौती दे सकें।

रशियन पुलिस के सामने संविधान पढ़ती ओल्गा मिसिक। फोटो सोर्स- सोशल मीडिया

आखिर हमारी नैतिकता क्या है

किसी मज़हब का पवित्र स्तंभ क्या होगा। सोचिये, आप, मैं अपना मत देते हैं, हिन्दू की गीता होगी तो मुसलमान के लिए कुरान, ईसाई का बाइबल होगा, तो सिख का गुरुग्रन्थ साहिब।

अक्सर फिल्मों में देखा है कि कोर्ट का रूम है. उसमें मुजरिम को लाया जा रहा है और उसके सामने सौगंध लिए जाने के लिए उसके मज़हब के पवित्र ग्रंथ की पुस्तक रखी जाती है । वह हाथ रखकर कहता है, मैं जो भी कहूंगा, सच कहूंगा सच के सिवाय कुछ नहीं कहूंगा।

यह अलग बात है कि वह कितना सच बोलता है, कितना नहीं परन्तु हमारी यह धारणा है कि हर व्यक्ति अपने पवित्र ग्रन्थ के सम्मुख झूठ बोलने की ज़हमत नहीं उठा सकेगा। उसी तरह सरकारी मुलाज़िमों का भी एक पवित्र ग्रंथ होता है, वह है संविधान। वैसे यह पवित्र ग्रंथ सभी का है परन्तु सरकारी मुलाज़िम की ज़िम्मेदारी इसके प्रति अधिक है। इसके रक्षण से लेकर इसको अमल में लाए जाने तक हम सभी कटिबद्ध हैं और हमारी कटिबद्धता इसके प्रति कितनी है, यह भी अब स्पष्ट हो ही जाना चाहिए।

इन दिनों पुलिस द्वारा उड़ाई गईं संविधान की धज्ज़ियां

संविधान का रक्षण करते-करते हम कब उसके भक्षक बनने पर उतर आएं, हमें पता ही नहीं चला। अधिकारों का हनन करने का अधिकार ना आपको है ना हमें है। जामिया की घटना स्तब्ध करती है। यह एक साज़िश है, जामिया को बदनाम करने की, जो लोग उपद्रव के लिए दोषी हैं, उन्हें कठोरतम सज़ा मिले, जो भविष्य के लिए नज़ीर बने।

जामिया स्टूडेंट्स पर लाठीचार्ज करती पुलिस। फोटो सोर्स- सोशल मीडिया

हमें ध्यान इस ओर भी रखना है कि पुलिस की भी ज़िम्मेदारी तय होनी चाहिए। दोनों ओर से प्राप्त वीडियो दुखद हैं, जो कि स्वस्थ लोकतंत्र में नहीं होने चाहिए। दोषी को भी हो वे दंड के भगीदार बनाए जाने ही चाहिए। स्वस्थ लोकतंत्र में आंदोलन अधिकार है, उसको रोका व दबाया नहीं जा सकता है।

इंदिरा गॉंधी ने आंदोलन को दबाने के प्रयास किए थे परन्तु वह सफल नहीं रहीं, परिणाम यह हुआ कि उनको सत्ता गवानी पड़ी और जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में स्टूडेंट्स आंदोलन मुखरता से सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन की ओर अग्रसर हुआ था।

सत्ता की टापों पर आप जबरन विश्वास का महल खड़ा नहीं कर सकते हैं, उसके लिए आपको लोगों के दिलों को जीतना होगा, संवाद स्थापित करना होगा, उनके कथनों को समझते हुए उनपर विचार पूर्वक निर्णय लेने होंगे। सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग यदि हठधर्मिता पर उतर आएंगे, तो अराजकता का फैलना लाज़िमी है। अराजकता को समेटने के लिए आवश्यक है संवाद।

संवाद करिये हल मिलकर निकालेंगे

संवाद, हर विषय का हल है। जटिल-से-जटिल विषय का हल संवाद से ही निकलेगा। उपद्रव कितना भी हो जाए, अंततः हमें संवाद पर ही केंद्रित होना होगा। ओल्गा मिसिक की तस्वीर एक स्वस्थ लोकतंत्र को आइना दिखा रही है। वह हमें बता रही है कि लोकतंत्र में शांतिपूर्ण प्रदर्शन की ही पूर्ण जगह है। अराजकता किन्हीं भी विषयों का हल नहीं हो सकती हैं।

वहीं यह तस्वीर यह भी प्रदर्शित करती है कि संविधान का वाचन करते हुए यह लड़की पुलिस वालों के लिए स्वतः एक आदरणीय स्वरूप में आ जाती है, क्योंकि उसके हाथ में जो पुस्तक है, वह महज़ एक पुस्तक नहीं एक पवित्र ग्रंथ है, जिसको रचने में लाखों ने जीवन समर्पित किया है। पुलिस का यह आदर अनुकरणीय है। ऐसे चित्र स्वस्थ लोकतंत्र का खाका खींचते हैं, ऐसे ही चित्र की कल्पना हम भारत में भी करते हैं।

आशा करते हैं कि अराजकता को त्याग करके स्वस्थ लोकतंत्र में भागीदार बनते हुए, शांतिपूर्ण आंदोलन को तरजीह दी जाए। बेशक, आंदोलन आपका अधिकार है परन्तु आगजनी या पत्थरबाज़ी लोकतंत्र में कभी स्वीकार्योग्य नहीं है।

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