क्या नाम बदलने से तुम्हें इंसाफ मिल जाएगा? जिस तरह तुम्हारे जीवन से खेला गया ,क्या तुम्हारी उस समय चीखे किसी ने नहीं सुनी होगी? या हमारा समाज इतना बहरा है कि उसे सिर्फ धमाके या फिर हादसे से ही जगाया जाता है, पर इस जागने को भी क्या कहेंगे? ज़्यादा से ज़्यादा कैंडल मार्च या संसद के सामने धरना प्रदर्शन। जिसमें एक दिन बीतेगा या ज़्यादा से ज़्यादा एक हफ्ता। इससे क्या प्रियंका या पुलिस के ज़रिये दिया गया नाम दिशा को पूरा न्याय मिलेगा?
वह चीखी तो होगी, चिल्लाई भी होगी, जब उसके जिस्म को केवल नोचा खसोटा ही नहीं गया होगा बल्कि जलाया जा रहा होगा क्योंकि ज़ाहिर है जिस तपन की तपिश को इंसान चंद सेकेंड स्थिर होकर झेल नहीं सकता, उसने वह ना जाने कितने घंटों तक सही होगी।
कब रूकेंगे ये हादसे?
वह गिड़गिडाई भी होगी पर क्या उन हैवानों में हैवानियत की भूख इतनी थी कि इंसान के ज़िंदा जिस्म और एक बेजान जिस्म में अंतर नहीं समझा? क्या कहा जाए इन जानवरों का जिनकी ही जाति के वो चार जानवर भी थे, जिन्होंने 2012 में दिल्ली की बेटी निर्भया को जीवन भर का ऐसा दंश दिया था, जिससे उसकी जीवन लीला ही समाप्त हो गई।
क्या होगा उन माँ- बाप का, जिनके घरों में उन जाने वाली बेटियों के अलावा और बेटियां भी हैं। क्या वे उनका घर से निकलना ही बंद कर देंगे या फिर जब भी घर से बाहर निकालेंगे तो उसके साथ-साथ हर जगह जाएंगे? क्योंकि क्या पता कल फिर से उसके घर में या किसी के घर में निर्भया या दिशा ना हो।
आने वाली पीढ़ी भी मजबूर
इनका होना देश के लिए क्या गौरवंतित कर रहा है? नहीं बल्कि यह हमारी आने वाली पीढ़ी को सोचने पर मजबूर कर रहा है कि क्या भविष्य है हमारे देश का? क्या हम वाकई में अपने घर की लड़कियों को देर तक काम पर रहने या फिर घूमने के लिए छोड़ सकते हैं? आपका जवाब ना होगा इसलिए क्योंकि जिस बेटी के पैदा होने पर माँ बाप खुश होकर घर में त्यौहार सा माहौल बना लेते हैं, उसके घर में वे भी इस तरह से जाने पर ठीक से रो भी नहीं पाते क्योंकि पैदा होने पर उन्होने उस बेटी को फूलों से सजाया था और अब इतनी हैवानियत भरी मौत से वह किस तरह से देख पाएंगे?
मैं खुद भी एक लड़की हूं पर इतना कहती हूं कि बाहर जाना मसला नहीं है और ना ही हम किसी के गिरेबान में झांक कर देख पाएंगे कि कौन कैसा है क्योंकि जो सीख एक माँ बाप अपनी बेटियों को देते है, वही सीख वह अपने बेटों को भी देते हैं। पर कुछ बेटे हैवानियत ओढ़ लेते हैं और कुछ को यह याद होता है कि घर में उनकी एक बहन है।
इतना सोच, ठिठक जाते हैं उनके कदम पर जिनके कदम नहीं ठिठकते उनसे कैसे बचे दिशा और निर्भया?