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“क्या नागरिकता कानून भारतीय मुसलमानों के लिए डर का विषय है?”

एनआरसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते लोग

एनआरसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते लोग

जब से नया नागरिक विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित हुआ है, तब से मेरे देश में एक हंगामा मच गया है। तमाम तरह की बातें हो रही हैं कि यह बिल भारत के अल्पसंख्यक खास तौर पर मुसलमान समाज के खिलाफ है। हालांकि इस कानून में भारत में पहले से रहने वाले मुसलमानों के बारे कुछ भी नहीं कहा गया है।

यह कानून भारत में शरणार्थियों को नागरिकता कैसे मिले इस पर है। इसमें कहा गया कि पकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए अल्पसंख्यक समुदाय को भारत में नागरिकता दी जाएगी जिसके लिए उन्हें वैसे दस्तावेज़ दिखाने होंगे जिसमें यह साबित हो कि वे भारत में 6 साल से रह रहे हैं।

इसमें सिर्फ हिन्दुओं की ही बात नहीं की गई है, बल्कि कुल 6 धर्म के लोगों को नागरिकता देने की बात की गई है। हालांकि इस कानून में कुछ चीज़ें ऐसी हैं जिन पर मेरा भी विरोध है। पहला कि इसमें अफगानी और रोहिंग्या मुसलमान, श्रीलंका के तमिल हिन्दुओं और तिब्बत के बौद्धों का ज़िक्र ही नहीं है, जो खुद अपने देश से जान बचाकर भागे हैं।

देश के अलग-अलग इलाकों में जमकर इसका विरोध किया जा रहा है। हर तरफ से आवाज़ें उठ रही हैं कि सरकार मुसलमानों के साथ भेदभाव कर रही है। जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने अभी हाल ही में दिल्ली में एक रैली के दौरान कहा कि इससे किसी भी मुसलमान को डरने की ज़रूरत नहीं है।

क्या यह गोलवलकर के विचारों का बिल है?

एनआरसी और नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन। फोटो साभार- सोशल मीडिया

कई दिनों से सोशल मीडिया में सुन रहा हूं कि यह कानून राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे अध्यक्ष स्व. माधवराव सदाशिव गोवलकर के विचारों की देन है। हालांकि मैं ऐसा नही मानता हूं और इसके लिए मैं खुद इन्हीं के गुरु गोवलकर जी के विचारों को रखना चाहूंगा।

इस कानून में ईसाई और पारसी समाज के लोगों को भी स्थान दिया गया है और गोवलकर जी ने अपनी किताब “Bunch of Thoughts” में ईसाइयों और कम्युनिस्टों को भी मुसलमानों की तरह इस देश का सबसे बड़ा दुश्मन बताया था। उन्होंने अपनी दूसरी किताब “We And our Nationhood Defined” में ऐसे ही कुछ विचार रखे थे और विनायक सावरकर के उस विचार का भी समर्थन किया था कि मुसलमान और ईसाई लुटेरे हैं।

भारत का विचार है वसुधैव कुटुम्बकम

वसुधैव कुटुम्बकम का जो हमारा विचार है, वह पूरे विश्व को एक परिवार मानता है। मेरा इस बात पर पूरा समर्थन है कि इन 3 देशों के अल्पसंख्यक समुदाय का कोई भी इंसान जो धार्मिक उत्पीड़न का शिकार हुआ है, उसे सुरक्षा मिलनी चहिए।

इस कानून को NRC से मिलाकर जिस तरह से देखा जा रहा है, उस पर भी सवाल उठना ज़रूरी है। यह ज़रूरी है कि आज की तारीख में जिस तरह के हालात देश में बन रहे हैं, उन पर हम अपनी प्रतिक्रिया ना देकर शांति कायम रखें।

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