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क्या यह देश फासीवाद की तरफ बढ़ रहा है?

Representational image.

कल यानी 19 दिसम्बर को देशभर में राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान और रौशन सिंह के शहादत दिवस पर हाल में बना कानून ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए)’ तथा असम राज्य के बाद पूरे देश में लागू होने वाले ‘राष्ट्रीय नागरिकता पंजीकरण(एनआरसी) के खिलाफ “हम भारत के लोग” के बैनर तले “साझा शहादत, साझा विरासत, साझा नागरिकता” नाम से मार्च तथा प्रदर्शन का आह्वान दिया गया था।

देश के कई इलाकों में धारा 144 लगी

18 की रात से ही देश के कई इलाकों में धारा 144 लगा दी गयी थी। दिल्ली में यह मार्च दो जगहों से होना था। लालकिला से शहीद पार्क तथा मंडी हाउस से शहीद पार्क। यहां भी धारा 144 लगने के कारण मार्च को रोक दिया गया। प्रदर्शन स्थलों से हज़ारों की संख्या में लोगों को डिटेन किया गया।

लालकिला से योगेन्द्र यादव तथा मंडी हाउस से सीताराम येचुरी, डी. राजा और अन्य नेताओं को हिरासत में लिया गया। वहीं खबर है कि बंगलुरु से जानेमाने इतिहासकार रामचन्द्र गुहा को भी हिरासत में लिया गया था। हालांकि बाद में सभी को छोड़ दिया गया।

दूसरी ओर, जब दिल्ली के कई प्रदर्शन स्थलों से लोगों को उठाना शुरू किया गया तो हज़ारों की संख्या में प्रदर्शनकारी जंतर-मंतर पर जमा होने लगे। इसके बावजूद कि 20 से अधिक बसों में प्रदर्शनकारियों को डिटेन कर शहर से बाहर के थानों में ले जाया गया। देखते-देखते जंतर-मंतर पर जन-सैलाब उमड़ पड़ा।

क्या है कानून में प्रावधान?

इस कानून में यह प्रावधान है कि 31 दिसम्बर 2014 या इससे पहले भारत में रह रहे शरणार्थियों जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी समुदाय से हैं तथा उन्होंने यहां की नागरिकता के लिए आवेदन दिया है, तो उन्हें यहाँ के नागरिकों का दर्ज़ा दिया जाएगा।

ध्यान रहे इसमें मुस्लिम समुदाय को बाहर रखा गया है अर्थात यह कानून धार्मिक आधार पर भेदभाव करता है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। इसमें साफ कहा गया है कि “राज्य धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध करते हुए किसी भी व्यक्ति को विधि के समक्ष समानता या भारत के क्षेत्र के भीतर विधि के समान संरक्षण से इंकार नहीं करेगा”।

इसलिए इस कानून को गैर-संवैधानिक बताते हुए 11 दिसम्बर के बाद से देशभर में प्रदर्शन जारी हैं। कई जगहों पर प्रदर्शन ने हिंसा का रूप ले लिया। वहीं दिल्ली में कल शांतिपूर्ण तरीकों से प्रदर्शन किया गया। कई वाम पार्टियों तथा अन्य संगठनों ने इस कानून के खिलाफ कल के मार्च का आह्वान दिया था। जिसे रोके जाने के बाद प्रदर्शनकारी जंतर-मंतर पर जमा हुए।

भारत में फासीवाद का दौर

जंतर-मंतर पर मार्च में शामिल लेखिका अरुंधती रॉय से हमारी साथी एकता द्वारा पूछे जाने कि उन्होंने अपनी किताब “अपार खुशियों की घराना” में जिस तरह से कश्मीर में सरकार के फासीवादी रुख़ की पड़ताल की है, क्या वे मानती है कि वही रुख अब सरकार की शेष भारत को लेकर है, के जवाब में लेखिका रॉय कहती हैं,

मैं तो पिछले 15-16 सालों से इस पर बोल रही हूं कि फासीवाद आ रहा है लेकिन इसपर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। अच्छी बात यह है कि अब इस कानून (सीएए), जो गैर-संवैधानिक है, के खिलाफ छात्र, महिलाएँ, दलित, मुस्लिम, हिंदू, ईसाई, सिख, आदिवासी, मार्क्सवादी, आंबेडकरवादी, किसान, मजदूर, शिक्षक, लेखक, कवि, चित्रकार सभी तरह के लोग साथ आ रहे हैं।

दिल्ली पुलिस द्वारा मार्च स्थलों से लोगों को हिरासत में लिए जाने तथा मार्च को रोक दिए जाने के खिलाफ दिल्ली विश्वद्यालय के प्रो. अरजुमंद आरा कहती हैं,

आज जिस तरह मार्च को रोका गया उससे साफ जाहिर होता है कि सरकार जनता की प्रोटेस्ट से डरी हुई हैं। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि वो लोग जो कभी निकलते नहीं थे, वो भी इस कानून (सीएए) के विरोध में सड़क पर उतर रहे हैं।

आगे वे कहती हैं,

जब लालकिला और मंडी हाउस से मार्च नहीं निकलने दिया गया तथा वहां से लोगों को डिटेन कर शहर से दूर ले जाया गया, इसके बावजूद भी जंतर-मंतर पर बगैर किसी अग्रिम सूचना के हज़ारों लोग जमा हुए। कई दिनों से प्रोटेस्ट चल रहा है। इससे सरकार डरेगी ही। सरकार इतनी खौफज़दा है कि आज हमसे प्रोटेस्ट का हक भी छीना जा रहा है। सरकार का यह हिन्दू-मुस्लिम का प्लान नाकामयाब हुआ है और यह बड़ी उम्मीद की बात है।

अमूमन बहुत कम समय होता है जब निजी विश्वविद्यालय के छात्र सड़क पर होते हैं लेकिन कल जंतर-मंतर पर अशोका यूनिवर्सिटी के कई छात्र नारा लगाते देखे जा सकते थे।

हमने इसी यूनिवर्सिटी की छात्रा निदेविता से बात की। उन्होंने कहा,

देशवासियों के लिए यह जो काला कानून सीएए पास किया गया है,इसी के विरुद्ध हम आएं हैं। यह कानून ना सिर्फ गैर-संवैधानिक है, बल्कि धर्म के नाम पर हमें बांटता है।  इस समय देश में आर्थिक मंदी आई हुई है। गरीबों को पेट भरने के लिए खाना नहीं मिल पा रहा है और इनको (सरकार) पड़ी है कि हमसे नागरिकता पूछे। हम छात्रों के पास कोई रास्ता नहीं था सड़क पर आने के अलावा। हमें पढाई पसंद हैं, हम पढाई करना चाहते हैं लेकिन ऐसे-ऐसे काले कानून लायेंगे तो छात्रों को तो आना ही पड़ेगा।

सरकार और पुलिस के दमन पर आगे वे कहती हैं,

आज के दमन के जैसा इमरजेंसी में भी हुआ होगा लेकिन तब मैं पैदा नहीं हुई थी लेकिन यह पहली बार देख रही हूं।  भारत सरकार और दिल्ली पुलिस ने बहुत गलत किया है। शांतिपूर्ण मार्च होने वाले थे, आपने हमें नहीं करने दिया।  यह बात है कि आप कितने भी मेट्रो स्टेशन बंद करा दीजिए, सड़कें बंद करा लीजिए, इंटरनेट बंद करा दीजिए, गिरफ्तार कर लीजिए, पर हम छात्रों का आन्दोलन बंद नहीं होगा।

जंतर-मंतर में लोगों का जमावड़ा देर रात तक रहा। इसमें कई संगठन, पार्टी, छात्र, महिलाएँ, लेखक, शिक्षक, रंगकर्मी तथा आम नागरिक शामिल थे।

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