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क्या सिटिज़नशिप अमेंडमेंट बिल के ज़रिये सरकार मुसलमानों की अनदेखी कर रही है?

सिटिज़नशिप अमेंडमेंट बिल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन। फोटो साभार- सोशल मीडिया

सिटिज़नशिप अमेंडमेंट बिल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन। फोटो साभार- सोशल मीडिया

‘अतिथि देवो भव:’ और ‘सर्व धर्म समभाव’ 2014 से पहले देश की संस्कृति हुआ करती थी मगर भाजपा ने सत्ता में आकर कोशिश की है कि एक धर्म को देश से मिटा दिया जाए और देश को धर्म निरपेक्ष ना रहने दिया जाए। हाल ही में लोकसभा ने नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 को भारी बहुमत से पारित कर दिया है।

यह विधेयक देश के मूल सिद्धांत एकता का अधिकार और धर्म निरपेक्षता के खिलाफ है। नागरिक संशोधन बिल अगर कानून का रूप ले लेता है तो पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के कारण वहां से भागकर आए हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों को CAB के तहत भारत की नागरिकता दी जाएगी।

भारतीय संविधान में अनुच्छेद-14 के मुताबिक,

राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समता से या कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।  इसका मतलब हुआ कि सरकार भारत में किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करेगी।

आर्टिकल 14 के अनुसार भारत में हर व्यक्ति को समान न्यायिक और सामाजिक दृष्टि से देखना चाहिए मगर नए विधेयक के अनुसार भारत में बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए नॉन मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने की बात हुई है। ऐसे में क्या सरकार ने शोध नहीं किया कि कैसे पाकिस्तान में शिया और अहमदिया मुसलमानों के साथ दुर्व्यवहार होता है?

सरकार को मुसलमानों से आखिर किस बात की नफरत है?

सिटिज़नशिप अमेंडमेंट बिल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन। फोटो साभार- सोशल मीडिया

बांग्लादेश से आए रिफ्यूजी धर्म के कारण नहीं, बल्कि गरीबी से बचने और रोजगार के लिए भारत आते हैं। चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान। तो सरकार को मुसलमानों से क्या नफरत है? साथ ही अगर हम पाकिस्तान और बांग्लादेश के “Persecuted Religious Minorities” को शरण दे रहे हैं, तो चीन और म्यांमार के मुसलमानों को क्यों नहीं? म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमान सालों से तड़प रहे हैं मगर उनको भी नागरिकता क्यो नहीं?

क्या धर्म के नाम पर सरकार मुसलमानों की अनदेखी कर रही है? आज कल कुछ लोगों को सेक्युलर शब्द पसंद नही आता मगर क्या करें हमारे देश के महान व्यक्तियों जैसे बाबा साहेब, सरदार पटेल और महात्मा गाँधी ने देश की नींव धर्मनिरपेक्षता और एकता पर रखी। जबकि कुछ लोग अखंड हिन्दू राष्ट्र का सपना देख रहे थे और भाजपा के शाह जी काँग्रेस पर आरोप लगा रहे थे, जो पटेल और अंबडेकर को वक्त आते ही अपनी झोली में कर लेते हैं।

एनआरसी यानी भारतीय नागरिकों की एक लिस्ट जिसके ज़रिये असम के 19 लाख से अधिक लोगों से भारतीय नागरिकता छीन ली गई। आज दिल्ली से लेकर पूर्वोत्तर भारत तक विरोध किया जा रहा है। यह विधेयक देश के धर्म निरपेक्षता के मूल आधार के खिलाफ है। खुशी की बात यह है कि इस मुद्दे के खिलाफ एबीवीपी और लेफ्ट दोनों साथ हैं।

असल मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश है नागरिकता संशोधन विधेयक

नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते लोग। फोटो साभार-सोशल मीडिया

नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 जल्द पूर्वोत्तर से लेकर देश के हर कोने तक पहुंच जाएगा। हो सकता है आपमें से कई लोग उस लिस्ट में शुमार ना हो पाए। सरकार जब असल मुद्दे से देश को भटकना चाहती है, तो कुछ हलचल सी मचाने की कोशिश करती है, ऐसी ही एक हलचल है नागरिकता संशोधन विधेयक। आज जब सरकार को देश की डगमगाती अर्थव्यवथा, पूंजी और किसानों, युवाओं और आम आदमी के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए और संसद में बहस में हिस्सेदारी रखनी चाहिए, ऐसे वक्त में हमारी सरकार नागरिकता के लिए एक बोगस और एकतरफा विधेयक लाई है।

जहां अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर शॉर्ट टाइम डिस्कशन हमारी संसद में किया गया, वहीं एक बोगस विधेयक को फिर से लाने का प्रयत्न किया जा रहा है। बीबीसी हिंदी लिखती है कि इस विधेयक में बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के 6 अल्पसंख्यक समुदायों (हिंदू, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई और सिख) से ताल्लुक रखने वाले लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव है।

भारत एक धर्म निरपेक्ष देश माना गया है और हमारे संविधान में भी धर्म निरपेक्षता और एकता के अधिकार का वर्णन किया गया है मगर आज लगता है भारतीय जनता पार्टी अपने एक धर्म के एजेंडे को आगे लाने की पूरी कोशिश में है। एनआरसी यानी नैशनल सिटिज़न रजिस्टर, जिसे आसान भाषा में भारतीय नागरिकों की एक लिस्ट समझा जा सकता है।

एनआरसी से पता चलता है कि कौन भारतीय नागरिक हैं और कौन नहीं। जिसका नाम इस लिस्ट में नहीं, उसे अवैध निवासी माना जाता है। असम में 31 अगस्त 2019 को एनआरसी की आखिरी लिस्ट जारी की गई और 19 से ज़्यादा लोग इस लिस्ट से बाहर हो गए।

यह विधेयक देश के धर्म निरपेक्षता के मूल आधार के खिलाफ है। पाकिस्तान मुस्लिम देश हो सकता है मगर हमारे 2014 से पहले तक के पूर्वजों जैसे गाँधी, पटेल और अंबेडकर ने एक धर्मनिरपेक्ष भारत की नींव रखी थी, जो आज की सरकार बदलने पर तुली है। आप बाहर से आए मुसलमानों को छोड़ हर धर्म को नागरिकता देने को तैयार हैं और साथ ही एनआरसी लिस्ट से ना जाने कितने हज़ारों देशवासियों को हटाने पर तुले हुए हैं। आज इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है,

The Bill seeks to grant Indian citizenship to non-Muslim refugees from Pakistan, Bangladesh and Afghanistan escaping religious persecution there.

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