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कन्नूर के इस डीएम ने कैसे पूरे ज़िले में फेक न्यूज़ के खिलाफ लड़ाई लड़ी

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि गलत सूचना और अवधारणा की वजह से 2 लाख बच्चों की ज़िन्दगी खतरे में पड़ सकती है? यह बात कन्नूर के ज़िलाधिकारी मीर मोहम्मद अली ने की। मीर दिल्ली के डॉ अम्बेडकर इंटरनैशनल सेंटर में आयोजित Youth Ki Awaaz Summit में मौजूद थे, जहां उन्होंने अपना यह सवाल रखा।

मीर मोहम्मद अली

उन्होंने फेक न्यूज़ से बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव की एक घटना के बारे में बताया कि भारत सरकार अक्टूबर 2017 में Measles Rubella Vaccine प्रोग्राम लॉन्च करती है, जिसके तहत 9 साल से 15 साल के बच्चों को Measles Rubella वायरस से लड़ने के लिए वैक्सीन दिया जाना था। 3 लाख बच्चों तक इस वैक्सीन को पहुंचाए जाने के बाद, हमें इससे आगे बढ़ाने में मुश्किलें आने लगी, क्योंकि, 100 या 1000 नहीं बल्कि 2 लाख माता-पिता अपने बच्चों को फर्ज़ी खबरों और अवधारणाओं की वजह से टीका नहीं दिलवाना चाहते थे।

दरअसल, इससे संबंधित एक गलत सूचना सोशल मीडिया द्वारा वीडियो, टेक्स्ट और ऑडियो के रूप में फैलाई जा रही थी। अफवाह फैल रही थी कि जो भी लड़कियां इसका इस्तेमाल करेंगी, वे ज़िन्दगी में कभी मॉं नहीं बन पाएंगी। इसके अलावा भी कुछ अफवाहें फैलाई गई थीं।

मीर मोहम्मद अली

मीर ने बताया कि एक ज़िले के प्रबंधक होने के नाते हमारे पास यह चुनौती थी कि लोगों को इस गलत सूचना से कैसे  सावधान किया जाए। इसके लिए हमने लोगों को समझाने के लिए ज़िले के चिकित्सकों की टीम बनाई और लोगों से उनसे बात करवाई।

चिकित्सकों के बोलने के बावजूद भी कुछ लोग इस बात को मानने से इनकार कर रहे थे। उन लोगों का कहना था कि यह सूचना उस व्यक्ति ने भेजा है, जिसपर वे ज़्यादा भरोसा करते हैं। इतना ही नहीं इसके बाद मैं स्कूल में स्टूडेंट्स से इस वैक्सीन के बारे में बात करने गया, तब वहां के स्टूडेंट्स ने बोला कि हम इस पर भरोसा नहीं कर सकते हैं, आपको हमें लिखित में देना होगा।

मीर मोहम्मद अली

इसके बाद मैंने उन्हें फर्ज़ी खबरों के प्रचलन का एक उदाहरण देकर समझाया, जिसके बाद बच्चों ने अपने माता-पिता की गलत अवाधारणाओं को नकारा। तब जाकर मुझे यह एहसास हुआ कि समाज में फर्ज़ी खबरों का प्रभाव काफी व्यापक है और इस समस्या का समाधान नई पीढ़ी से जुड़ा हुआ है।

फेक न्यूज़ के बारे में लोगों को जागरूक करने का काम

इसके बाद उन्होंने स्टूडेंट्स को बताया कि इंटरनेट कैसे काम करता है और किस तरह लोग सोशल मीडिया के द्वारा फर्ज़ी लिंकों के ज़रिए अपनी राय बना रहे हैं। मीर ने आगे अपनी बात रखते हुए बताया कि हमने स्टूडेंट्स का एक टेस्ट लिया, जिसके अंतर्गत उन्हें कोलगेट का बॉक्स दिया गया और स्टूडेंट्स से बोला गया कि इसके बारे में आपको एक फैक्ट बताना है।

एक स्टूडेंट ने ब्रांड का नाम बताया, दूसरे ने उसका वज़न और तीसरे ने टूथपेस्ट। जब चौथे स्टूडेंट को इसे खोलकर चेक करने को बोला गया तो उसके अंडर फेवीक्विक निकला। इस गलत सूचना का ज़िम्मेवार कौन है? इस समस्या के लिए हर वह इंसान दोषी है, जो मैसेज को बिना जांच किए उसे आगे बढ़ाता है।

समस्या फर्ज़ी खबर नहीं, समस्या फर्ज़ी खबर के प्रति जागरूकता है

वह आगे कहते हैं कि फर्ज़ी खबर समस्या नहीं है, समस्या है तो फर्ज़ी खबरों के प्रति जागरूकता की कमी। गलत सूचनाओं की समस्या से निपटने के लिए संविधान के आर्टिकल 51A (H) को माध्यम बताया, जिसमें यह आदेश दिया गया है कि वैज्ञानिक प्रवृति, मानवतावाद, जांच और सुधार की भावना का विकास भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।

सत्र के अंत में उन्होंने इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा कि आपको पेशेवर तौर पर फैक्ट चेकर बनने की ज़रूरत नहीं है, सिर्फ आप सूचना भेजने वाले से नम्रता से उसके सोर्स के बारे में जानकारी हासिल करें ।

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