बहुत ही दुखद परिस्थिति और परिदृश्य है कि आज सरेआम मां भारती का हृदय लहू-लूहान हो रहा है। यह डेटा है भारत के दामन पर काले धब्बे की तरह कि सैंकड़ों की तादात में बलात्कार हो रहें है, उनमे से कितनो की नृषंस हत्या कर दी जाती है।
हम दो चार दिन मोमबत्ती जलाते हैं, विरोध दिखाते है, उसके बाद फिर से अपने रोज़मर्रे के कामों में व्यस्त हो जाते हैं। हम 2012 कैसे भूल सकते हैं जब दिल्ली में पैरामेडिकल की छात्रा निर्भया की अस्मिता को तार-तार किया गया और उसके बाद उसकी नृषंस हत्या कर दी गई।
क्यों महिलाएं देश में सुरक्षित नहीं?
सवाल वहीं के वहीं है कि यह जो हमारे सामाज पर, हमारे देश पर जो यह काला धब्बा है, वह दिन प्रतिदिन क्यों गहराता जाता है? ऐसा वह कौन सा फैक्टर है, जो ऐसी मानसिकता को उकसाता है? क्या हमारा सिस्टम लचर है? उसका प्रभाव है या फिर हमारे कानूनी हवालात में सैंकड़ों छिद्र है, उसका परिणाम है?
खैर सवाल तो है, जो काफी भयावह है,जो शायद हमारे लिए सायनाईड प्वायज़न से ज़्यादा ज़हरीला है। जो हमारे सामाज,हमारे देश को खाए जा रहा है।
अभी हाल ही में हैदराबाद में एक डॉक्टर की रेप के बाद हत्या कर दी गई और पहचान छुपाने के लिए जला दी गई। उस पर खाज यह कि पुलिस की कार्यवाही शुरुआत में संदेहास्पद है।
अब तो सवाल उठना लाज़मी ही है कि कहीं ना कहींं हमारा सिस्टम लचर है, कामचोर है और सबसे बड़ी बात कि राजनीति के इशारे का मुरीद है।
हमारा संविधान दोषियों को बचा लेता है
दूसरा सबसे बुरी बात यह है कि हमारा संविधान अपराधियोंं केे लिए मुुफीद है। हमारा कानून कहता है कि सौ अपराधी बच जाए, लेकिन एक निरपराध को सज़ा ना हो। बस यही बात है कि अपराधियों के लिए हमारा संविधान और कानून अभेद कवच बन जाता है।
हमें, हमारे सामाज, हमारे देश और हमारे सरकार को जागने की ज़रूरत है, जो कि कुंभकर्ण की मीठी निंद सो रही है। तभी तो हमारा विश्व गुरु बनने का सपना साकार होगा।