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12 मिनट में गंगा में 2 किमी की दूरी तय करने वाले पैरा एथलीट शम्स आलम

महज़ 12 मिनट में गंगा में तैराकी के ज़रिए 2 किलोमीटर की दूरी तय करने वाले पैरा एथिलिट शम्स आलम रविवार को YKA Summit में मौजूद थे। बिहार के मधुबनी में जन्मे शम्स ने वहां मौजूद युवाओं के साथ पैरा स्वीमर के रूप में अपने सफर की कहानी साझा करने के साथ ही उन्हें भी अपना सपना पूरा करने के लिए प्रेरित किया।

शम्स अपने स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधित्व करते हुए राजकीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 2010 तक 40 से ज़्यादा मेडल जीत चुके थे।

बिहार में शिक्षा के अभाव के कारण उन्हें मुंबई जाकर पढ़ाई करनी पड़ी और मुंबई में ही वह अपनी आगे की पढ़ाई करके मकैनिकल इंजीनियर बने। इंजीनियर बनने के साथ-साथ उन्होंने खेल में भी अपना करियर जारी रखा। उस वक्त वह कराटे खेलते थे।

शम्स ने अपनी कहानी बताते हुए बताया कि 2010 में उनकी रीढ़ की हड्डी में एक गांठ आ गई, जिसका उन्हें एक बड़ा ऑपरेशन करवाना पड़ा। डॉक्टरों का कहना था कि 10 से 15 दिनों में वह बिल्कुल ठीक हो जाएंगे।

शम्स ने कहा कि हमने भी पढ़ें-लिखे लोगों की तरह उन डॉक्टरों की बात मान ली लेकिन उसके बाद मैं आज तक अपने पैरों पर कभी खड़ा नहीं हो पायाशम्स का कहना है कि यह उनकी ज़िन्दगी का यह सबसे भयावह सच था।

शम्स बताते हैं कि 2010 के बाद वह रिहैबिलिटेशन सेंटर गए तो, वहां कुछ लोगों से बातचीत करने पर उन्हें पता लगा कि वह डिसेबिलिटी के बावजूद तैराकी कर सकते हैं। तैराकी उनके लिए एक व्यायाम की तरह कार्य भी करेगी। तब से उन्होंने तैराकी में अपना करियर शुरू किया और वह उसमें सफल भी रहें।

शम्स राजकीय, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तैराकी करते हैं। उन्होंने गर्व के साथ बताया,

2014 में एक वक्त ऐसा आया, जब उन्होंने तैराकी में सबसे ऊंचा रिकॉर्ड अपने नाम किया, जो कि लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और वर्ल्ड रिकॉर्ड एकेडमी में भी दर्ज है।

शम्स कहते हैं कि वह अभी भी तैराकी कर रहे हैं और हाल ही में उन्होंने “गंगा नदी में सबसे तेज़ तैराकी” करके एक नया रिकॉर्ड अपने नाम किया है, जिसमें उन्होंने 12 मिनट में 2 किलोमीटर गंगा का सफर तय करके विश्व में अपनी अलग पहचान बनाई है।

श्रोताओं का ध्यान अपनी और आकर्षित करते हुए उन्होंने बताया कि 2018 में US Department Of State Global Mentoring Program में भारत से उनका भी चयन हुआ (पूरे विश्व से 17 लोगों का चयन किया गया था)।

उन्होंने देखा कि किस तरह से वहां बच्चों से लेकर नौजवान और बूढ़े तक खेल में रुचि रखते हैं और उनकी प्रतिभा को वहां निखारा भी जाता है। उन्हें एक बास्केटबॉल चैंपियनशिप को दखने का मौका भी मिला, जहां एक दो नहीं बल्कि 956 पर्सन विथ डिसेबिलिटी भाग लेने आए थे।

चूंकि वह भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए वहां पहुंचे थे ,तो उन्होंने उस चैंपियनशिप के अध्यक्ष से बातचीत की, उनसे पूछा कि इतनी संख्या में पर्सन विथ डिलेबिलिटी भाग क्यों ले रहे हैं? तो उन्हें जवाब मिला कि एक तो उनकी रुचि है, दूसरी कि जो यहां अच्छा खेलेंगे, उनका चयन करके राष्ट्रीय स्तर की टीम गठित की जाएगी, जो आगे अतंरराष्ट्रीय मैच खेलेगी

उन्होंने बताया कि वह टैक्सेस की एक यूनिवर्सिटी में पहुंचे, जहां उन्हें रियो ओलंपिक में स्वर्ण पदक हासिल करने वाले पैरा ओलंपियन से मिलने का मौका मिला और वह उनसे काफी प्रभावित भी हुए।

बात करोड़ों की और काम एक रुपए का भी नहीं

शम्स कहते हैं कि 2017 में भारत के खेल मंत्री ने बताया कि अब भारत में भी पैरा खिलाड़ियों के लिए एक सेंटर खुलेगा, जिसे सुनकर उन्हें बहुत खुशी हुई। उन्हें लगा कि चलो कुछ अच्छा होने जा रहा है, पैरा खिलाड़ियों के लिए।

वह कहते हैं कि 2019 में फिर खेल मंत्री वही घोषणा दोबारा करते हैं कि एक अत्याधुनिक सेंटर बनाया जाएगा लेकिन उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है। मंत्री जी ने वहीं घोषणा दोबारा कर दी जो 2017 में पहले ही हो चुकी है। बात करोड़ों की और काम एक रुपए का भी नहीं।

शम्स ने कहा कि सरकार द्वारा ‘खेलो इंडिया’ मुहिम की वह सराहना करते हैं लेकिन उन्होंने सरकार से, भारत की राष्ट्रीय खेल समिति से यह अपिल की कि पैरा खिलाड़ियों के लिए भी ज़मीनी स्तर पर काम करने की ज़रूरत है। 

उन्होंने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि आज भी पर्सन विथ डिसेबिलिटी के लिए ऐसा कुछ नहीं है। “खेलोगे कूदोगे बनोगे नवाब” इस कथन को सिद्ध करने के लिए अभी कदम उठने बाकी हैं।

उन्होंने Youth Ki Awaaz सम्मिट में कहा कि हम बहुत सौभाग्यशाली हैं कि हमारे देश में पर्सन विथ डिसेबिलिटी के उत्थान हेतु अधिकार बहुत जल्द आ गए हैं। शम्स आलम ने सरकार से आग्रह किया कि यदि हमारे यहां ये अधिकार हैं, तो इसको सही से स्थापित भी किया जाए, इसे ज़मीनी स्तर पर लाया जाए।

अपनी बात को समाप्त करते हुए उन्होंने कहा कि यदि खेलो इंडिया जैसे अभियान देश में चल रहे हैं, तो उनमें पर्सन विथ डिसेबिलिटी वाले बच्चों को भी लाया जाए, ताकि ऐसे बच्चे विश्व में भारत का नाम रौशन कर सकें

 

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