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#YKASummit: “लड़कियों के लिए स्वच्छ शौचालय के बिना ‘बेटी पढ़ाओ’ संभव नहीं”

पिछले कुछ समय में समाज में कई सकारात्मक बदलाव आए हैं और इन्हीं सकारात्मक बदलावों में एक बदलाव पीरियड्स को लेकर खुलकर चर्चा भी है।

लोग पहले पीरियड्स पर बात करने से झिझकते थे मगर आज इन मुद्दों पर खुलकर बातें हो रही हैं, बीते वर्षों में इन मुद्दों पर कई फिल्में भी बनी हैं। बावजूद इन सबके अभी भी पीरियड स्वच्छता पर बड़े स्तर पर जागरूकता की कमी दिखती है।

दिल्ली के अंबेडकर इंटरनैशनल सेंटर में आयोजित Youth Ki Awaaz Summit 2019 के “पीरियड पाठ” पैनल में “Red Is New Green” की फाउंडर दिआने द मेनेज़ेस (Deane De Menezes) और ग्लोबल इंटरफेथ वॉश अलाइंस (Global Interfaith Wash Alliance) की जेनरल सेक्रेटरी साध्वी भगवती सरस्वती ने इन्हीं मुद्दों पर कई ज़रूरी बातें की।

पीरियड्स पर बात करते हुए मेनेज़ेस ने कहा कि बहुत लोगों के पास पर्याप्त सैनिटेशन की व्यवस्था नहीं है। मेरे पास प्रिविलेज था, इसलिए मुझे लगा कि मुझे इस दिशा में कुछ काम करना चाहिए और मैंने “Red Is New Green” की शुरुआत की।

साध्वी ने बताया कि लोग अमरत्व, स्वर्ग और नर्क की बात करते हैं। जबकि हमें अपने जीने के तरीकों में बदलाव करके अपने समाज को आदर्श समाज बनना होगा। इसके लिए समाज से भेदभाव को हटाना ज़रूरी है। इन चीज़ों के लिए स्वच्छता और शिक्षा बेहद ज़रूरी है। उन्होंने पीरियड्स और स्वच्छता पर बात करते हुए कहा,

एक महिला औसतन अपनी ज़िंदगी के 7 साल मेन्स्ट्रुएट करते हुए बिताती है। हम स्वच्छता की बात करते हैं और 2200 करोड़ सैनेटरी पैड खुले में फेंके जा रहे हैं, जो हमारे पर्यावरण के लिए भी हानिकारक है।

उन्होंने आगे अपनी बात बढ़ाते हुए कहा कि धर्म क्या है? अपनी माँ, बहन, बेटियों को स्वस्थ, स्वच्छ और सुरक्षित वातावरण देकर समाज को सशक्त करना ही धर्म है। हमारी ग्लोबल इंटरफेथ वॉश अलायन्स इसी को लेकर कम करती है।

पीरियड्स के मिथ्यों तो तोड़ना ज़रूरी है

मेनेज़ेस बताती हैं कि उनकी संस्था किफायती कीमतों पर सैनेटरी पैड्स उपलब्ध कराती है। लोगों को मेन्स्ट्रुअल हाइजीन, मेन्स्ट्रुअल कप्स और इको फ्रेंडली सैनिटेशन के बारे जागरूक करने की ज़रूरत है। हमें रुढ़िवादी सोच से निकलकर मिथ्यों को तोड़ना ज़रूरी है, जो सामज द्वारा बनाया गया है।

साध्वी बताती हैं कि वह एक मिशन पर हैं और यह मिशन है पीरियड्स से जुड़े मिथ्यों को तोड़ने का मिशन।

I am down नहीं I am up होना चाहिए

मैंने अक्सर लड़कियों को पीरियड्स के समय “I am down” कहते सुना है, जबकी यह “I am up” होना चाहिए। हम  मेंस्ट्रुएट करते हैं, क्योंकि भगवान ने हमें ऐसा बनाया है, हमें उतना स्ट्रेंथ दिया है। जहां मेंस्ट्रुएट होता है, वहां क्रिएशन होता है। सभी महिलाएं भगवान का दिव्य कृत हैं, पीरियड्स पूरी तरह प्राकृतिक है, इसमें कोई दोष नहीं है।

समाज में औरतों को बराबरी का दर्जा आज भी नहीं मिल पा रहा है। पीरिड्स की वजह से बच्चियां स्कूल नहीं जाती हैं, क्योंकि हमारे पास स्वच्छ शौचालय की व्यवस्था नहीं है। आज महिला सश्कितकरण के लिए यह समझना होगा कि महिलाओं को शिक्षा के साथ ही स्वच्छ शौचालय भी उपलब्ध कराना होगा, तभी “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” संभव हो सकता है।

महिलाओं को पीरियड्स को लेकर होने वाली समस्या पर मेनेज़ेस बताती हैं कि महिलाएं हर महीने ब्लीड करती हैं, लेकिन सभी के लिए संभव नहीं है कि वह उस वक्त सही प्रोडक्ट खरीद सकें। ऐसे में कई बार वह गंदे कपड़े का इस्तेमाल करती हैं, परिणामस्वरूप उन्हें रिप्रोडक्टिव हेल्थ से जुड़ी बीमारीयों का सामना करना पड़ता है। इस दिशा में हमें अपनी ज़िम्मेदारी निभानी ज़रूरी है।

पुरुषों को भी इस मुद्दे पर खुलकर बात करनी होगी

पुरुषों को इन मुद्दों से जोड़ने के सवाल पर साध्वी कहती हैं,

पुरुषों को भी इस बारे में सोचना होगा। जब तक वे यह सोचते रहेंगे कि यह उनकी समस्या नहीं है तब तक कुछ नहीं बदलेगा। हमें समाज की बंदिशों से छुटकारा पाना होगा, क्योंकि यह पूरी दुनिया की समस्या है।

वह आगे बताते हुए कहती हैं कि जब हम महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं, तो पूरे समाज को मिलकर काम करना होगा। इसमें सबसे बड़ी भूमिका युवा निभा सकते हैं। उन्होंने अंत में कहा कि यूथ की आवाज़ को यूथ के एक्शन में बदलने की ज़रूरत है। 

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रिपोर्ट- अंकुर त्रिपाठी, मनीष

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