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“गणित और विज्ञान की तरह ही हमें बचपन से संवेदनाओं को भी सीखना होगा”

शांतनु पॉल ने Youth Ki Awaaz Summit के पावर ऑफ एम्पैथी वर्कशॉप के दौरान लोगों को एक सिचुएशन दी। उन्होंने लोगों से कहा कि आपको आपके किचन में एक पत्र मिलता है। उस चिट्ठी में लिखा है कि आपको किसी अनिश्चित जगह पर अकेले जाना है और आपको नहीं पता कि कहां जाना है। वापस आने की कोई उम्मीद भी नहीं है, साथ ही आप अपने बैग-पैक में सिर्फ 7 महत्वपूर्ण चीज़ रख सकते हैं।

शांतनु पॉल

फिर इसमें थोड़ा बदलाव करते हुए उन्होंने कहा कि आप अपने साथ अगर तीन लोगों को ले जा सकते हैं, तो किसे ले जाएंगे? दोबारा बदलाव करते हुए उन्होंने कहा कि आप अकेले जा रहे हैं, आपको पता नहीं कि आप कहां जाने वाले हैं और वापस लौटेंगे भी या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं है। इसके लिए आपको अपने जीवन के सबसे खास इंसान को पत्र लिखना होगा, फिर उन्होंने सबको पत्र लिखने को कहा।

पत्र लिखने के बाद उन्होंने सबको एक-एक करके उस पत्र को पढ़ने के लिए बोला और यह पल सबसे ज़्यादा भावनात्मक था। सबकी भावनाएं पत्रों के माध्यम से झलक रही थीं। मौजूद लोगों में कुछ लोग इतने भावुक हुए कि वह भरी महफिल में पत्र को पढ़ते वक्त रोने लगे।

शांतनु पॉल YKA Summit में युवाओं के साथ यह वर्कशाप ले रहे थे। वह वर्तमान में अशोका इनोवेटर्स फॉर द पब्लिक, साउथ एशिया के वेंचर टीम को लीड कर रहे हैं।

वर्कशॉप अटेंड करते लोग

उन्होंने इस वर्कशॉप में कहा,

हमें दुनिया में बदलाव के लिए सरकार या किसी दूसरे व्यक्ति पर निर्भर ना रहते हुए खुद उस दिशा में बदलाव लाना होगा। समाज में ऐसी व्यवस्था लानी होगी, जिससे सभी लोग भविष्य में चेंजमकर बने।

इसके लिए हम सबको टीम वर्क, सहयोगात्मक नेतृत्व (Collaborative leadership), समस्या का रचनात्मक हल (Creative problem solving) और सहानुभूति (Empathy) में महारत हासिल करनी होगी, तभी जाकर हम समाज में बदलाव ला सकते हैं।

सहानुभूति की भावना हमारे लिए बेहद ज़रूरी

शांतनु पॉल

उन्होंने आगे बताया कि जिस तरह से हम गणित, विज्ञान और अंग्रेज़ी को सीखते हैं, उसी तरह अपने जीवन के शुरुआती दौर से ही हमें एम्पैथी (सहानुभूति) को भी सीखना चाहिए।

उन्होंने वर्कशॉप में बताया कि एम्पैथी दो तरह के होते हैं,

कोग्निटीव एम्पैथी का मतलब है, किसी दूसरे की भावना को समझना और अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना। जबकि इमोशनल एम्पैथी किसी दूसरे की भावनाओं को उसी तरह महसूस करना है।

वह कहते हैं कि इमोशनल एम्पैथी कुछ हद तक ठीक है लेकिन इसका ज़्यादा होना बहुत ही खतरनाक है। अंत में उन्होंने बताया कि हमें लोगों के बर्ताव का विश्लेषण करना होगा, साथ ही वह ऐसा क्यों सोचते हैं, इसके बारे में भी सोचना चाहिए।

शांतनु सामाजिक उद्यमिता को बचपन से ही बढ़ावा देते आ रहे हैं। इससे पहले वह “वर्ल्ड विज़न ऑस्ट्रेलिया” समेत कई संगठनों के साथ काम कर चुके हैं। इसके बाद उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में “सेव द चिल्ड्रेन ऑस्ट्रेलिया यूथ मूवमेंट” की स्थापना की, जो युवाओं के सशक्तिकरण, मेंटोर्शिप तथा युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर भी काम करती है।

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