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नागरिकता कानून का विरोध आखिर क्यों?

नागरिकता कानून के विरोध में फैल रही हिंसा क्या सच में जायज है? कई राजनीतिक और सामाजिक तबके इस कानून को विवादित मान रहे हैं। कुछ दिन पहले संसद में शीतकालीन सत्र के दौरान नागरिकता संशोधन विधेयक पारित हुआ, जिसके विरोध में देश की राजधानी दिल्ली से हिंसा की आग तेज़ी से देश के कई राज्यो में फैलनी शुरू हो गई।

बात सिर्फ इतनी उठती है अगर यह बिल देशवासियों के हित में नही हैं तो खुले आम पुलिस पर पत्थरबाज़ी करना, बसों को जलाना या समाज में हिंसा फैलाकर न्याय के लिए आवाज़ उठाना क्या समझदारी है?

बात आखिर शुरू कैसे हुई? आखिर बिल देशवासियों के हित में कैसे नहीं है? विपक्षियों द्वारा यह आवाज़ कैसे बुलंद हुई कि धर्म के नाम पर यहां राजनीति हो रही है और मुसलमनों के साथ भेदभाव किया जा रहा है।

गौरतलब है कि नागरिकता कानून के तहत बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के 6 अल्पसंख्यक समुदायों (हिंदू, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई और सिख) को कुछ शर्तों के साथ भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी। शायद मुसलमानों को नागरिकता ना प्रदान की बात ही विरोध का कारण बन गई।

सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन। फोटो साभार- सोशल मीडिया

पहले नागरिकता संशोधन विधेयक 1955 में नागरिकता हासिल करने के लिए व्यक्ति को कम-से-कम 11 वर्ष भारत में रहना अनिवार्य था, जो कि बाद में घटाकर 6 वर्ष किया गया लेकिन नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 में अब इस अवधि को कम कर 5 वर्ष कर दिया गया है।

आलोचकों का यह तर्क है कि यह संशोधन, संविधान के अनुच्छेद ’14’ का उल्लंघन है, क्योंकि इसमें जाति, धर्म, लिंग, स्थान आदि के आधार पर भेदभाव का विरोध हो रहा है। जिस तरीके से दिल्ली के विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं द्वारा पुलिस अधिकारियों पर पथराव एवं समाज में अशांति फैलाकर सरकार से न्याय के लिए गुहार लगाना शायद गलत है।

इस तरह से आप सीधे न्याय व्यवस्था पर दोषारोपण कर समाज में धर्म के नाम पर हिंसा फैला रहे है। बात सिर्फ यहां इतनी है जो शायद हमे समझनी चाहिए कि NRC धर्म के आधार पर अवैध प्रवासियों को अलग नहीं करता है, बल्कि यह कानून मुसलमानों को शामिल नहीं करता है, क्योंकि उन 3 देशों में मुसलमानों की संख्या को देखते हुए उनको अल्पसंख्यको में शामिल नहीं किया जा सकता है।

जिसके विरोध की आवाज़ें खासकर नॉर्थ-ईस्ट में तो कोहराम मचा कर रखी है और प्रतिदिन सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। जिसके खिलाफ पुलिस यदि शांति व्यवस्था हेतु कोई प्रतिक्रिया कर रही है, तो उसे भी गलत ठहराना अब उचित ना होगा। इस बिल पर पुनः विचार हेतु सुप्रीम कोर्ट पर याचिका दी गई है, तो हमें देश की न्याय व्यवस्था पर भरोसा रख उसके फैसले तक इंतज़ार करना चाहिए।

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