अभी हाल ही में देश के जाने-माने उद्योगपति राहुल बजाज ने एक बयान दिया था, जिससे एक नया सियासी हंगामा शुरू हो गया है। वो यह है कि आज देश में सरकार की आलोचना करने में डर लगता है।
उन्होंने यह भी कहा कि यूपीए सरकार के समय हम यह सब कर सकते थे। राहुल बजाज के इस बयान से मैं सहमत हूं मगर देश में विरोध करने वाला माहौल नहीं है वाली बात से बात से पूरी तरह असहमत हूं।
इसके उदाहरण खुद राहुल बजाज साहब हैं, क्योंकि उन्होंने यह बयान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के सामने ही दिया है। ऐसे में यह कहना कि आप सरकार की आलोचना नहीं कर सकते, यह बात कुछ गले से उतरती नहीं है।
सबसे हैरानी तो सरकार को हर रोज़ कोसने वाले कुछ पत्रकारों और सिविल सोसाइटी वालों की बात पर हो रही है, जो राहुल बजाज के बयान पर सहमति दर्ज़ करते हुए कह रहे हैं कि हम सरकार की आलोचना नहीं कर सकते हैं।
मुझे याद आता है कि एक बार जोसफ स्टालिन की साली साहिबा ने उनको गुस्से से देख लिया था, तो स्टालिन ने उन्हें जेल भिजवा दिया था। वह भी कहीं और नहीं, बल्कि गुलाग्स में जो हिटलर के कंसंट्रेशन कैंप्स से भी ज़्यादा खतरनाक थे। वहीं, यहां आप देश के गृहमंत्री के सामने सरकार की आलोचना कर सकते हैं।
मैं कुछ मामले सामने रख रहा हूं जिन्हें पढ़कर लोगों को यह सोचना चाहिए कि क्या यूपीए सरकार के समय भी हमारी आवाज़ दबाने की कोशिश नहीं की गई थी?
इसी यूपीए सरकार ने बनाया था सेक्शन 66 ‘A’
जब भी यूपीए सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों का ज़िक्र होगा, तब आईटी एक्ट के सेक्शन 66 ‘A’ का भी ज़िक्र होगा जिसमें अगर आप सोशल मीडिया जैसे फेसबुक और ट्विटर पर सरकार की आलोचना करने पर तुरंत गिरफ्तार हो सकते थे।
जस्टिस नरीमन की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट बेंच ने साल 2016 मैं इस कानून को संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताकर खारिज़ कर दिया था मगर तब तक कई लोग इसकी वजह से गिरफ्तार हो चुके थे। यूपीए के समय के ही कुछ मामले आपको सुनता हूं।
- अप्रैल 2012 में पश्चिम बंगाल सरकार ने एक शिक्षक को गिरफ्तार किया था। उनका गुनाह यह था कि उन्होंने ममता बनर्जी का एक कार्टून सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया था।
- अक्टूबर 2012 की बात है जब दक्षिण भारत के शहर पांडिचेरी में 46 वर्षीय एक व्यापारी को तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम की आलोचना करने वाले एक ट्वीट के लिए गिरफ्तार किया गया था।
- उसी साल जब मुंबई में शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे की मृत्यु हुई थी, तब मुंबई बंद का ऐलान किया गया था। मुंबई बंद के खिलाफ शाहीन दाधा ने फेसबुक पर पोस्ट लिखा था जिसे रेणु श्रीवास्तव नाम की एक महिला ने लाइक किया था। इस मामले में दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया था।
कमल भारती की गिरफ्तारी का मामला
यह मामला 2013 का है। हालांकि इसका यूपीए से नहीं, बल्कि समाजवादी पार्टी से लेना-देना है। हुआ यूं कि उत्तर प्रदेश के रामपुर शहर में कमल भारती नामक सामाजिक कार्यकर्ता रहा करती थीं। उसी साल एक ईमानदार आईएएस अफसर दुर्गा शक्ति नागपाल का तबादला हुआ था जिसकी उन्होंने जमकर आलोचना की थी। यूपी पुलिस ने उन्हें उनके घर से गिरफ्तार कर लिया था।
बाद में कोर्ट ने उनको रिहाई दिलवाई और साथ मे पुलिस को फटकार लगाई। सबसे बड़ी बात यह कि कमल भारती जी ने अपनी गिरफ्तारी का इल्ज़ाम उस वक्त के यूपी सरकार के बड़े मंत्री आज़म खान पर लगाया था।
असीम त्रिवेदी की गिरफ्तारी क्या भूल गए हैं हम?
यह काम यूपीए सरकार के कार्यकाल में हुआ था। साल 2012 में देश के मशहूर कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार की आलोचना करने पर गिरफ्तार कर लिया गया था। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कंडेय काटजू ने प्रेस क्लब में एक न्यूज़ चैनल को दिए अपने बयान में कहा था, “राजनेताओं को सहनशील होना सीखना चाहिए। यह कोई तानाशाही नहीं है।”
ऐसे और भी मामलों के बारे की जानकारी मुझे है मगर उनका ज़िक्र अभी किया नहीं जा सकता है। मैं एक बात ईमानदारी से कहता हूं कि डॉ. मनमोहन सिंह के सामने तीखे सवाल तब अगर अर्नब गोस्वामी पूछ सकते थे, तो आज भी रवीश कुमार जैसे पत्रकार वही काम कर रहे हैं।
पिछले दिनों जेएनयू के स्टूडेंट्स ने सरकार के खिलाफ तगड़े प्रदर्शन किए थे जिसके बाद भारत सरकार ने उन पर सिर्फ डंडे बरसाए थे, जिसकी भारत में हर तरफ आलोचना होने लग गई थी।
ऐसे में मुझे चीन की याद आती है, जहां सन् 1989 में थियानमेन नरसंहार को अंजाम दिया गया था जिसमें तब के राष्ट्रपति ने विरोध कर रहे स्टूडेंट्स पर ना सिर्फ मशीन गन्स चलावाई थी, बल्कि कई स्टूडेंट्स पर टैंक भी चलवा दिए थे।
मेरे देश में आज भी सरकार की खुली आलोचना होती है। इसलिए राहुल बजाज के इस बयान से मैं बिल्कुल भी सहमत नहीं हूं कि आज मेरे देश में आलोचना करने से डर लगता है। मैं हमेशा इस बात को गलत ही मानता रहूंगा। राहुल बजाज जी के विचार का सम्मान है मगर मैं उससे सहमत नहीं हूं।