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चार दशकों बाद दिल्ली की इस अवैध बस्ती में मिल गया हर घर को शौचालय

दिल्ली के सफेदा बस्ती स्लम एरिया में पांच साल पहले निजी शौचालय नहीं था। यहां की करीब पांच सौ की आबादी एक कम्यूनिटी शौचालय के भरोसे थी। निजी शौचालय के निर्माण के बाद से लोगों की ज़िंदगी में शिक्षा-दीक्षा, स्वास्थ्य, साफ-सफाई, महिला सुरक्षा, आर्थिक प्रगति और सामाजिक उत्थान से लेकर हर आयाम बदलाव आया है।

दिल्ली स्थित सफेदा बस्ती

चार दशकों से बसी इस बस्ती में शौचालय की समस्या

यमुना नदी के किनारे गीता कॉलोनी के मध्य में करीब चार दशकों से बसा है, सफेदा बस्ती स्लम एरिया। पूर्व में सीवर लाइन ना होने के कारण निजी शौचालय नहीं थे। एक कम्यूनिटी शौचालय था, जिसे लेकर बस्ती वाले हमेशा नाखुश रहते थे। यह रात में दस बजे बंद कर दिया था, जबकि सुबह छह बजे खोला जाता था।

इसी बस्ती की निवासी दुर्गा देवी कहती हैं,

रात में शौचलय जाने में डर लगता था। कहीं कोई घटना ना घट जाए। शराबी घूमते रहते थे। शौचालय चैबीस घंटे खोलने की मांग करते तो सरकार स्टाफ का रोना रोती। करीब 500 लोगों पर 20 टाॅयलेट के कम्यूनिटी शौचालय में सुबह के समय दो-दो घंटे तक लाॅइन लगाना पड़ता था।

वहीं 13 साल की सुहाना कहती हैं,

हम हमेशा स्कूल लेट पहुंचते थे, जिस कारण से हमें डांट पड़ती थी।

यहां बस्ती में हर घर में लोग लेट होने के कारण परेशान थे। सेंटर फाॅर अरबन एंड रीज़नल एक्सिलेंसी ने 2014 में सामुयादिक विकास कार्यक्रम के तहत पानी को लेकर स्वच्छता अभियान शुरू किया।

प्रतीकात्मक तस्वीर

साफ पानी से ज़्यादा बड़ी समस्या, शौचालय की

समुदाय के साथ बातचीत के बाद पता चला कि बस्ती में साफ पानी से ज़्यादा बड़ी समस्या, शौचालय की है क्योंकि, अवैध कॉलोनी होेने के कारण बस्ती में सीवर लाइन नहीं है।

क्योर संस्था ने दिल्ली अरबन शेल्टर इंप्रूमेंट बोर्ड, दिल्ली जल बोर्ड और ईस्ट दिल्ली म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के साथ मिलकर सीवर लाइन निर्माण की योजना बनाई। यहां सीवर लाॅइन बिछाना आसान नहीं था। नींव स्थायी नहीं थे। हमेशा डर लगा रहता था कि कहीं घर ढ़ह ना जाए?

सीवर लाइन बिछाने में कई प्रकार की परेशानियां

बस्ती में सीवर लाइन बिछाने में कई प्रकार की परेशानियां थीं।

पहला अवैध कॉलोनी होने के कारण कोई भी सरकारी सिस्टम यहां सीवर लाइन नहीं बिछा सकता था। जबकि, इन्हें बुनियादी सुविधाएं भी देना ज़रूरी था। इसी पशोपेश का लाभ क्योर को मिला। क्योर ने पूर्वी दिल्ली नगर निगम और जल बोर्ड से आग्रह किया कि उन्हें अस्थायी सीवर लाइन बिछाने और उसे मुख्य सीवर से जोड़ने मात्र की इजाज़त दी जाए।

दूसरी समस्या यह थी कि सीवर लाइन का रखरखाव भी सरकारी सिस्टम नहीं कर सकता था। इसीलिए, क्योर के निर्देशन में बस्ती वालों ने एक मैन्टेनेंस कमिटी बनाई, जो विगत पांच सालों से सीवर लाइन की रखरखाव का काम देखती है।

अब बारी आई सीवर लाइन बिछाने की। इसमें दिक्कत यह थी कि यह बस्ती स्थायी नहीं है, यानी यहां के घरों की नींव भी अस्थायी थे। ऐसे में सीवर ज़्यादा गहरा भी नहीं हो सकता था।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

बिना मशीन के प्रयोग के सीवर लाइन बिछाई

क्योर ने इंजीनियरिंग के माॅडल को और बेहतर बनाना शुरू किया और मात्र एक से तीन फिट गहरी खुदाई की। इसमें भी मशीनों का प्रयोग नहीं किया गया, जिससे घरों की नींव पर कोई प्रभाव ना पड़े।

सामूहिक पहल पर 110 मीटर लंबा एक सीवर लाइन बिछाई गई। सीवर लाइन पर आने वाले खर्च के लिए एक सामूहिक खाता बनाया गया। इस निजी सीवर लाइन की देखभाल बस्ती के लोग ही करते हैं। इसके लिए एक कमेटी बनाई गई है, जो मेंटेनेंस का कार्य देखती है।

सीवर से जुड़े परिवार हर माह 20 रूपये देते हैं, जिससे लाइन में किसी प्रकार की खराबी को ठीक किया जा सके। अगर कोई अपने घर में शौचालय बनाता है, तो वह सीवर लाइन से शौचालय के पाइप को जोड़ सकता है, लेकिन इसके लिए उसे एक मुश्त राशि 4,500 रूपये देनी पड़ती है।

अब खुश हैं बस्ती वाले

53 वर्षीय इंदू उन लोगों में हैं, जिन्होंने सीवर लाइन के संघर्ष में दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ी। कहती हैं कि जब कम्यूनिटी शौचालय का मोटर खराब हो जाता था, तो तीन चार दिनों तक पानी नहीं आता था।

प्रतीकात्मक तस्वीर

45 वर्षीय पूनम कहती हैं कि पहले घर के अंदर और आसपास बहुत गंदगी रहती थी। मच्छर और मक्खियां भी बहुत ज़्यादा थे, लेकिन अब घर में शौचालय होने से सफाई बढ़ गई है। अब समय पर स्कूल और काम करने जाते हैं। लड़के को नौकरी में जल्दी तरक्की मिली है।

दुर्गावती कहतीं हैं,

हम अक्सर रात में कम भोजन करते। कम खाने के कारण स्वास्थ्य संबंधी परेशानी भी होने लगी थीं। पेट दर्द, उल्टी, दस्त, गैस बनना आदि ऐसी ढे़रों बीमारियां थीं, जिससे परिवार का हर सदस्य पीड़ित था। लेकिन, अब निजी शौचालय के कारण ढे़रों परेशानियां दूर हो गईं हैं।

 

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