फिनलैंड की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता 34 वर्षीय सना मारिन गत 8 दिसंबर को उस देश की प्रधानमंत्री के रूप में चयनित की गईं। वह दुनिया की सबसे युवा प्रधानमंत्री हैं। उनके पूर्ववर्ती एंटी रिने ने देश में डाक संबंधित हड़ताल को संभालने के मामले में गठबंधन सदस्यों के बीच विश्वास खोने पर अपना इस्तीफा दे दिया था।
रिने के इस्तीफे के बाद सोशल डेमाक्रेटिक पार्टी ने अन्य चार दलों (केंद्र पार्टी, ग्रींस पार्टी, वाम गठबंधन पार्टी और स्वीडिश पीपुल्स पार्टी) की मदद से अगली सरकार बनाने का प्रस्ताव पेश किया। मज़ेदार बात यह है कि मारिन के समर्थन वाली अन्य चारों पार्टियों की प्रमुख भी महिलाएं ही हैं। मारिन फिनलैंड की तीसरी महिला प्रधानमंत्री होंगी।
उत्तर यूरोप का एक गणराज्य है फिनलैंड
- राजधानी: हेलसिंकी है
- सीमाएं: पश्चिम में स्वीडन, पूर्व में रूस और उत्तर में नार्वे
- आबादी: करीब 53 लाख
- क्षेत्रफल की दृष्टि से: यूरोप का आठवां सबसे बड़ा देश
- जनघनत्व के आधार पर: यूरोपीय संघ में सबसे कम आबादी वाला देश
- मातृभाषा: फिनिश तथा स्वीडिश (उल्लेखनीय है कि फिनलैंड ऐतिहासिक रूप से स्वीडन का एक हिस्सा था और 1809 से रूसी साम्राज्य के अंतर्गत एक स्वायत्त ग्रैंड डची था। रूस से गृहयुद्ध के बाद 1917 में फिनलैंड ने स्वतंत्रता की घोषणा की। फिनलैंड 1955 में संयुक्त राष्ट्र संघ में, 1969 में ओईसीडी और 1995 में यूरोपीय संघ और यूरोजोन में शामिल हुआ।)
आसान नहीं थी राहें सना के लिए
सना मारिन के लिए फिनलैंड के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने का रास्ता बेहद आसान भी नहीं था। इसके लिए उन्हें लंबा संघर्ष करना पड़ा और इस संघर्ष की पहली शुरुआत हुई खुद उनके घर से।
सना दरअसल एक ‘रेनबो फैमिली’ में पली-बढ़ी हैं और उनकी परवरिश समलैंगिक अभिभावकों द्वारा की गई है। वह हेलंसिकी के एक किराये के घर में अपनी माँ और उनकी महिला पार्टनर के साथ रहती थीं। एक स्थानीय चैनल (Menaiset Website in Finnish, 2015) को दिए अपने इंटरव्यू में सना ने बताया कि वह बचपन में खुद को ‘अदृश्य या अजूबा’ महसूस करती थीं, क्योंकि वह खुले तौर पर अपने परिवार के बारे में बात नहीं कर सकती थीं।
कारण, समलैंगिकता को भले ही कई देशों में आज कानूनी रूप से मान्यता दे दी गई हो लेकिन उसकी पूर्ण सामाजिक मान्यता की राह में अभी भी कई बाधाएं हैं। इस वजह से समलैंगिक बच्चों के मानसिक स्वास्थ पर इसका नकारात्मक असर पड़ता है। हालांकि अपने बचपन की चुनौतियों को याद करते हुए सना कहती हैं,
उस वक्त वह चुप्पी मेरे लिए बेहद कठिन थी, क्योंकि उससे मुझे ऐसा महसूस होता था जैसे मैं ‘अदृश्य’ हूं। ऐसा लगता था जैसे मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है और मैं किसी काम के योग्य ही नहीं हूं। समाज में भी हमारे परिवार को वास्तव में एक ‘परिवार’ के तौर पर गिना ही नहीं जाता था। ना ही हमें दूसरों के बराबर का समझा जाता था लेकिन इन कारणों से मुझे ज़्यादा परेशान नहीं किया गया, बल्कि बचपन में तो मैं बेहद निर्भीक और ज़िद्दी थी। किसी भी बात को आसानी से नहीं मानती थी।
जानें कौन हैं सना मारिन
- पूरा नाम: सना मिरला मारिन (समलैंगिक माता-पिता की संतान)
- जन्म तिथि: 16 नवंबर 1985 (आयु 34 वर्ष)
- जन्म स्थान: हेलसिंकी, फिनलैंड
- राजनीतिक दल: सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी
- पति: मार्कस राईकोन
- बच्चे: 1
- जन्म: 16 नवंबर, 1985 (फिनलैंड)
- वर्ष 2015 में: संसद सदस्य के रूप में निर्वाचित
- वर्ष 2019 में: पहली बार सरकार में शामिल (परिवहन व संचार मंत्री)
- वर्ष 2012 में: स्नातक की डिग्री प्राप्त की (प्रशासनिक विज्ञान में टैंपियर विश्वविद्यालय से)
- वर्ष 2017 में: सिटी काउंसिल में चयनित
परिवार का मिला हमेशा साथ
सना ने किशोरावस्था एक बेकरी में काम करते हुए गुज़ारी है। वह अपने परिवार की पहली व्यक्ति थीं, जो यूनिवर्सिटी तक पहुंची। सना की मानें तो उनकी माँ हमेशा उनके सपोर्ट में खड़ी रहीं। आज सना खुद एक डेढ़ वर्षीय बेटी (एम्मा अमालिया मैरिन) की माँ हैं।
अपने मातृत्व के सुखद पलों को अक्सर वह अपने इंस्टाग्राम और ट्विटर अकाउंट पर शेयर करती रहती हैं फिर चाहे वह बेबी बंप की तस्वीर हो या फिर उनके ब्रेस्टफीडिंग अथवा एक वर्किंग मदर के तौर पर अपनी बेटी के साथ समय बिताने के दौरान की। बता दें कि उन्होंने अपने बचपन के फ्रेंड मारकस रेकोने से विवाह किया है।
आज के इंस्टाग्राम जेनरेशन का प्रतिनिधित्व करने वाली सना नियमित रूप से अपने सोशल मीडिया अकाउंट को अपडेट करती रहती हैं। यही नहीं, वह जब अपना ऑफिशियल जॉब नहीं कर रही होती हैं, तो बिल्कुल एक आम महिला की तरह अपने जीवन के विभिन्न पलों को हल्के-फुल्के अंदाज़ में व्यतीत करती हैं।
सर्वोच्च सत्ता तक पहुंचने में परिवार की पहचान नहीं बनी बाधा
निश्चित रूप से परिवार को मिले इसे सपोर्ट का ही नतीजा है कि एक ‘टैबूड’ फैमिली से होने के बावजूद भी सना आज अपने देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हो पाई हैं। मात्र 53 लाख की आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले देश फिनलैंड ने आज महिला सशक्तिकरण सहित सामाजिक सशक्तिकरण की भी एक बेहतरीन मिसाल पेश की है।
ऐसा करके इसने भारत सहित ‘महाशक्ति’ कहे जाने वाले देशों को भी पीछे छोड़ दिया है। बता दें कि खुद को ‘सबसे विकसित’ कहने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में भी आज तक कोई महिला राष्ट्रपति चयनित नहीं हुई हैं। भारत के खाते में भी आज़ादी के 70 वर्षों बाद तक मात्र एक ही महिला प्रधानमंत्री और एक महिला राष्ट्रपति का नाम ही शामिल है।
दूसरी ओर सना मारिन फिनलैंड की तीसरी महिला प्रधानमंत्री हैं। इस तरह फिनलैंड में होने वाले इस सत्ता परिवर्तन ने दुनिया को कई प्रमुख संदेश दिए हैं-
- ‘किसी इंसान की प्रतिभा को इस बात से नहीं आंकना चाहिए कि वह किस पृष्ठभूमि से आया है, बल्कि उसकी वर्तमान उपलब्धियों के आधार पर उसके व्यक्तित्व का आंकलन किया जाना चाहिए।
- महिलाएं किसी भी तरह से पुरुषों से कमज़ोर नहीं होती हैं। वे अपनी मेहनत, काबिलियत, सूझ-बूझ, इच्छाशक्ति और हौसले से केवल घर-परिवार ही नहीं, बल्कि देश भी बखूबी संचालित कर सकती हैं।
- एक महिला, दूसरी महिला की विरोधी नहीं, बल्कि उसकी सबसे बड़ी ताकत होती है।
- समलैंगिकता कोई मानसिक असामान्यता नहीं है। समलैंगिक अभिभावक भी अपने बच्चों को सामान्य और बेहतर परवरिश देने में पूरी तरह सक्षम हैं। इसके लिए ज़रूरी है कि समाज में उनके लिए एक अनुकूल वातावरण का निर्माण किया जाना चाहिए।
नोट: यह आलेख एनएफआइ मीडिया फेलोशिप प्रोग्राम (2019-20) के तहत प्रकाशित किया जा रहा है।