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“पॉलिटिकल विल के बिना महिला सुरक्षा को कभी हासिल नहीं किया जा सकता”

कब तक हमारे देश में बलात्कार की घटनाएं होती रहेंगी? कब तक महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार बनती रहेंगी ? कब तक हमारा समाज महिलाओं को दोयम दर्जे का स्थान देता रहेगा? कब तक हमारे समाज में पुरुषों का वर्चस्व बना रहेगा? कब तक हम यूं ही हाथ पर हाथ धरे बैठें रहेंगे? अब कह दो “बस अब और नहीं “, अब यह परिस्थिति हम बदलकर ही रहेंगे। “निर्भया” की घटना के बाद लोगों में जो गुस्सा दिखा और जिस तरह का आंदोलन हुआ उससे ये लगा था कि अब बदलाव ज़रूर आएगा और हमारा देश महिलाओं के लिए सुरक्षित देश बन पायेगा लेकिन अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि ऐसा नहीं हुआ और परिस्थिति में सुधार आने की बजाय परिस्थिति और बिगड़ती चली गई।

चुनिंदा घटनाओं में दिखता है गुस्सा

आज फिर से हैदराबाद में हुई दर्दनाक घटना के बाद हम लोगों में वही गुस्सा दिख रहा है। इन दो घटनाओं के बीच में हज़ारो इसी तरह की बलात्कार की घटनाएं हुई इनमें से कुछ न्यूज़ में आयी और बहुत सारी घटनाएं हमारी संवेदनहीनता के कारण दब गईं और कुछ जानबूझकर दबाई गईं।

परिस्थिति ना बदलने का सबसे बड़ा कारण मैं यही मानता हूं की निर्भया की घटना के 6-7 साल बाद भी आज हम लोगों में वही गुस्सा दिख रहा है। मीडिया कवरेज भी दिख रहा है (उन्नाव और कठुआ की घटनाओं के बाद भी गुस्सा दिखा पर ये घटनाएं गंदी राजनीति के दबाव में आ गई और जानबूझकर अलग रंग देकर दफनाई गई) जबकि अंदर जो हज़ारो घटनाएं हुईं, तब हममे वह गुस्सा नहीं दिखा, वह संवेदना नहीं दिखी।

आज अगर हम निर्भया के बाद घटी हर एक घटना को उसी गंभीरता से लेते तो आज हैदराबाद की घटना नहीं होती। जब हमारा समाज 6-7 साल बाद जागेगा (उन लोगों को छोड़कर जो महिला सुरक्षा के लिए हमेशा गंभीरता से काम कर रहे हैं) तो परिस्थिति को कैसे बदल पाएगा? अब हैदराबाद में हुई घटनाके बाद हम सब लोगों को कहना पड़ेगा कि “अब बस और नहीं”। जब तक परिस्थिति नहीं बदलेगी तब तक हम अब चुप नहीं बैठेंगे और तब जाकर हम आगे होने वाली घटनाओं को रोक पाएंगे।

उन्नाव में 90% जली रेप सर्वाइवर को अस्पताल ले जाते हुए।

किस समाज और लोगों की बात कर रहा हूं मैं

अभी मै मुंबई में बरखा दत्त की ‘वी द वीमेन’ समिट में गया था। वहां निर्भया की माँ ने बताया कि उसे अभी तक न्याय नहीं मिला और उल्टा यही समाज उसे तरह-तरह के सवाल पूछ रहा है। उन्होंने कहा,

जिस निर्भया फंड से उनका कुछ भी लेना देना ही नहीं है, उसके बारे में उन्हें सवाल पूछे जाते है।

जहां समाज को इनके साथ खड़ा होना चाहिए वहां हमारा समाज उन्ही को सवालों के घेरे में खड़ा कर देता है। इसी समिट में सीता प्रजापत नाम की लड़की ने कहा (जो की एक रेप सर्वाइवर है) उसकी खुद की अपनी माँ ने उसे सपोर्ट नहीं किया और उसे समाज के साथ-साथ अपनों के साथ भी लड़ना पड़ रहा है। हमारे समाज में रेप करनेवालों से ज़्यादा सवाल रेप सर्वाइवर को पूछे जाते हैं, जिन्होंने रेप किया है उन गुनहगारों से ज़्यादा जिसका रेप हुआ है उसे गुनहगार समझा जाता है।

रेप सर्वाइवर को समाज स्वीकार नहीं करता है और उसे एक दाग समझा जाता है। ऐसी रेप सर्वाइवर महिला को इसी अहसास के साथ अपनी ज़िन्दगी जीनी पड़ती है और इसी वजह से बहुत सारी महिलाएं समाज के डर से रेप की पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं करती हैं।

जिन्होंने रेप करने जैसा गुनाह किया है उन्हें जो सज़ा मिलनी चाहिए वह नहीं मिलती, वे छूट जाते हैं और ऐसे गुनहगारों की हिम्मत बढ़ जाती है। इसलिए हमारे समाज को अपनी सोच और मानसिकता बदलनी चाहिए, तब जाकर हम बलात्कार जैसी घटनाओं को रोक सकते हैं। हमारे समाज को अपने भीतर झांकने की ज़रूरत है।

रेप के खिलाफ सड़कों पर लोग

लड़कियों को बोझ समझने की सोच आज भी हावी

हमारे समाज में आज भी लड़की वाले लड़की को बोझ समझते हैं और लड़केवाले लड़की को आने वाला दहेज़ समझते हैं। लड़की को हमारे समाज ने रीति और परंपराओं के नाम पर बांध के और जकड़कर रखा है।

उसके लिए क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए इसके नियम व कानून बनाए गए हैं। सबसे अजीब बात यह है कि ऐसे नियम और कानून लडकों के लिए नहीं बनाए गए हैं और यही महिलाओं के ऊपर होने वाले अत्याचार और अन्याय की सबसे बड़ी वजह बन चुकी है।

वह तो लड़का है, वह जैसे चाहे वैसे रह सकता है लेकिन तू लड़की है, तुझे संभलकर समाज के बने हुए नियम और कानून से रहना चाहिए।

जब तक अपने घर में ऐसी सोच और मानसिकता है, तब तक हम महिलाओं की आज की परिस्थिति में बदलाव नहीं ला सकते हैं। इसलिए कह दो इस समाज से कि बस अब और नहीं।

लड़कियां और इज़्ज़त का टैग

समाज में लड़कियों के साथ ‘इज़्ज़त’ के साथ जोड़ा गया है। जब तक इस इज़्ज़त की परिभाषा नहीं बदलती तब तक समाज की मानसिकता नहीं बदलेगी। समाज के बनाए नियमों के अनुसार रहना इसे इज़्ज़त कहा जाता है, चाहे उसके लिए अन्याय, अत्याचार सहना पड़े तो भी चलेगा। अपनी ज़िन्दगी अपने मुताबिक नहीं दूसरों के मुताबिक जीना चाहिए। इसे ये लोग इज़्ज़त कहते हैं, इसमें

ऐसी बहुत सारी चीज़ें आज भी मौजूद हैं। यही नियम पुरुषों के लिए नहीं है।

संजू मूवी में संजय दत्त ने 300 से अधिक लड़कियों के साथ सेक्स करने की बात की है। वे ऐसी बात कर सकता है (शर्म की बात है कि सिनेमा हॉल में इस बात पर लोग हंस रहे थे) और आज भी वह सीना तानकर समाज में चल रहा है।

हमारे समाज में इसकी इज़्ज़त को कुछ नहीं हुआ लेकिन किसी एक्ट्रेस को उसके अपनी मर्जी से हुए 1 से ज़्यादा अफेयर्स के कारण भी उसे चरित्रहीन कहा जाता है। यहां हमारे समाज का दोगलापन दिखाई देता है। समाज को ऐसी इज़्ज़त की परिभाषा बदलनी चाहिए, इसलिए ऐसे समाज से कह दो अब बस और नहीं।

पॉलिटिकल विल की कमी

हमारे देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कड़े और सख्त कानून बनाये गए हैं लेकिन हम उसका इम्प्लीमेंटेशन सही तरीके से नहीं कर पा रहे हैं। महिला सुरक्षा के लिए जिस तरह की सिस्टम और माहौल देश में बनाना चाहिए हम वह नहीं बना पाए हैं। इसके लिए मैं गवर्नमेंट को ज़िम्मेदार मानता हूं।

‘पॉलिटिकल विल’ के आभाव के कारण हम महिलाओं की आज की परिस्थिति को नहीं बदल पा रहे है। हम बदलाव की उम्मीद किससे करे जहां बलात्कार के कुछ आरोपियों को राजनितिक दल चुनाव लड़ने का टिकट देते हैं और ज़रूरत पड़ने पर राजनीतिक दल ऐसे लोगों को संरक्षण भी देते हैं, तो सवाल यह है कि ऐसे लोग महिलाओं को कैसे संरक्षण दे सकते हैं?

आज हमारी संसद में देश की 50 प्रतिशत आबादी का (महिलाओं का) रेप्रेसेंटेशन केवल 14 प्रतिशत महिलाएं कर रही हैं और जो भी महिलाएं राजनीति में हैं,

उदाहरण के तौर पर मै यहां बता दू्ं कि प्रियंका चतुर्वेदी जो पहले काँग्रेस की प्रवक्ता थी, अब वे शिवसेना में है, उनकी बच्ची को रेप की धमकियां दी गई, कुछ काँग्रेस वर्कर्स के उनके साथ की गई बद्तमीज़ी के मुद्दे पर काँग्रेस पार्टी उनके साथ खड़ी नहीं हुई और बद्तमीज़ी करनेवालों को पार्टी में फिर से शामिल किया गया, तब उन्होंने काँग्रेस छोड़ी। दल बदल करने के बाद उन्हें आज भी रोज ट्रोल किया जाता है। यही हाल अन्य राजनीतिक दलों का भी है।

और भी कितने सारे ऐसे उदाहरण दिए जा सकते हैं। बीजेपी जैसी बड़ी पार्टी जो की अभी सत्ता में है, उनके एक विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को विरोधी दल और मीडिया के दबाव के बाद ही पार्टी से निकाला गया।

महिला सुरक्षा के लिए उठाने चाहिए ये कदम

आपको बता दें कि आज की लोकसभा में 19 सांसदों के ऊपर रेप, मर्डर और महिलाओं के खिलाफ हिंसा के आरोप हैं। इससे आपको अंदाज़ा हो सकता है की किस तरह की मानसिकता इन राजनितिक दलों की है और इनसे महिला सुरक्षा की कैसी उम्मीद कर सकते हैं। ऐसे राजनीतिक दलों को कह दो बस अब और नहीं या तो आप बदलो या फिर हम आपको बदल देंगे।

हमारे देश की मीडिया को महिलाओं के खिलाफ होने वाले अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठाने की ज़रूरत है। सत्ता और सिस्टम से कड़े और तीखे सवाल पूछने की ज़रूरत है। बस TRP के लिए नहीं बदलाव के लिए पत्रकारिता करनी चाहिए। अब ऐसे पत्रकारों को भी कहना चाहिए अब बस और नहीं।

Image Credit: Getty

मै यहां हमारे प्रधानमंत्री जी से निवेदन करता हूं कि

अब आपको भी कहना चाहिए “अब बस और नहीं” ऐसी बहुत सारी चीज़ों के ऊपर हमें गंभीरता से काम करना चाहिए तब जाकर हम हमारा देश महिलाओं के लिए सुरक्षित बना सकते हैं। अब हम सबको कहना चाहिए अब बस और नहीं। ये लेख लिखते समय उन्नाव में हुई घटना की खबर आई, जिसमें रेप सर्वाइवर को ज़िंदा जलाया गया है। कब तक ऐसी घटनाएं होती रहेंगी अब हमें ठोस कदम उठाने की जरूरत है, इसलिए अब कह दो बस अब और नहीं।

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