कॉलेज के पहले दिन जब मैं लेक्चर हॉल में जाकर बैठी तो पता ही नहीं चला कि मेरे बगल में कौन बैठी है? इंट्रोडक्शन के दौरान पता चला कि हमने तो एक ही स्कूल से बारहवीं की पढ़ाई की है।
चूकि हम अलग-अलग सेक्शन और स्ट्रीम से थे जिस कारण हमारी कभी स्कूल में बात नहीं हुई थी लेकिन 2009 में पहली दफा कॉलेज में मिलने के बाद से लेकर अब तक संगम मेरी अच्छी दोस्त है।
संगम की उम्र उस वक्त 6 साल थी जब उसके दोनों पैर घुटने से नीचे पोलियो ग्रस्त हो गए थे। अपने तीनों भाई-बहनों में वह सबसे बड़ी और मम्मी-पापा के लिए सबसे प्यारी है। वह चाहती तो शारीरिक अक्षमता की वजह से घर बैठकर पढ़ाई कर सकती थी मगर उसने दसवीं, बारहवीं, ग्रैजुएशन फिर बी.एड. तक की पढ़ाई रेगुलर कोर्स के ज़रिये पूरी की।
नीजि ज़िन्दगी में भी पेश की है ज़िदादिली की मिसाल
कॉलेज में जहां अन्य बच्चे रोज़ाना क्लास करने से भागते थे, वहीं उसका अटेंडेंस हमेशा पर्याप्त होता था। स्कूल से लेकर कॉलेज तक पढ़ाई में टॉपर रहने वाली लड़की कमाल तो तब कर गई जब कॉलेज के स्टूडेंट यूनियन की प्रेसिडेंट ने उसकी काबिलियत को देखते हुए कैबिनेट में एक अलग से मीडिया सेक्रेटरी का पद बनाया जिसका भार संगम को दिया गया।
वह कॉलेज में होने वाले सभी कार्यक्रमों के लिए मीडिया को सूचना देने से लेकर दो भाषाओं में प्रेस विज्ञप्ति जारी करने का कार्य करती थी। आमतौर पर इंसान सरकारी नौकरी पाकर रूक जाता है लेकिन बी.एड. की परीक्षा देने के दौरान एक सरकारी बैंक में उसकी नौकरी हुई और नौकरी ज्वॉइन करने के साथ भी वह पढ़ाई जारी रखते हुए इतिहास, पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन और गांधीज़्म स्टडीज़ जैसे विषयों में इग्नू से में मास्टर्स की डिग्री ली।
पढ़ाई-लिखाई और करियर में अव्वल रहने के अलावा नीजि ज़िन्दगी में भी वो हमेशा से ज़िंदादिल रही हैं। रक्तदान करने से लेकर अपने घर के आस-पास या दूर किसी भी जगह बगैर यह सोचे चली जाती है कि वह जगह उसके लिए कंफर्टेबल होगी या नहीं?
मेरी जांबाज़ दोस्त ने विकलांगता को ना तो कभी अपनी पढ़ाई और ना ही करियर में हावी होने दिया। मैं उसे एक घुमक्कड़ लड़की के तौर पर जानती हूं।
संगम आज बैंक में असिस्टेंट मैनेजर है और जिस ज़िंदादिली के साथ वह अपने रोज़ के जीवन को जी रही है, उसे देखकर सशरीर हम जैसे लोगों के लिए वह हमेशा प्रेरणा बनी रही है।
हर गम और परेशानी को वह अपनी इच्छाशक्ति के ज़रिये जैसे धुंए में उड़ाकर ज़िन्दगी को मुस्कुराहट के साथ जी रही है। उसे देखकर ऐसा लगता है कि ज़िन्दगी भी उसको पाकर उतनी ही निहाल होगी।
अब तक कई मौके पर हमने देखा है कि सामन्यतः लोग उसके लिए सहानुभूति या बेचारी जैसा भाव रखते हैं जिससे वह नाराज़ हो जाती है, क्योंकि वह हमेशा खुद को सामन्य ही मानती है और लोगों से कहती है, “भाई हम भी आपके जैसे हैं बेचारी-बेचारी कहकर स्पेशल ट्रिटमेंट मत दिया करें।”